प्रकृति का दुलार, उपहार- विलक्षण क्षमताओं का भंडार

February 1979

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अमेरिका पश्चिमी द्वीप समूह में स्थित पांच हजार फुट ऊंचा पर्वत माउण्टपीरो के आस-पास जब से लगभग 80 वर्ष पूर्व कितनी ही बस्तियां थीं। उनमें हजारों लोग रहते थे। सन् 1904 की बात है वहां के ग्रामीणों ने अपने साथ रहने वाले पालतू जानवरों तथा अन्य स्वच्छंद पशु-पक्षियों के व्यवहार में असामान्य परिवर्तन देखा। वे प्रायः घबराये से रहने लगे। पशु पक्षी मनुष्यों के अधीन थे, वे तो कुछ नहीं कर सके, पर सांप, कुत्ते और सियार धीरे-धीरे माउण्टपीरो के आस-पास वाले क्षेत्रों से हटने लगे। लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक ये प्राणी क्यों इस क्षेत्र से भाग रहे हैं।

उसी वर्ष एक दिन माउण्टपीरो पर्वत से एक भयानक विस्फोट हुआ और पहाड़ के टुकड़े-टुकड़े हो गये। विस्फोट का कारण वहां अकस्मात् फूट पड़ा ज्वालामुखी था। इस ज्वालामुखी के विस्फोट से कोई तीस हजार व्यक्ति जो पर्वत पर और उसके आस-पास रहने वाले थे मारे गये तथा करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो गयी।

तो क्या उन पशु पक्षियों को इस विस्फोट का पहले से ही आभास हो गया था। प्रसिद्ध जीवशास्त्री डा. विलियम जे. लाग ने अपनी ‘हाई एनिमल्स टाक’ में प्राणियों की ऐसी अद्भुत क्षमताओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि मनुष्य की तुलना में पशु-पक्षी भले ही पिछड़े हुए हों, परंतु उनकी चेतना मनुष्यों से कहीं अधिक बढ़ी-चढ़ी होती है और उसी के आधार पर वे अपनी जीवनचर्या को सुविधापूर्वक संपन्न करते हैं।

किन्हीं मनुष्यों में भी इस तरह की शारीरिक या मानसिक क्षमतायें पायी जाती हैं जो सर्वसाधारण में नहीं होती हैं। उन क्षमताओं को देखकर ही उन्हें अतीन्द्रिय शक्ति संपन्न, विलक्षण और चमत्कारी ठहराया जाता है। इन क्षमताओं के आधार पर लोग ऐसी बातें जान लेते या बता देते हैं जिनका कोई बुद्धि सम्मत आधार नहीं होता किंतु बाद में ये बातें पुष्ट हो जाती हैं। ज्ञानेन्द्रियों की सीमा से परे की बातें जान लेने वाले सिद्ध योगी भी कहे जाते हैं और जन-साधारण के लिए आश्चर्य व आकर्षण का विषय बन जाते हैं।

इस प्रकार की शक्तियां किन्हीं-किन्हीं मनुष्यों को हजारों लाखों में एकाध को ही मिलती हैं, परंतु कितने ही प्राणियों में यह जन्मजात होती हैं। वे ऐसा बहुत कुछ जान व समझ लेते हैं जो मनुष्य जानने-समझने लगें तो उसे अलौकिक व्यक्ति कहा जाय। जैसे कुत्ते और भेड़ियों की नाक मीलों दूर की गंध, सूंघ लेती है। आकाश में मीलों ऊंचाई पर उड़ते हुए चील और गिद्ध धरती पर पड़ा हुआ मांस का एक छोटा-सा टुकड़ा भी देख लेते हैं। देखने, सूंघने और सुनने की यह क्षमता प्रकृति ने इन प्राणियों को इस लिए दी है कि उनके द्वारा वे आत्म-रक्षा करने के साथ-साथ सुविधा सामग्री प्राप्त करने में सरलतापूर्वक सफल हो सकें।

यही नहीं प्रकृति ने इन प्राणियों को ऐसी शक्तियां भी दी हैं जिनके आधार पर वे निकट भविष्य में होने वाले घटनाक्रम का पूर्वाभास कर लेते हैं। परमात्मा ने यदि उन्हें वाणी और भाषा दी होती तो संभवतः वे भविष्यवाणी भी कर सकते थे। डा. लाग ने अपनी पुस्तक में ऐसे ढेरों प्रसंग लिखे हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि इन प्राणियों में ऐसी शक्तियां विद्यमान हैं, जिन्हें मानवीय भाषा में अतीन्द्रिय क्षमता ही कहा जा सकता है।

उपर्युक्त पुस्तक में एक प्रसंग इस प्रकार है- एक मैदान में हिरनों का झुंड बड़ी तेजी से घास चर रहा था। झुंड कुछ ऐसी तेजी से चर रहा था जैसे उन्हें कहीं जाने की जल्दी हो। उस समय तो इसका कोई कारण समझ में नहीं आया पर कुछ ही घंटे बाद बर्फानी तूफान आया और कई दिनों तक घास मिलने की सम्भावना नहीं रही। स्थिति का पूर्वाभास प्राप्त करके हिरन इतनी जल्दी-जल्दी इसीलिए घास चर रहे थे कि उससे कई दिन तक गुजर हो सके।

उत्तरी कनाडा की झीलों में प्रायः बर्फ जम जाया करती है। झीलों में रहने वाली मछलियाँ बर्फ जमने से काफी पहले ही गर्म स्थानों पर चली जाया करती है, जहँ अपनी सुरक्षा कर लेती है। इसी प्रकार बर्फीले प्रदेशों में रहने वाले भालू जब बर्फ गिरने को होती है तो काफी समय पहले से ही अपना आहार इकठ्ठा करने लगते है और अपनी गुफा में जमा कर लेते हैं। बर्फ गिरने के कारण गुफा का मुँह बन्द हो जाने के बाद भालू उसी संचित आहार से अपना काम चलाते है।

प्रकृति जगत् में एक से एक विलक्षण और अद्भुत क्षमताओं वाले प्राणी भरे पड़े हैं। उन्हें बुद्धि भले ही न मिली हो पर वे अन्य क्षेत्रों में मनुष्य से इतने आगे है कि मात्र बुद्धि बल के कारण अपने आपको सर्वश्रेष्ठ कहने वाले मानव का यह दावा खोखला मात्र ही सिद्ध होता है और यह भी कि बुद्धि-बल का अहंकार रखना व्यर्थ है। क्योंकि अन्य प्राणियों के पास इतनी विलक्षण शक्तियाँ है कि मनुष्य उनकी तुलना में अक्षम और असमर्थ ही ठहरता है।

वायुयान बनाकर मनुष्य ने उड़ना तो अब सीखा है परन्तु मनुष्य से पहले तमाम पक्षी आकाश में उड़ते रहते हैं। वे अपने भार के अनुसार ही तीव्र या मन्द गति से उड़ते हैं लेकिन गरुड़ एक ऐसा पक्षी है जो आकार में बड़ा होते हुए भी 200 मील प्रति घण्टे की गति से उड़ता है। तीव्र गति से हवा में उड़ने, उसी गति से गोता लगाने और फिर उसी गति से कितनी ही कलाबाजियाँ बताकर वापस सीधे उड़ने लगने में गोशाल्क जाति के बाज की बराबरी आज तक कोई भी नहीं कर सका है।

पृथ्वी पर ही-थलचर प्राणियों में चीता सबसे तेज दौड़ता है। वह एक मिनट में एक मील अर्थात् 60 मील प्रति घण्टे की गति से बड़ी सरलता पूर्वक दौड़ लेता है। किन्हीं-किन्हीं अवसरों पर वह 90 से 100 मील प्रति घण्टे के हिसाब से भी दौड़ लेता है। आस्ट्रेलिया का कंगारू 40 फुट ऊँची छलाँग लेता है। जबकि वह मनुष्य की तुलना में बहुत छोटा होता है।

साँप की मांसपेशियां इतनी मजबूत और लचीली होती है कि आठ-दस फुट का साँप किसी पतली डाल पर पूँछ से एक लपेट मारकर पूरा नीचे लटक जाने के बाद भी मुँह की ओर से वापस उसी डाल पर पहुँच जाता है। हाथी की सूँड में 40 हजार माँसपेशियाँ होती है। उन्हीं में इतनी लचक होती है कि वह सूँड से पृथ्वी पर पड़ी हुई सुई तक उठा लेता है।

शेर का पंजा और व्हेल की दुम इतने सशक्त होते है कि अन्य जीव जन्तुओं में से किसी का भी कोई अंग इन प्राणियों के इन अंगों की तुलना में अधिक या बराबर भी मजबूत नहीं होता। गहरे समुद्रों में पाया जाना वाला ‘अष्टपद जलचर’ जरा-सा प्राणी होता है जिसका धड़ और सिर आठ भुजाओं के बीच में होता है। इस प्राणी की ये भुजायें इतनी मजबूत होती हैं कि उनकी पकड़ में आ जाने वाला कोई भी प्राणी जीवित नहीं बचता।

देखने की क्षमता में मनुष्य उल्लू, बाज, खरगोश और कितने ही जलचर प्राणियों से पिछड़ा हुआ है। उल्लू रात को भी आसानी से देख सकता है। मनुष्य को जितनी रोशनी में दिखाई देता है उससे दस गुना कम रोशनी में भी वह देख सकता है। उल्लू के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उसे दिन में भी दिखाई देता है। वस्तुतः ऐसा है नहीं, दिन के प्रकाश में उसकी आँखें चौंधिया जाती है अन्यथा अन्धेरे स्थानों में तो वह दिन के समय भी भली-भाँति देख सकता है। अच्छे से अच्छे दूरबीन द्वारा भी जितनी दूर की चीजों को स्पष्टतः देखा नहीं जा सकता उतनी स्पष्टता से बाज हजारों फुट की ऊँचाई पर उड़ते हुए देख लेता है। एक हजार फुट ऊँचे उड़ते हुए भी वह घास में छिपे साँप, मेढ़क और चूहों को देख लेता है जबकि हम पाँच फुट दूर से नहीं देख पाते।

मनुष्य को पीछे का दृश्य देखने के लिए सिर भी पीछे घुमाना पड़ता है। परन्तु खरगोश की आँखों की बनावट ऐसी है जिससे कि वह सामने की तरह ही पीछे भी साथ-साथ ही देख सकता है। यह विलक्षणता मछलियों में पायी जाती है। वे पानी के भीतर तैरते हुए ऊपर और नीचे दोनों ओर देख लेती है।

स्मरण शक्ति की दृष्टि से कुत्ता अन्य सब प्राणियों की तुलना में बहुत आगे है। उसे आँख बाँधकर सैकड़ों मील दूर ले जाकर भी छोड़ दिया जाय तो वह वापस अपने स्थान पर पहुँच जाता है।

यह तो हुई प्राणियों की सामान्य विशेषतायें, जो किसी मनुष्य को प्राप्त हो जाये तो वह सिद्धयोगी या अतिमानव ही कहलाने लगे। प्रकृति ने अपनी इन अबोध सन्तानों को देखने, सूँघने, उड़ने, पकड़ने, दौड़ने भागने की ये क्षमतायें इसलिए दी कि उनके पास बुद्धि का अभाव है और उस कारण व अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा आसन्न संकटों से बचने का कोई प्रबन्ध करने में असमर्थ होती है।

इन्हीं कारणों से आकस्मिक संकट से बचने के लिए प्रकृति ने माउण्टपीरो के जीव-जन्तुओं तथा अन्य पशु-पक्षियों को पूर्वाभास की क्षमता भी दे दी है। कहते है कि मातायें अपने कमजोर, मन्द-बुद्धि और अक्षम बच्चों का विशेष ध्यान रखती हैं तथा उनके लिए सुरक्षा प्रबन्ध भी करती है जिससे कि वह आकस्मिक संकटों से बचाव कर सके। यह पक्षपात या अन्याय नहीं है, बल्कि सहज ममता के अंतर्गत ही आता है। प्रकृति माता भी अपने अबोध लाड़लों को इन विलक्षण क्षमताओं और अतीन्द्रिय शक्तियों द्वारा उनके लिए सुरक्षा का प्रबन्ध ही करती है।

इन विलक्षण क्षमताओं के अतिरिक्त अतीन्द्रिय शक्तियों के भी ढेरों उदाहरण हैं। प्राणधारियों की अतीन्द्रिय क्षमताओं पर शोध कर रहे डा. विद्लाग ने एक घटना का विवरण “न्यूयार्क टाइम्स” में प्रकाशित कराया था। उन्होंने लिखा था कि वियना में एक कुत्ता माल उठाने उतारने की क्रेन के समीप ही पड़ा सुस्ता रहा था। अचानक वह चौंका, उछला और बहुत दूर जा बैठा। इसके कुछ देर बाद ही क्रेन की जंजीर टूटी और एक भारी लोह खण्ड उस स्थान पर आ गिरा जिस स्थान पर कि वह कुत्ता बैठा था। सम्भवतः कुत्ते को इस घटना का पूर्वाभास हो गया था और इसी कारण वह उस स्थान से उठकर दूसरे स्थान पर जा बैठा था।

मनुष्यों को भी यदाकदा कभी इस प्रकार के पूर्वाभास होते है। इस तरह के पूर्वाभास की घटनाओं का विश्लेषण करते हुए अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डा. नेलसन वाल्ट का कथन है कि -प्राणधारियों के भीतर रहने वाली प्राण चेतना, जिसे जिजीविषा एवं प्राणशक्ति भी कहते हैं- विद्यमान रहती है। यह न केवल रोग निरोध अथवा अन्य आत्म-रक्षा जैसे अस्तित्व संरक्षण के अविज्ञात साधन जुटाती हैं, वरन् वह सूक्ष्म जगत् में चल रही उन हलचलों का भी पता लगा लेती है जो अपने आगे विपत्ति के रूप में आने वाली होती है।

यह आभास बहुधा अपने ऊपर तथा अपने सम्बन्धियों के ऊपर आने वाले संकटों के ही होते हैं। सिद्ध पुरुष जिसके सम्बन्ध में भी चाहें भविष्यत् का आभास कर लेते हैं। कई जीव जन्तुओं में यह शक्तियाँ जन्मजात और स्वाभाविक रूप से होती है। उनके बीज मनुष्यों में भी रहते हैं। बल्कि प्रकृति ने उनमें इन शक्तियों के विकास की विशिष्ट सम्भावनायें भी प्रस्तुत कर दी है। यही कारण है कि सीधे, सरल और निष्कपट व्यक्ति अपनी इस शक्ति का अनुभव न करते हुए भी कितने ही खतरों से बच जाते हैं जैसे उन्हें कोई दैवी सहायता प्राप्त हो गयी हो।

यह शक्ति हर मनुष्य में विद्यमान होते हुए भी अस्वाभाविक जीवन जीने तथा मनोविकारग्रस्त मनः-स्थिति के कारण वे शक्तियाँ कुण्ठित हो जाती है। वनवासी लोग प्रकृति के अधिक समीप रहते हैं, प्राकृतिक जीवन जीते हैं और सीधा सरल जीवन जीने के कारण उस शक्ति से अपेक्षाकृत अधिक सम्पन्न होते है। सिद्धयोगी जिन अद्भुत या अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकास कर लेते है उन्हें अर्जित करने में उनका प्रयास, परिश्रम या अभ्यास तो सहायक होता ही है, उनका प्राकृतिक सरल जीवन भी कम महत्वपूर्ण नहीं होता। प्रकृति ये दिव्य उपहार ऐसे ही व्यक्तियों को प्रदान करती है जो उसके नियमों मर्यादाओं के अधीन रहते हुए सीधी सरल सपाट जिन्दगी जीते हों। माँ का लाड़ दुलार भी तो आज्ञाकारी और शिष्ट शालीन बच्चों को अधिक मिलता है।


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