धर्मराज युधिष्ठिर के पास ब्राह्मण याचक बन कर आया और कहने लगा-’भिक्षा देहि!
युधिष्ठिर उस समय बैठ न जाने क्या सोच रहे थे। उन्होंने नम्रता पूर्वक ब्राह्मण से कहा-भगवन्! आप कल पधारें, आपको अभीष्ट वस्तु मिल जायगी।
ब्राह्मण तो चला गया किन्तु-भीमसेन उठे और लगे सैन्य साथियों को ले कर दुन्दुभि बजाने तथा मंगल गीत गाने। असमय में मंगलवाद्य बजने का शब्द सुन कर धर्मराज ने पूछा-आज इस समय मंगलवाद्य क्यों बज रहे है।
सेवक ने पता लगा कर बताया-भीमसेन ने ऐसा करने की आज्ञा दी है और वे स्वयं भी दुन्दुभि बजा रहे है।
भीमसेन बुलाये गये तो बोले-आपने काल को जीत लिया है, इससे बढ़ कर मंगल का समय और क्या होगा।
‘मैंने काल को जीत लिया?’-युधिष्ठिर आश्चर्य चकित हो कर बोले तो भीमसेन ने बात स्पष्ट की-महाराज विश्व जानता है कि आपके मुख से हँसी में भी झूठी बात नहीं निकलती। आपने याचक ब्राह्मण को अभीष्ट ‘दान’ कल देने के लिए कहा है, इसलिए कम से कम कल तक तो अवश्य काल पर आपका अधिकार होगा ही।’
अब युधिष्ठिर, को अपनी भूल का बोध हुआ। वे बोले-’तुमने मुझे आज उचित ही सावधान कर दिया। कोई भी कार्य जो करना है उसे कल पर नहीं छोड़ना चाहिए।