दूरदर्शिता के सत्परिणाम

December 1980

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संसार में अच्छे लोग है और बुरे भी । परिस्थितियाँ अनुकूल है और प्रतिकूल भी । इन दोनों में ही सन्तुलन एवं समाँजस्य बिठा कर चलने वाले व्यक्ति जीवन में सफल रहते तथा इस विश्व वसुन्धरा का वास्तविक आनंद उठाते है । कठिनाई सामंजस्य के अभाव में पड़ती है । अपना सन्तुलन बना रहे तो बुरे व्यक्तियों और गई गुजरी परिस्थितियों के बीच रहते हुए भी प्रसन्नचित रहा जा सकता है, जबकि मानसिक सन्तुलन एवं सूझ-बूझ के अभाव में अच्छे से अच्छे व्यक्तियों एवं अनुकूल परिस्थितियों के बीच रहते हुए भी कितने ही व्यक्ति खित्र, व्यग्र एवं अशान्त बने रहते है । यह असन्तुलन का ही परिचायक है । ऐसे व्यक्ति जीवन के छोटे-मोटे बातों एवं सामान्य विरोधों के कारण अपना सन्तुलन खो बैठते है । उनकी प्रसन्नता अप्रसन्नता अनुकूल परिस्थितियों एवं व्यक्तियों पर निर्भर करती है । व्यावहारिक जीवन में आई सामान्य कठिनाइयों को भी वे पहाड़ जैसा देखते है । उनके कारण एवं निवारण ढूँढ़ने के स्थान पर खित्र एवं निराश बने अपनी असमर्थता का रोना रोते रहते है । बेसव्री एवं व्यग्रता स्वभाव का अंग बन जाने के कारण प्रस्तुत समस्या का जो हल थोड़ी सूझ-बूझ एवं दूरदर्शिता के आधार पर निकल सकता था वह भी असम्भव हो जाता है ।

भली बुरी परिस्थितियाँ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रस्तुत होती है । उनका सामना करना पड़ता है । मनुष्य के मानसिक सन्तुलन, धैर्य एवं दूरदर्शिता की परख प्रतिकूल अवसरों पर ही होती है। जब तक प्रतिकूल अवसर न आये अथवा बुरे व्यक्तियों से सामना न पड़े तब तक किसी भी व्यक्ति की सूझ-बूझ की परख कर सकना सम्भव नहीं है । वास्तविकता की परख तो कठिन अवसरों पर ही होती है । किसमें कितना धैर्य, एवं सूझ-बूझ है, इसका मूल्याँकन प्रस्तुत संकटों के आधार पर किया जा सकता है ।

मानसिक सन्तुलन बना रहे तो हर प्रकार की कठिनाइयों का सामना किया जा सकता है । कठिनाई असन्तुलन के कारण उत्पन्न होती है सामान्य और असामान्य व्यक्तियों मं अन्तर उनकी बौद्धिक क्षमता का नहीं मनःसन्तुलन का होता है । दूरदर्शी विवेकशील पुरुष प्रस्तुत संक्टों, अवरोधों का अध्ययन बारीकी से करते तथा अपना सन्तुलन बनाये रखते हुए समाधान ढूँढ़ते है । फलत; अभीष्ट प्रयोजन में सफल होते है । अन्ततः व्यक्ति एवं परिस्थितियाँ भी अनुकूल बन जाती है ।

पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन की अधिकाँश समस्याएँ व्यक्तिगत सूझ-बूझ के अभाव के कारण ही उत्पन्न होती है । अपना सन्तुलन बना रहे तो बुरे से बुरे व्यक्तियों का प्रभाव भी नहीं पड़ सकता । अन्ततः वे भी अनुवर्ती हो जाते है । अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहिंम लिंकन की इस घटना से प्रेरणा ली जा सकती है-लिंकन की पत्नी उग्र स्वभाव की थी । जिसके कारण लिंकन को कई बार उनके कोप का भोजन बनना पड़ा । पर अपनी सहन शीलता एवं संतुलित मनःस्थिति के कारण कभी ध्यान नहीं देते थे । एक बार लिंकन के सम्मान में एक भोग का आयोजन किया गया । भोज के अवसर पर ही पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर मतभेद खड़ा हो गया । श्रीमति लिंकल इतना अधिक क्रोधित हो उठीं कि काफी का गरम प्याला लिंकन को दे मारा । कुछ काफी की छींटें श्रीमति लिंकन के ऊपर भी जप पड़ी । लिंकन ऐसे अवसर में भी मुस्कराते रहे और अपनी पत्नी के इस कृत्य पर बिन्कुल ध्यान नहीं दिया । उल्टे पत्नी के ‘र्स्कट’ पर पड़ी काफी की छींटो को रुमाल निकाल कर साफ करने लगे । श्रीमति लिंकन आत्मग्लानि से भर उठीं । उनकी आँखों में पश्चाताप के आँसू भर आए । लिंकन सभा में उपस्थित व्यक्तियों को सम्बोन्धित करते हुए बोले-मेरी पत्नी समय-समय मुभे सहनशीलता का पाठ पढ़ाती रहती है ।

पारिवारिक जीवन के छोटे-मोटे मतभेदों के फलस्वरुप अपना सन्तुलन गँवा बैठने वाले व्यक्ति इस घटना से प्रेरणा ले सकते है । सामान्य बातों को लेकर कितने ही प्रकार के कलह परिवार में आये दिन पैदा होते है । उनके मूल में जाने पर पता चलता है कि कारण उतने बड़े नहीं थे जितना कि मान लिया गया । अभाव सामन्जस्य एवं स्वयं की सूझ-बूझ का पड़ता है जिनके रहते छोटे मतभेद का भी निवारण नहीं हो पाता । तात्कालिक सूझ-बूझ बनी रहे तो सर्वथा विपरीत, उद्दण्ड एवं उग्र प्रकृति वाले व्यक्तियों के बीच रहते हुए भी प्रसन्न चित्त बने रहना सम्भव है ।

सुकरात के जीवन की घटना है । सुकरात की पत्नी भी उग्र एवं तेज स्वभाव की थी । कार्यो की व्यस्तता के कारण सुकरात को घर लौटने में प्रायः देरी हो जाती है । एक दिन रात गये अपने मित्रों के साथ घर वापसलौटे । उन्हें मित्रों के साथ देखकर पत्नी आग-बबूला हो उठी । इतना अधिक क्रोधित हुई कि गन्दे पानी से भरी बाल्टी को सुकरात के ऊपर फेंक दिया । पत्नी के इस कुकृत्य पर उन्होंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया । उन्टे मुस्कराते हुए बोले कि अब तक तो बादल गरजते थे आज बरस भी रहे है ।” पत्नी का क्रोध उनकी विनम्रता से समक्ष लुप्त हो गया । वे सुकरात से अपने कृत्य पर क्षमा प्रार्थना करने लगी । उस दिन से उसका स्वभाव भी परिवर्तित हो गया ।

दैनिक जीवन में भी कितने ही अवसर ऐसे आते है जिनके कारण मनुष्य अपना सन्तुलन खो बैठता है । आवेशग्रस्त और क्रोधित हो उठता है । फलतः असन्तुलन के कारण कितने ही संघर्षो का सामना करना पड़ता है । जबकि सन्तुलित ढंग से समाधान ढूँढ़ने से सहज ही बचा जा सकता था । संघर्षों के फलस्वरुप होने वाली हानियों को सूझ-बूझ के प्रयोग द्वारा रोकना इस प्रकार सम्भव है । घटना प्राचीन काल की है । यूरोप में द्वन्द्व-युद्ध को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त थी । दो व्यक्तियों के बीच झगड़ा हो जाने पर, कोई भी युद्व चुनौती दे देता था । जिसके कारण कितने ही व्यक्तियों को जान से हाथ धोना पड़ता था । ऐसी ही विषम स्थिति एक बार फ्राँस के लुई पाश्चर के समक्ष आई’ । फ्राँस के एक व्यक्ति को किसी बात पर लुई पाश्चर के ऊपर कोध आ गया । उसने लुई को द्वन्द्व युद्व के लिए चुनौती दे दी । पाश्चर ने प्रतिद्वन्द्वी से बड़ी बुद्धिमत्ता से कहा “चुनौती मुभे दी गई है, इसलिए हथियार चुनने का अधिकार मुभे है । मेरे सामने दो बोतलें रखी है । एक में साधारण पानी है-दूसरे में हैजे के जीवाणुओं का घोल भरा है । एक बोतल मैं पी लेता हूँ । दूसरे बोतल को हमारे प्रतिद्वन्द्वी को पीना चाहिए ।” जिस सहजता के साथ यह बातें कही गई उन्हें सुनकर प्रतिद्वन्द्वी का सारा क्रोध समाप्त हो गया । मुस्कराते हुए पाश्चर के गले आ मिला ।

विकट संकटभरी परिस्थितियों में भी तात्कालिक सूझ-बूझ के सहारे अपनी सुरक्षा की जा सकती है, वाल्वेयर उन दिनों इंग्लैण्ड में थे । ब्रिटेन और फ्राँस के बीच आपसी सम्बन्ध अच्छे न होने के कारण अग्रेज फ्राँसीसियों की जान के दुश्मन बने हुए थे । वाल्तेयर एक दिन सड़क से होकर गुजर रहे थे । फ्राँसीसी को खुली सड़क पर घूमते देखकर अग्रेजों ने घेर लिया । प्रस्तुत संकट में बाल्वेयर ने भीड़ को सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर में कहा कि आप लोग इसलिए मारना चाहते है क्योंकि मै फ्राँसीसी हूँ । उग्र भीड़ ने उत्तर दिया हाँ । वाल्तेयर ने शान्त एवं सन्तुलित स्वर में कहा कि-आप चाहें जो करें पर मेरी एक बात का उत्तर दीजिए । क्या यही सजा मेरे लिए पर्याप्त नहीं है कि मै अग्रेज नहीं हूँ ? भीड़ में उपस्थित आक्रमण कारी भी इस सहजता भरे उत्तर के कारण अपनी हँसी नहीं रोक सके । उन्होंने अपना हिंसक इरादा बदल दिया ।

सामान्य से लेकर असामान्य संकट पूर्ण परिस्थितियों का सामना दूरदर्शी सूझ-बूझ के सहारे किया जा सकता है । अपना सन्तुलन बना रहे तो बुरे से बुरे व्यक्ति भी हानि नहीं पहुँचा सकते । व्यक्तियों एवं परिस्थितियों से सामन्जस्य बिठाने की कला जिसने विकसित कर ली वह जीवन के हर क्षेत्र में सफल रहता है ।


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