चतुरता एक बात है और सद्भावना दूसरी। सौभग्य एक बात है और सौष्टुव दूसरी। मनुष्य को अन्य प्राणियों से कई प्रसंगों में प्रकृति से अधिक अनुदान मिले हैं सो ठी है। पर यह नहीं मान बैठना चाहिए कि वे सद्भावना और सौष्टुव की दृष्टि से भी पिछड़े हुए है। सभ्यता नहीं मिली है तो भी वे अनेक बातों से मनुष्य की अपेक्षा अधिक शलीन देखे जाते हैं।