फूल भी शूल (kavita)

October 1979

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

फूल का रूप मन को बड़ा भा गया। शूल पर क्रोध लेकिन बहुत आ गया॥

बाह्य सौंदर्य मन को लुभाता रहा। मन भ्रमर प्यार के गीत गाता रहा॥

किन्तु जिस दिन हटा आवरण चर्म हो। तब घृणा से बुरा हाल था मर्म का॥

असलियत देख इंसान थर्रा गया। शूल पर क्रोध लेकिन बहुत आ गया॥

जब तलक दूर थी स्वर्ण वाली चमक। हाथ में हो वही-बढ़ चली यह ललक॥

किन्तु जिस दिन चमक हाथ में आ गयी। प्यार के शुद्ध सम्बन्ध को खा गयी॥

इस दुखद अन्त पर व्यक्ति पछता गया। शूल पर क्रोध लेकिन बहुत आ गया॥

मार्ग सीधा सदा आदमी ने चुना। कब सुनीं भेरियाँ? स्वर मधुर ही सुना॥

कोसते सब रहे कष्ट और पीर को। प्राप्त संघर्ष को और तकदीर को॥

कष्ट से ही मगर ज्ञान भी आ गया। शूल पर क्रोध लेकिन बहुत आ गया॥

फूल है चीज अच्छी-प्रशंसा करो। किन्तु मत कण्टकों की चुभन से डरो॥

सत्य शिव का न हो न्यून वर्चस से कभी॥ बात सौंदर्य की चाह ही है तभी॥

शूल चुभकर यही बात समझा गया। शूल पर क्रोध लेकिन बहुत आ गया॥

-माया वर्मा

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118