अशरीरी आत्माओं का सहयोग प्राप्त किया जा सकता है

December 1980

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मनुष्यों में सभी का स्वभाव एक जैसा नहीं होता । कोई उपकारी प्रकृति का होता है ओर कष्ट पीड़ितों की, दुःखीजनों की सेवा सहायता बिना प्रत्युपकार की भावना से करता है, जहाँ इस तरह की परोपकारी वृत्ति के लोगों का बाहुल्य है वहाँ दुष्ट प्रकृति के लोगों की संख्या भी कम नहीं है, जिन्हें दूसरों को अकारण कष्ट पहुँचाने में मजा आता है । दूसरों को दुःख पहुँचाकर, प्रसन्न के लोग परपीड़क कहे जाते है । इस प्रकार की प्रकृति के लोग मरने के बाद भूत, पिशाच स्तर के बनते है और वे उस योनि में रह कर भी दूसरों को दुःख पहुँचाया करते है ।

भूत प्रेतों द्वारा डराने, कष्ट पहुँचाने की अनेकों घटनाएँ आयेदिन प्रकाश में आती रहती है । डरावनी या घिनौनी प्रकृति के भूत प्रेतों का अस्तित्व जहाँ एक तथ्य है, वहीं यह भी एक तथ्य है कि अशरीरी आत्माएँ मनुष्यों का कल्याण करने उनका सहयोग करने में भी निरत रहती है । इस तरह की अशरीरी आत्माओं का अस्तित्व भी है । साधारणतया उच्च आत्माएँ मनुष्यों की सहायता ही करती है और अपनी सदाशयी वृत्ति के कारण दूसरों को आगे बढ़ाने तथा खतरों से बचाने के लिए पूर्व संकेत की सेवा सहायता करने के लिए तैयार रहते है वैरो ही सूक्ष्म शरीर धारी आत्माएँ, लोगों को उपयोगी ज्ञान देने अथवा आत्मा का अस्तित्व, शरीर न रहने पर भी बना रहता है यह विश्वास दिलाने के लिए कुछ व्यावहारिक और उपयोगी सहयोग देती रहती है ।

प्लेटो, जेनोफेन, आदि विद्वानों ने सुकरात के जीवन की प्रामाणिक घटनाओं पर प्रकाश डाला है तथा उन सभी ने स्वीकार किया है कि सुकरात ने अनेकों बार यह कहा कि मेरे भीतर एक रहस्य देवता ‘डेमन’ निवास करता है और वह समय-समय पर मुभे पूर्व सूचनाएँ दिया करता है । इस तथ्य की यथार्थता के अनेक प्रमाण उद्धरण भी उपरोक्त लेखकों ने प्रस्तुत किये है । प्लुटाकं ने अपनी पुस्तक ‘दी जेनियो मौक्रिटिस में एक ऐसी ही घटना का उल्लेख किया है, एक बार सुकरात अपने कोई मित्रों के साथ एक रास्ते पर जा रहे थे । सहसा वे रुक गये और कहाँ हमें इस रास्ते से नहीं चलना चाहिए, खतरा है । कइयों ने उनकी बात मान ली और वह रास्ता छोड़ दिया, पर कोइ साफ सुथरे रास्ते को छोड़ने के लिए तैयार न हुये । वे सुकरात की सनक को बेकार सिद्ध करना चाहते थे । जो लोग उनकी उपेक्षा कर दूसरे रास्ते से चल पड़े, वे कुछ ही दूर गए होगे, कि जंगली सूअरों का एक झुँड कहीं से आ धमका और उनमें से कइयों को बुरी तरह घायल कर दिया ।

प्लेटो ने अपनी पुस्तक ‘थीबिज’ में भी सुकरात से सम्बन्धित एक प्रसंग दिया है जिसमें लिखा है “एक दिन तिमार्कस नामक युवक सुकरात के पास आया । कुछ खाया पिया, बातचीत की और जब चलने लगा तो सुकरात ने उसे रोकते हुये कहा जाओ मत । तुम्हारे ऊपर खतरा मँड़रा रहा है । तीन बार उसने जाने की चेष्टा की पर तीनों बार उसे पकड़ कर बलपूर्वक रोक लिया । पीछे वह नहीं ही माना और हाथ छुड़ाकर चला गया । उसी शाम उसका एक अनजान व्यक्ति से झगड़ा हो गया और उसने उस आदमी का खून कर डाला । इस हत्या के अपराध में उसे फाँसी पर चढ़ाया गया ।

ऐसी अन्य कितनी ही घटनाएँ है जिनमें सुकरात के उसके सहचर देवता ‘डेमन’ द्वारा पूर्वाभास दिये जाने तथा सहायता करने के प्रमाण मिलते है । सुकरात पर जब मुकद्मा चला और प्राण दंड मिला तब उसके पास ऐसे अनेको प्रमाण और साधन थे, जिनसे उनका बचाव हो सकता था । सफाई प्रस्तुत किये जाने योग्य मजबूत प्रमाण उसके पास थे । ऐथेन्स की जेल से उसे उसके मित्र और शिष्य भगा ले जाने के लिए पूरी तैयारी कर चुके थे, पर उनने इन सबसे सर्वथा इन्कार कर दिया और बचाव के प्रयत्नों में कोई सहयोग नहीं दिया । भरे न्यायालय में उनने स्वीकार किया, अभी-अभी मेरा देवता ‘डेमन’ मेरे कानों में कह कर गया है कि मृत्यु दण्ड मिलेगा, उससे डरने की कोई बात नहीं है । ऐसी मृत्यु मनुष्य के लिए श्रेयस्कर ही होती है ।

मनुष्य इसी लोक, इसी शरीर को सब कुछ मान बैठता है और तात्कालिक सुखोपभोग के लिए दूरवर्ती भविष्य को अंधकारमय बनाने में लगा रहता है । इसका एक कारण परलोग सम्बन्धी मरणोत्तर जीवन सम्बन्धी अज्ञान भी है । यदि गहराई से और गम्भीरता से कुछ विचार किया जाय कि मरने के बाद भी शरीर बना रहेगा ओर उस स्थिति में उसके शुभ अशुभ विचार एवं कार्य ही सुख-दुःख देने के आधार होंगे तो निस्संदेह् मनुष्य के पैर कुमार्ग पर चलने से रुकें और सन्मार्ग पर चलने का उत्साह बढ़े । परलोक सम्बन्धी ज्ञान एवं विश्वास के प्रभाव से मनुष्य के दृष्टिकोण एवं आचरण को परिष्कृत बनने में सहायता मिलती है । इस दृष्टि से अशरीरी आत्माएँ अक्सर लोगों को अपना परिचय देती रहती है, साथ ही समय-समय पर उनकी ऐसी सहायता भी करती रहती है, जिससे परोक्ष जीवन के प्रति सर्वसाधारण की निष्ठा का विकास हो सके ।

प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता रोमान नेवारी एक बार एक होटल में ठहरा हुआ था । होटल के मालिक को मरे हुए थोड़े ही दिन हुए थे । उसके लड़कों में सम्पत्ति के बटबारे को लेकर बहुत ही झगड़ा चला रहा था बाप ने मरने से पहले जो वसीयत लिखी थी, इससे गुत्थी और उलझ गयी । नेवारी ने भी यह सारा वृत्तान्त सुना पर वह बेचारा आखिर कर क्या सकता था ? परदेशी जो ठहरा था, फिर भी उसकी हार्दिक इच्छा थी कि इतना बढ़िया ओर प्रसिद्ध होटल इन लड़कों के झगड़े में नष्ट न हो जाए, इसके लिए वह कुछ करे ।

किस प्रकार जगड़ा सुलभे ? यह विचार करते हुये ही नेवारो उस रात सो गया । नेवारो ने उसी रात सपना देखा कि एक वृद्व व्यक्ति बार-बार उसके कमरे में आकर अलमारी को लाठी से ठोकता है । एक बार तो उसने चूल्हा आदि समझा पर बार-बार वही सपना, वही आवाज ! वह उठा और उसने होटल की उस अलमारी को खोला । उलट पुलट कर देखा तो उसी में वह वसीयत रखी हुई थी, जिसके न मिलने पर दोनों भाई झगड़ रहे थे । दूसरे दिन नेवारों ने वह वसीयत उन्हें सौंपी ओर आसानी से झगड़ा निपट गया ।

फ्राँस की सम्राट हेनरी चतुर्थ की हत्या से कुछ समय पूर्व एक अदृश्य आत्मा ने उसमे स्वप्न में आकर कहा था कि अब तुम्हारा अन्त समय निकट आ पहुँचा है । यह बात सम्राट ने दरबारियों को बताई तो उनने इतना ही कहा कि निरर्थक है । उन दिनों ऐसी कोई आशंका थी भी नहीं पर जब सचमुच कुछ समय बाद हेनरी की हत्या हो गई तो उस पूर्वाभास को सभी ने सही बताया ।

स्काटलैंण्ड का राजा जेम्स चतुर्थ अक्सर इग्लैण्ड पर आक्रमण कर बैठता था । अन्तिम आक्रमण के बाद उसे एक अदृश्य आत्मा दिखाई पड़ी उसने कहा यदि भविष्य में तुमने कोई और आक्रमण किया तो याद रखना तुम्हारी जान की खैर नहीं । राजा ने उस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया, यों ही उसकी उपेक्षा कर दी और सचमुच जब उसने अगला आक्रमण किया तो युद्ध स्थल में ही उसकी मृत्यु हो गई ।

प्रेतबाधा और भूतबाधा होने पर कई तान्त्रिक उनका निवारण इन उदार सदाशय आत्माओं की सहायता से करने में सिद्धहस्त होते है । य़द्यपि इस तरह की घटनाओं में से अधिकाँश का कारण मानसिक होता है । लोग छोटी मोटी शारीरिक परेशानियों को भी कई बार प्रेतबाधा मान लेते है, ओर जान लेवाओं की शरण में जाकर अपने को ठगाते रहते है । लेकिन प्रेतबाधा जैसी कोई चीज होती ही नहीं है, एक दम से यह कहा भी नहीं जा सकता ।

किस तरह की परेशानी प्रेतबाधा है और किस तरह की कठिनाई शारिरिक है ? इसका कोई स्पष्ट वर्ग विभाजन नहीं किया जा सकता । इस विबादास्पद विषय को यहीं छोंड़ देना चाहिए लेकिन प्रसंगवश यह चर्चा अनुचिन्तन होगी कि कुछ लोग कठिन शारिरिक रोगों का निवारण भी उदार आत्माओं के सहयोग से करने में सिद्ध हस्त होते है । प्रख्यात लेखिका मेरी काडिगटन ने अपनी पुस्तक ‘इन सर्थ आफ द हीलिंग पावर, में इस तरह के कई अफ्रीकी ताँत्रिको का विवरण लिखा है जो आत्माओं की सहायता से टूटी हड्डियाँ जोड़ देते है, तान्त्रिकों द्वारा प्रयुक्त मारक प्रयोगों को निष्प्रभावी कर देते है ।

‘वर्ड आफ पैराडाइज्ड, पुस्तक के लेखक ने अफरीका के सहारा क्षेत्र में रहने वाली जन जातियों के बारे में लिखा है, जो बाद में हवाई द्वीप में जाकर रहने लगी कि ये लोग कुछ सदाशयी आत्माओं को प्रसन्न कर लेते है । उस क्षेत्र में रहने वाले ताँत्रिकों को काहुन कहा जाता है । ये ताँत्रिक कई बार अपने वश में की गई दुष्ट आत्माओं से दूसरे व्यक्तियों पर मारक प्रयोग भी करते है । दूसरे तान्त्रिक किसी सदाशयी और शक्तिशाली आत्माओं के द्वारा उन आत्माओं को परास्त कर देते है ।

अशरीरी आत्माओं से सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते है और उनका सहयोग प्राप्त किया जा सकता है । ऐसा करने में एक विशेष स्तर पर विकसित अन्तः चेतना वाले व्यक्ति ही समर्थ है । अशरीरी आत्माओं से सर्म्पक स्थापित कर सकने की प्रविधि का विश्लेषण करते हुए एमाहार्डिज ने अपनी पुस्तक ‘पाईन अमेरिकन स्प्रिचुअलिज्म’ पुस्तक में लिखा है कि मन का कार्य केवल इच्छा, कल्पना और निर्णय करने जैसे सामान्य स्तर तक ही सीमित नहीं है, उसमें कुछ विलक्षण शक्तियाँ भी भरी पड़ी है, ऐसी जिनसे औरों से अर्थ-पदार्थ भी है और चेतना भी । अतीन्द्रिय विज्ञानी इस शक्ति को ‘साइको काइनेसिस नाम देते है । इस क्षेत्र में चल रही शोध यह बताती है कि इस बात के ढेरों प्रमाण है जिनसे मनुष्य की अन्तः चेतना द्वारा जड़ पदार्था को ही नहीं अशरीरी आत्माओं को भी प्रभावित किया जा सकता है और उनका सहयोग प्राप्त हो सकता है ।

फ्रेडार्टक मायर्स के अनुसार इस स्तर का विकास मनुष्य को अतीन्द्रिय अनुभूतियाँ करा सकता है, जो ज्ञात नहीं है, उसे विज्ञात करा सकता है । इस तरह की अद्भुत और विलक्षण कही जाने वाली सभी क्षमताएँ मनुष्य में बीज रुप से विद्यमान है जिन्हें सबलिमिनला सेल्फ कहते है उन्होंने अपने निज के अनुभवों, प्रयोगों और निष्कर्षो की चर्चा करते हुए बताया है कि मनुष्य के भीतर एक ऐसा तत्व है, जिसके आधार दूरवर्ती छिपी हुई तथा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की जानकारी मिल सकती है । अप्रकट रहस्यों के प्रकटीकरण और अशरीरी आत्माओं के साथ सम्बन्ध स्थापित करने की सम्भावना को उन्होने इस चेतना स्तर वालों के लिए सहज की सुलभ बताया है ।

अशरीरी आत्माओं से सम्बन्ध स्थापित करने और उनका सहयोग लेने, उन्हें अपना सहचर बनाने की विद्या भारत में पहले काफी प्रचलित रही है आज भी इस विद्या के जानकार है, परन्तु वे प्रकाश में नहीं आते । अपने को इस क्षमता से सम्पन्न विज्ञापित करने वालों में अधिकाश् व्यक्ति इस विद्या के अस्तित्व का अनुचित ही लाभ उठाते है । सदाशयी, उदार और परोपकारी वृत्ति की अशरीरी आत्माएँ स्वयं इन व्यक्तियों का सहयोग करने के लिए प्रस्तुत रहती है, जिनकी अन्तः चेतना विकसित ओर परिष्कृत हो ।


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