समय के सदुपयोग बिना आत्मसन्तोष असम्भव

October 1979

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‘समय बहुत कीमती है’- यह वाक्य सम्भवतः आप हजारों बार सुन चुके होंगे और सैंकड़ों बार कह चुके होंगे। लेकिन क्या सचमुच ही आप अपना और दूसरों का समय कीमती समझते हैं? क्या आपने कभी स्वयं के क्रिया कलापों पर नजर डाली है और यह जानने की कोशिश की है कि जिस समय को बात-बात में आप भी कीमती कह जाते हैं, उसका कितना अंश आप या तो व्यर्थ ही गँवा देता हैं या उस समय पूँजी को घटिया कामों में लगाकर घाटा ही घाटा उठाते हैं। इस पूँजी को व्यर्थ न गँवाएँ न ही निकृष्ट कामों में खर्च होने दें, यह मानवीय आत्मा की स्वाभाविक माँग है। उसे पूरा करने पर ही आत्म-सन्तोष की अनुभूति सम्भव होती है।

प्रतिदिन एक घण्टा समय यदि मनुष्य लगाया करे, तो उतने समय से भी यह कुछ ही दिनों में बड़े महत्वपूर्ण कार्य पूरे कर सकता है। एक घण्टे में चालीस पृष्ठ पढ़ने से महीने में बारह सौ पृष्ठ और साल में करीब पन्द्रह हजार पृष्ठ पढ़े जा सकते हैं यह क्रम दस वर्ष जारी रहे तो डेढ़ लाख पृष्ठ पढ़े जा सकते हैं। इतने पृष्ठों में कई सौ ग्रन्थ हो सकते हैं। यदि वे एक ही किसी विषय के हों तो वह व्यक्ति उस विषय का विशेषज्ञ बन सकता है। एक घण्टा प्रतिदिन कोई व्यक्ति विदेशी भाषायें सीखने में लगाये तो वह मनुष्य निःसन्देह तीस वर्ष में इस संसार की सब भाषाओं का ज्ञाता बन सकता है। एक घन्टा प्रतिदिन व्यायाम में कोई व्यक्ति लगाया करे तो अपनी आयु को पन्द्रह वर्ष बढ़ा सकता है।’

संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के प्रख्यात गणित आचार्य चार्ल्स फास्ट ने प्रतिदिन एक घण्टा नियम पर अन्त तक डटे रह कर इतनी प्रवीणता प्राप्त की।

माजार्ट ने हर घड़ी उपयोगी कार्य में लगे रहना अपने जीवन का आदर्श बना लिया था। वह मृत्यु-शय्या पर पड़ा-पड़ा भी कुछ करता रहा। रैक्यूयम नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ उसने मौत से लड़ते-लड़ते पूरा किया।

ब्रिटिश कॉमनवेल्थ और प्रोटेक्टरेट में अपने पदों का व्यस्ततापूर्ण उत्तरदायित्व वहन करते हुए मिल्टन ने पैरेडाईसलास्ट’ की रचना की। राज काज से कम समय मिल पाता था तो भी जितने कुछ मिनट वह बचा पाता उसी में उस काव्य की रचना कर लेता। ईस्ट इंडिया हाउस की क्लर्की करते हुए जानस्टुर्ट मिल ने अपने सर्वोत्तम ग्रन्थों की रचना की। गैलीलियो दवादारू बेचने का धन्धा करता था तो भी उसने थोड़ा-थोड़ा समय बचाकर विज्ञान के महत्वपूर्ण आविष्कार कर डाले।

हेनरी किरक व्हाइट को सबसे ज्यादा समय का अभाव रहता था, पर घर से दफ्तर तक पैदल आने और जाने के समय का सदुपयोग करके उसने ग्रीक भाषा सीखना फौजी डाक्टर बर्कले का अधिकतर समय घोड़े की पीठ पर बीतता था। उसने उस समय को भी व्यर्थ न जाने दिया और रास्ता पार करने के साथ-साथ उसने इटेलियन और फ्रेंच भाषायें भी पढ़ ली। यह याद रखने की बात है कि- परमात्मा एक समय में एक ही क्षण हमें देता है और दूसरा क्षण देने से पूर्व उस पहले वाले क्षण को छीन लेता है। यदि वर्तमानकाल में उपलब्ध क्षणों का हम सदुपयोग नहीं करते तो वे एक-एक करके छिनते चले जायेंगे और चाहे अन्त में खाली हाथ ही रहना पड़ेगा।

एडवर्ड बटलर लिटन ने अपने एक मित्र को कहा था - लोग आश्चर्य से कहते हैं कि मैं राजनीति तथा पार्लियामेंट के कार्यक्रमों में व्यस्त रहते हुए भी इतना साहित्य कार्य कैसे कर लेता हूँ? साठ ग्रन्थों की रचना मैंने कैसे करली? पर इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। यह नियंत्रित दिनचर्या का चमत्कार है। मेरा प्रतिदिन तीन घण्टे का समय पढ़ने और लिखने के लिये नियत किया हुआ है। इतना समय मैं नित्य ही किसी न किसी प्रकार अपने साहित्यिक कार्यों के लिए निकाल लेता है। बस इस थोड़े नियमित समय ने ही मुझे हजारों पुस्तकें पढ़ डालने और साठ ग्रंथों के प्रणयन का अवसर ला दिया।

घर गृहस्थी के अनेकों झंझटों और बाल बच्चों की साज संभाल में दिन भर लगी रहने वाली महिला हेरेट स्टोव ने गुलाम प्रथा के विरुद्ध आग उगलने वाली वह पुस्तक ‘टाम काखा की कुटिया लिखकर तैयार करदी, जिसकी प्रशंसा आज भी बेजोड़ रचनाओं में की जाती है।

चाय बनाने के लिए पानी उबालने में जितना समय लगता है उसमें व्यर्थ बैठे रहने की बजाय लाँग फैलो ने ‘इनफरलो’ नाम ग्रन्थ का अनुवाद करना शुरू किया और नित्य इतने छोटे समय का उपयोग इस कार्य के लिए नित्य करते रहने से उनसे कुछ ही दिन में वह अनुवाद पूरा कर लिया।

इस प्रकार के अगणित उदाहरण हमें अपने चारों ओर बिखरे हुए मिल सकते हैं। हर उन्नतिशील और बुद्धिमान मनुष्य की मूल भूत विशेषताओं में एक विशेषता अवश्य मिलेगी- समय का सदुपयोग। जिसने इस तथ्य को समझा और कार्य रूप में उतारा उसने ही यहाँ आकर कुछ प्राप्त किया है। अन्यथा तुच्छ कार्यों में आलस्य और उपेक्षा के साथ दिन काटने वाले लोग किसी प्रकार सांसें तो पूरी कर लेते हैं पर उस लाभ से वंचित ही रह जाते हैं जो मानव जीवन जैसी बहुमूल्य वस्तुतः प्राप्त होने पर उपलब्ध होना चाहिए, या हो सकता था।

जीवन का महल समय की - घण्टे मिनटों की ईंटों से चिना गया है। यदि हमें जीवन से प्रेम है तो यही उचित है कि समय को व्यर्थ नष्ट न करें। मरते समय एक विचारशील व्यक्ति ने अपने जीवन के व्यर्थ ही चल जाने पर अफसोस प्रकट करते हुए कहा- “मैंने समय को नष्ट किया, अब समय मुझे नष्ट कर रहा हैं।”

कहीं आपको भी अन्त में ऐसा ही सोचने और स्वयं को धिक्कारने की, आत्म ग्लानि की स्थिति का सामना न करना पड़े।

खोई दौलत फिर कमाई जा सकती है। भूली हुई विद्या फिर याद की जा सकती है। खोया हुआ स्वास्थ्य चिकित्सा द्वारा लौटाया जा सकता है पर खोया हुआ समय किसी प्रकार भी नहीं लौट सकता उसके लिए केवल पश्चाताप ही शेष रह जाता है।

जिस प्रकार धन के बदले में अभीष्ट वस्तुयें खरीदी जा सकता है, उसी प्रकार समय के बदले में भी विद्या, बुद्धि, लक्ष्मी, कीर्ति, आरोग्य, सुख-शान्ति, मुक्ति आदि जो भी वस्तु रुचिकर हो खरीदी जा सकती है। ईश्वर ने समय रूपी प्रचुर धन देकर मनुष्य को पृथ्वी पर भेजा है और निर्देश किया है कि वह इसके बदले में संसार की जो भी वस्तु रुचिकर समझे खरीद लें।

किन्तु कितने व्यक्ति हैं जो समय का मूल्य समझते और उसका सदुपयोग करते हैं? अधिकाँश लोग आलस्य और प्रमाद में पड़े हुए जीवन के बहुमूल्य क्षणों को यों ही बर्बाद करते रहे हैं। एक-एक दिन करके सारी आयु व्यतीत हो जाती है और अंतिम समय में देखते हैं कि उन्होंने कुछ भी प्राप्त नहीं किया, जिन्दगी के दिन यों ही बिता दिये। इसके विपरीत जो जानते हैं कि समय का नाम ही जीवन है वे एक-एक क्षण को कीमती मोती की तरह खर्च करते हैं और उसके बदले में बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। हर बुद्धिमान व्यक्ति ने बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा परिचय यही दिया है कि उसने 5 जीवन के क्षणों को व्यर्थ बरबाद नहीं होने दिया। अपनी समझ के अनुसार जो अच्छे से अच्छा उपयोग हो सकता था उसी में उसने समय को लगाया। उसका यही कार्यक्रम अन्ततः उसे इसी स्थिति तक पहुँचा सका जिस पर उसकी आत्मा सन्तोष का अनुभव करें।


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