अकुशल मजदूर 3-4 रुपए रोज पाता है और प्रशिक्षित श्रमिक 11 से 31 रुपए तक प्रतिदिन कमाते है। सामान्य मैट्रिक, स्नातक, बेकार घूमते रहते है। और मैट्रिक के बाद तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त लोग टर्नर, फिटर, मेकेनिक, टायपिस्ट, स्टेनों, आदि के पदों पर सरलता से काम पा जाते हैं और अच्छी कमाई कर लेते हैं। यह सब तकनीकी ज्ञान का कमाल है। तकनीकी जानकारी से व्यक्ति उस काम से सम्बन्धित ऐसी बारीकियों को जान लेता है, जिनमें श्रम तो अधिक नहीं लगता, किन्तु मनोयोग और दक्षता के परिणाम स्वरूप कार्य कुशलता बहुत अधिक बढ़ जाती है।
जानकार लोग ऐसी ही तकनीक पढ़ने में भी प्रयुक्त करते हैं और दूसरे लोगों से कई गुना अधिक पढ़ लेते हैं। जिन्हें छोटे से जीवन में बहुत अधिक काम करना होता है वे सब कामों से ऐसी ही तकनीक विकसित कर लेते हे। स्व. डा. राजेन्द्र प्रसाद के बारे में विख्यात है कि वे जिस पृष्ठ को तुरन्त पढ़कर पृष्ठ पलट देते थे मानों मात्र निगाह फेर रहे हों पर वे पृष्ठ को पूरा पढ़ लेते थे इतने अल्प समय में। यह कोई ईश्वरीय देन नहीं तकनीकी भर है। पिछले दिनों मास्को के कई नागरिकों ने ऐसी तकनीक सीखी है और वे सामान्य पाठक से 3-4 गुना अधिक पढ़ लेते है। चार घण्टे का वाचन एक घण्टे में कर लेते है। इस प्रशिक्षण को आरम्भ करने का श्रेय वहाँ के वैज्ञानिक एवं तकनीकी पुस्तकालय के कर्मचारी इंजीनियर ओलेवा कुन्जेत्सोव को है।
इनकी इस तकनीक का आधार यह है कि जिस समय मनुष्य पढ़ता है उस समय उसकी आंखें और उसका मस्तिष्क ही काम नहीं करता वरन् भीतर ही भीतर बोलने की प्रक्रिया भी चलती रहती है। पढ़ने की इस गति का बोलने की प्रक्रिया के साथ अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। कहने का अर्थ है पढ़ते समय ज्ञान और सूचनाओं को मस्तिष्क में संग्रहित करने में दृष्टि, और श्रवण ये तीनों-शक्तियाँ एक साथ काम करती हैं। किसी भी लिखित सामग्री को शीघ्रतापूर्वक ग्रहण करना वाक् शक्ति को रोकने पर निर्भर करता है। क्योंकि बोलने की गति बहुत मन्द होती है। कोई भी व्यक्ति एक मिनट में 240 शब्दों से अधिक नहीं पढ़ सकता।
जिस गति से बोलने की तरह एक-एक शब्द को पढ़कर किसी गद्यांश का जितना भाग याद रखा व समझा जा सकता हैं, उसे उसमें लगे समय से बहुत कम समय में दृष्टि व मस्तिष्क के एकान्तिक सम्बन्ध को स्थापित करने पढ़ा व याद रखा जा सकता है। हम एक-एक शब्द को जिस मन्द गति से पढ़ते है। उसे ही तीव्र गति से भी पढ़ सकते हैं। इसके लिए बोलकर पड़ने या बोलने की तरह शब्दशः पढ़ने की आदत के स्थान पर इस नयी तकनीक को प्रतिष्ठित करना पड़ता है।
शार्ट हेन्ड का ज्ञाता जिस प्रकार अपने छोटे-छोटे संकेतों में बोलने वाले की बात समेट लेता है और पुनः टाइप राइटर पर बैठकर द्रुतगति से उसे ज्यों की ज्यों अंकित कर देता है। हमारे मस्तिष्क की जानकारियाँ ग्रहण करने की और उन्हें पुनः जुटा देने की वैसी ही प्रक्रिया है। भिन्नता यह रहती है। कि उनमें शब्दशः उतार देने का अभ्यास करना पड़ता है। ऐसा अभ्यास किया जाय तो पढ़ने की गति 3-4 गुनी बढ़ायी जा सकती है।
सोवियत संघ के मास्को नगर में दिये गये प्रशिक्षण जैसी सुविधा फिलहाल तो हमारे देश में उपलब्ध होना सम्भव नहीं है। फिर भी व्यक्ति अभ्यास के द्वारा अपने ढंग से उस तकनीक को विकसित करके अपने अध्ययन की क्षमता को कई गुना बढ़ाकर समय की बचत कर सकता है। आवश्यकता इस प्रक्रिया की तकनीक के अभ्यास की है।