मानवेत्तर सृष्टि कम आकर्षक नहीं

October 1979

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यह सृष्टि जितनी आकर्षक है उतनी ही विलक्षण भी। पेड़-पौधों, वनस्पतियों, पुष्प का आकर्षक सौंदर्य जहाँ मन को तृप्त करता है वहीं अथाह सागर, भीमकाय पर्वत एवं अनंत अन्तरिक्ष के दृश्य उस सृष्टा के विराट स्वरूप का दिग्दर्शन कराते हैं। लघु से विराट संरचना उसकी अद्भुत कलाकृति, शक्ति एवं विलक्षण बुद्धि व्यवस्था का भान कराती है। जड़-प्रकृति के आकर्षक सौंदर्य से कम आश्चर्यजनक, चेतन जगत भी नहीं है।

चेतना के क्षेत्र में प्राणी-समूह की संरचना, उनके क्रिया कलाप एवं क्षमताओं की विलक्षणता को देखकर बुद्धि विस्मित रह जाती है तथा श्रद्धा से उस परम शक्ति के प्रति नतमस्तक होना पड़ता है। जिसने विचित्रताओं से युक्त प्राणियों का सृजन किया। सृष्टा ने मनुष्य को शक्ति-सामर्थ्य एवं बुद्धि प्रदान की किन्तु अन्य अपने छोटे जीव-जन्तुओं को भी आवश्यक क्षमताओं से वंचित नहीं रखा। उनकी आवश्यकता के अनुरूप न केवल जीवनयापन की क्षमता दी बल्कि प्रतिकूल परिस्थितियों में सामंजस्य बिठाने एवं तदनुरूप अपने को ढालने की बौद्धिक क्षमता भी प्रदान की।

विभिन्न प्रकार के रंगों का उपयोग सामान्यतया मनुष्य कला, चित्रकारी आदि के लिये करता है। रंगों का यह सामान्य एवं सीमित उपयोग रहा। किन्तु इन्हीं रंगों के आवरण में लिपटे नन्हें वन्य प्राणी जीवन की भाग दौड़ में अपने को बचाये रखते हैं। इस सुरक्षा कवच की आड़ में ये प्राणी आसानी से अपना आहार भी ढूंढ़ लेते हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप में पाये जाने वाले पतंगों की एक जाति होती है ‘मेण्टीस’। ये पतंगे फूलों के रंग जैसे होते हैं। पुष्पों के डालियों पर बैठे अपना आहार प्राप्त कर लेते हैं। जब पुष्पों की पंखुड़ियों पर चिपके रहते हैं तो लगता है जैसे पुष्प की ही कोई पंखुड़ी हो। दक्षिणी अमेरिका में भी इसी प्रकार की पारदर्शी काँच जैसी पंख वाली एक तितली पायी जाती है जिसका रंग पेड़ की डालियों से बिल्कुल मिलता-जुलता है। उसे देखने से लगता है कि पेड़ की छाल हो। ‘डेड लीफ बटर फ्लाई’ तो सूखी पत्तियों जैसी दिखायी देती है। यह केवल रंग, रूप आकार में ही वैसी नहीं होती है वरन् उड़ती भी उसी प्रकार है जैसे हवा के झोंके से पत्तियाँ ‘स्टीक’ नामक कीड़ा पेड़ से इस प्रकार चिपका रहता है जैसे उसकी ही कोई छोटी शाखा हो। ‘ट्रापीकन’ कीड़े एक समूह में एकत्रित होकर पेड़ में उसके फूल जैसे लटके रहते हैं। अधिकाँश व्यक्तियों को उनके फूल होने का भ्रम हो जाता है।

तितलियों में कुछ जातियाँ ऐसी होती हैं जो पत्तियों का रंग धारण कर लेती हैं ‘गतिशील पर्ण’ नामक तितली तो पत्ते की शक्ल, रंग एवं आकर से मिलती जुलती है। पौधे पर जब यह रेंगती है तो लगता है कोई पत्ती चल रही हो। ‘वोलिविया सीनोफ्लेविया’ तितली जब फुदकती है तो पहचान में आती है।

ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी को प्राकृतिक प्रकोप एवं प्रतिकूलताओं में समायोजन कर सकने की शारीरिक एवं बौद्धिक क्षमता दी है। देखा यह जाता है कि बौद्धिक क्षेत्र का नेतृत्व करने वाला प्राणी मनुष्य ही सामान्य घटनाक्रमों, प्रतिकूलताओं से प्रभावित होकर अपना शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक सन्तुलन नष्ट करता रहता है जबकि अन्य प्राणी जीवन का एक सहज क्रम मानकर परिवर्तित परिस्थितियों एवं वातावरण के अनुरूप अपने को ढाल ले हैं। उत्तरी ध्रुव, पहाड़ों एवं बर्फीले प्रदेश की भीषण ठंड में भी रीछ, सर्प, उल्लू अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं।

बाह्य शत्रुओं, आक्रामकों से बचाव में जिस बुद्धिमता का परिचय ये छोटे नन्हें जीव देते हैं उसे देखकर आश्चर्य चकित रह जाना पड़ता है। मनुष्य छोटी-मोटी कठिनाइयों, अवरोधी से विचलित होता रहता है जबकि उसकी शारीरिक एवं बौद्धिक क्षमता इन क्षुद्र प्राणियों की तुलना में हर दृष्टि से अधिक समर्थ है। सामान्य घटनाक्रमों से प्रभावित होकर रोते-कलपते समर्थ मनुष्य को देखने पर उसकी बुद्धि पर सन्देह उत्पन्न होता है तथा यह कहना पड़ता है कि इनसे अच्छे तो ये जीव-जंतु हैं जो बाह्य परिस्थितियों को चैलेंज करते रहते हैं किन्तु घुटने नहीं टेकते। मनुष्य को इन जीवों से प्रेरणा लेनी चाहिए।

मेंढकों का प्रिय आहार समझे जाने वाले ‘टोड’ मिट्टी के ढेले के आकार में बने बैठे रहते हैं। इनको पहचान पाना तो मेढ़क से ही सम्भव है। ‘टोड’ की चालाकी से परिचित मेढ़क स्वयं भी अपना रंग बदलता रहता है। पानी सतह पर तैरते हुए कोई का रंग धारण कर लेता है। मिट्टी में पहुँचकर उसी के अनुरूप बन जाता है। शत्रुओं को इस प्रकार झाँसा देता रहता है। दूसरी ओर रंग की आड़ में अपना शिकार भी करता रहता है। मछलियाँ, घोंघे तथा ‘स्क्वीड’ तो अपनी त्वचा का रंग बदलने में विशेषज्ञ है। कुछ घोंघे तो मिनटों में अपनी काया का रंग परिवर्तित करते देखे जाते है। समुद्री घास का हरा रंग तथा रंगीन काई का भूरा या ‘बैंगनी रंग ये शीघ्र ही धारण कर लेते हैं।

कुछ प्राणियों में परिवर्तन करने की प्राकृतिक क्षमता न हो हुए भी शत्रुओं से बचाव में अपनी विलक्षण सूझबूझ का परिचय देते हैं। अभिनय कला में वे इतने पारंगत होते हैं कि शत्रु धोखा खा जाते हैं। वर्षा ऋतु में पाये जाने वाले कीड़े’गिंजाई’ ‘काँतर’ कुंडलाकार रूप में इस प्रकार पड़े रहते हैं कि जैसे कोई मृतक हो। आक्रमणकारी जीव इन्हें मृत जानकर छोड़ देते हैं। अमेरिका में पाया जानेवाला जीव ‘आर्मेडिलो’ शत्रु की आहट मिलते ही अपनी गर्दन को मोड़कर फुटबाल जैसी शक्ल धारण कर लेता है तथा निश्चेष्ट पड़ा रहता है। ये पशु-पक्षी जीव न केवल अपनी सुरक्षा करते हैं। वरन् अपने बच्चों की देख-रेख एवं बाहरी आक्रमणों से बचाव की विधि-व्यवस्था, परिवार के मुखिया के समान करते हैं। ‘गौरैया और श्यामा’ अपने अण्डों को घास में इस प्रकार रखती है कि उनके ऊपर शत्रु की दृष्टि न पड़ सके। बच्चे भी आरम्भ से ही दिये गये माता-पिता के इस प्रशिक्षण का पालन पूरी मुस्तैदी के साथ करते हैं। अण्डे से निकलकर आते ही जब शत्रु को देखते हैं तो मृतक की भाँति लेट जाते हैं। शत्रु भी मृतक जानकर छोड़ देते हैं।

कुछ जीव जो अपनी रक्षा करने में असमर्थ होते हैं वे इस प्रकार की शारीरिक चेष्टाएँ प्रदर्शित करते हैं जिन्हें देखकर अन्य प्राणी डर जाय तथा आक्रमण न करें। अमेरिका में पाया जाने वाला सर्प ‘लाँगलोण्ड’ इसी श्रेणी में आता है। इसमें विष नहीं पाया जाता है इसलिए सहज ही शिकार बनने की सम्भावना बनी रहती है। ऐसी स्थिति में अपनी सुरक्षा के लिए यह अपना फन उठाकर फुफकारता हुआ ऐसे चलता है जैसे कोई विषधर सर्प आ रहा हो। शत्रु उसे देखकर डर जाते हैं तथा आक्रमण करने का साहस नहीं कर पाते। यदि अपने उस अभिनय में वह असफल रहा तथा कोई शत्रु आक्रमण कर दे तो वह चित्त होकर मृतक के समान लेट जाता है। आक्रमणकारी उसे प्रायः मृत जानकर आगे बढ़ जाते हैं। शत्रु के आगे बढ़ते ही वह एक ओर धरे से खिसक जाता है। ‘चीनी फीजेण्ट’ नामक रंगीन पंखों वाला पक्षी अपनी गर्दन के पास लाल थैलियों को फुलाकर अपना आक्रामक रुख प्रदर्शित करके शत्रुओं को डराता रहता है। छिपकलियाँ भी इस कला में निपुण होती हैं। आक्रमण की आशंका होते ही अपना मुंह खोलकर वायु द्वारा शरीर को फुलाती है तथा आँखों से रक्त की पिचकारी छोड़ती हैं। शत्रु भयभीत होकर भाग जाता है, ‘स्क्वीड’ हमला किये जाने पर रक्त की पिचकारी छोड़ती हैं। शत्रु भयभीत होकर भाग जाता है, ‘स्क्वीड’ हमला किये जाने पर अपने ही आकार का स्याही का बादल छोड़कर भाग जाता है।

परमात्मा ने प्रत्येक प्राणी को उसकी आवश्यकतानुसार शक्ति, सामर्थ्य एवं बुद्धि दी है जिससे वे स्वस्थ जीवनयापन करते हुए शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक सुरक्षा करे सकें। छोटे नगण्य समझे जाने वाले प्राणी ईश्वर द्वारा दी गई क्षमता का सदुपयोग करते है तथा अपने छोटे से क्षेत्र में उल्लासपूर्ण जीवन व्यतीत करते है। मनुष्य को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। मनुष्य जीवन की गरिमा एवं उद्देश्य को समझते हुए उसे प्राप्त करने के लिए सतत् प्रयास करना चाहिए।


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