वनस्पति जगत मनुष्य से कहीं अधिक संवेदनशील है

February 1979

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निष्कलुष हृदय में दूसरों के दुर्भाव दुर्विचार उसी प्रकार अनुभव होने लगते हैं जैसे सामने वाला व्यक्ति स्वयं अपने मुंह से उन्हें व्यक्त कर रहा हो। पवित्र अंतःकरण वाला व्यक्ति दूसरों के हृदय की भावनाओं की परख स्वतः ही कर लेता है। पेड़-पौधे जिन्हें न किसी से लगाव होता है न दुराव, निष्कलुष और पवित्र अंतःकरण व्यक्ति की तरह ही यह ताड़ लेते हैं कि पास आने वाला व्यक्ति या प्राणी शत्रु या मित्र है। अमेरिका के प्रोफेसर मर्किल वोगल ने इस तरह के कई प्रयोग किये और उन्होंने जो जानकारियां एकत्रित कीं वे बेहद ही चौंकाने वाली और आश्चर्यजनक थीं।

पेड़-पौधे न केवल अपने पास आने वाले व्यक्तियों के भले बुरे भावों को पहचान लेते हैं बल्कि उन भावनाओं से प्रभावित भी होते हैं। प्रो. वोगल ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया है कि पौधे उन्हें उखाड़ने या नष्ट करने के विचार मात्र से पूरी तरह आतंकित हो जाते हैं। यह सिद्ध करने के लिए उन्होंने अपने एक मित्र विवियन विले के सहयोग से एक प्रयोग की योजना बनायीं। इसके लिए उन्होंने गमले में लगे हुए दो पौधों को चुना। इन दोनों पौधों को उन्होंने अपने शयनकक्ष में रखा। वोगल ने जो पौधा अपने शयन कक्ष में रखा था जब भी वे वहां जाते तो पौधे के प्रति अच्छे भाव और शुभ विचार अपने मन में लाते। इधर विले अपने शयन कक्ष में रखे पौधे के पास जब भी जाते तो पौधे को उखाड़ने नष्ट करने या तोड़ने का विचार करता। दोनों मित्र प्रातःकाल जब उठते तो इसी प्रकार के विचार करते।

एक माह बाद देखा गया तो वोगल वाला पौधा पहले की अपेक्षा अधिक हरा-भरा था और विले वाला पौधा पहले की अपेक्षा सूख कर पीला पड़ने लगा था। दोनों को खाद पानी दिया गया था वह एक ही तरह का था। फिर भी यह परिवर्तन नोट किया गया। संभव है यह मात्र संयोग रहा हो। यह सोचकर वोगल तथा विले पहले के भावों से विपरीत भावनायें जगाने लगे। अर्थात् वोगल अपने पौधे से शत्रुवत् भाव करते और विले मित्रवत्। महीने भर बाद ही दोनों पौधों पर यह परिणाम नोट किया गया कि वोगल वाला पौधा सूखने लगा तथा विले का पौधा हरा-भरा रहने लगा।

इन लंबे प्रयोगों के बाद प्रो. वोगल ने कुछ और प्रयोग भी किये उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में एक पौधे को ऐसे यंत्र से जोड़ा जो जो पौधे की आंतरिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों को कंपन के रूप में अंकित करता था। पौधे को इस यंत्र से जोड़ने के बाद वोगल ने अपनी हथेलियों को पौधे के चारों ओर पास किया तथा साथ ही अपने मन में पौधे के प्रति मित्रता के भाव भी जगाने लगे। प्रो. वोगल ने देखा कि पौधे के साथ लगे हुए यंत्र ने कागज पर एक ग्राफ खींच दिया है।

दूसरी बार प्रो. वोगल ने दूसरी तरह की भावनाएं अपने हृदय में लाये तो यंत्र ने दूसरी तरह का ग्राफ बनाया। फिर उन्होंने पहले वाली कोमल भावनाओं को ही जगाया तो पहले वाले ग्राफ जैसा ही ग्राफ बना। इन प्रयोगों को वोगल ने कई बार दोहराया और हर बार एक जैसे ही निष्कर्षों पर पहुंचे।

प्रो. वोगल ने इन प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्षों को वनस्पति विज्ञानियों के एक सम्मेलन में कहा तो कई वैज्ञानिकों ने उनके प्रयोगों में रुचि दर्शायी। एक वनस्पति विज्ञानी डा. सिलम जोंश ने स्वयं इस प्रयोग को अपने हाथों से किया और संतोषजनक परिणाम प्राप्त किये। यही नहीं उनके कुछ भावों पर पौधों ने विपरीत प्रतिक्रियायें भी दर्शायी। एक बार जब डा. जोंश ने प्रो. वोगल की प्रयोगशाला में प्रवेश किया तो पौधे ने कंपन देना एकदम बंद कर दिया। प्रो. वोगल ने प्रश्न किया कि आप इस समय क्या विचार कर रहे थे? तो डा. जोंश ने उत्तर दिया कि वे इस पौधे की तुलना अपने घर में लगे एक पौधे से कर रहे थे। उनके घर के बगीचे में उसी पौधे की जाति का एक दूसरा पौधा लगा हुआ था। डा. जोंश उस पौधे से इस पौधे की तुलना करते हुए सोच रहे थे कि मेरे उपवन में लगा हुआ पौधा कितना हरा-भरा और तरोताजा है जबकि यह पौधा सूखा-सूखा-सा लगता है। शायद यह गमले में लगा हुआ है इसलिए ऐसा हुआ हो।

प्रो. वोगल के उस पौधे ने इस घटना के दो हफ्ते बाद तक कोई कंपन अंकित नहीं किया। मशीन ठीक-ठाक काम कर रही थी फिर भी कंपन क्यों नहीं हुआ? इसका उत्तर देते हुए प्रो. वोगल ने कहा है कि आगंतुक वैज्ञानिक अपने मन में पौधे के प्रति जो भाव लाये थे और उसके प्रति जो हीनता की भावना व्यक्त की थी उससे उस की भावनाओं को बड़ी ठेस पहुंची थी और इसी कारण उसने अबोल लेते हुए कोई बात करने- प्रतिक्रिया व्यक्त करने से इंकार कर दिया था।

पेड़ पौधे भी अनुभव करते हैं और उनमें भी संवेदनायें होती हैं, इस तथ्य को न्यूयार्क के प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी क्ली बैकस्टर ने सिद्ध कर दिखाया है। क्ली बैकस्टर ने पेड़-पौधों की प्रतिक्रिया को मापने के लिए एक विशिष्ट यंत्र गेल्वेनोमीटर का उपयोग किया। आम तौर पर गेल्वेनोमीटर में सुई का उपयोग होता है परंतु इस मीटर में सुई के स्थान पर पेन का इस्तेमाल किया गया था ताकि कंपनों को अंकित किया जा सके।

क्ली बैकस्टर ने इसके बाद पेड़ की एक पत्ती को उबलती हुई काफी की प्याली में डाल दिया। पत्ती पेड़ से जुड़ी हुई हालत में ही प्याली में डाली गयी थी। परंतु इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। क्ली बैकस्टर ने एक दूसरा प्रयोग किया। उसने विचार किया कि वह पत्ती को जलाकर राख कर देगा। इस‍ विचार के आते ही बैकस्टर ने माचिस की तीली जलाने के लिए आगे हाथ बढ़ाया। लेकिन वह अभी माचिस हाथ में उठा भी नहीं पाया कि गेल्वेनोमीटर ने पेड़ में कंपनों को तेजी से अंकित करना आरंभ कर दिया। पेड़ की नोक बहुत तेजी से कागज पर चलने लगी थी।

यद्यपि बैकस्टर पेड़ से दूर खड़ा था और वह अपने स्थान से हिला तक नहीं था तो क्या पेड़ ने बैकस्टर के विचारों को जान लिया था और इस प्रकार अपनी प्रतिक्रिया दर्शायी थी। बैकस्टर के मन में यह प्रश्न बिजली की तरह कौंधने लगा। प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उन्होंने माचिस की एक तीली जलायी और पत्ती के पास ले गये। यह करते हुए बैकस्टर के मन में पत्ती को जलाने का कोई विचार नहीं था। वह पत्ती को जलाने का नाटक कर रहे थे। शायद पौधे ने बैकस्टर के आंतरिक भावों को पहचान लिया हो और वह समझ गया हो कि युवा वैज्ञानिक केवल नाटक कर रहा है। इसलिए पौधें में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।

इसके बाद बैकस्टर ने सचमुच पत्ते को जलाने का निश्चय कर लिया और इस इरादे से लौ को आगे-आगे बढ़ाया। बैकस्टर ने जैसे ही तीली को आगे बढ़ाया पौधे ने गेल्वेनोमीटर के माध्यम से एक झटके के साथ अपना भय व्यक्त किया। यंत्र की नोक कागज पर चलने लगी।

इन ग्राफों को सुरक्षित रख लिया गया और यही प्रयोग अन्य किस्म के पौधों पर भी दोहराने की योजना बनाई गयी। बैकस्टर ने इसके लिए कुछ युवा वैज्ञानिकों का एक दल बनाया और पच्चीस तरह के अलग-अलग किस्म के पेड़-पौधे लिये। ये पौधे देश के विभिन्न कोनों से मंगाये गये थे। सभी पौधों पर विचारों के होने वाले प्रभाव को अलग-अलग गेल्वेनोमीटर से आंका गया तो वही परिणाम सामने आये जो पहले आये थे। प्रयोगशाला में कोई कुत्ता, बिल्ली या बंदर लाया जाता तो पौधे भय से अलग-अलग कंपन करते। जैसे बिल्ली के प्रवेश पर वे सबसे कम भयभीत हुए, कुत्ते के समय उससे ज्यादा और बंदर के समय सबसे ज्यादा। यहां तक कि कोई व्यक्ति प्रयोगशाला में किसी पौधे के प्रति दुर्भावना लेकर आता तो पौधा उसे भी अंकित कर देता।

गैलवेनी मीटर द्वारा अंकित किये गये कंपनों को किसी प्रकार ध्वनि तरंगों को रूपांतरित किया गया। तरंग के सूक्ष्म कंपन को भी ध्वनि में बदल देने वाले यन्त्र से जब उन ध्वनियों को सुना गया तो उनमें कहीं भय, कहीं प्रसन्नता, कहीं हर्ष तो कहीं उल्लास की ध्वनियाँ निकलती थी।

बैकस्टर ने पेड़ पौधों पर होने वाले इस प्रभाव को जाँचने के लिए एक विस्तृत प्रयोगशाला बनायी और उसमें अपने छः साथियों को भी अनुसंधान कार्य में लगाया और एक फुट दूर स्थित दो पौधों को लिया गया। इन पौधों को गमले में लगाकर एक ही कमरे में रखा गया। प्रयोग की रूप रेखा यह बनायी गयी कि उसका कोई एक साथी उन दोनों पौधों में से एक पौधे के पत्तों को नोंच नोंचकर फेंकेगा। लेकिन उसकी खबर उस साथी के अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं दी जायेगी। इस घटना का साक्षी एकमात्र वह दूसरा पौधा ही होगा जिसके सामने उसके साथी पौधे को नोचा खसोटा जायेगा। प्रयोग पूरा हुआ तो नोंचने वाले वैज्ञानिक के अतिरिक्त शेष पाँचों वैज्ञानिकों को उस साक्षी पौधे के पास लाया गया। पाँचों वैज्ञानिकों के पास खड़े रहने पर पौधे में कोई प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं हुई और जब वह छठा वैज्ञानिक पौधे के पास लाया गया, जिसने कि दूसरे पौधे की पत्तियों को नोंचा खसोटा था तो पौधे ने तुरन्त अपनी प्रतिक्रिया दर्शायी॥ इसके निष्कर्ष में बैकस्टर ने यह कहा कि- “पौधा अपने साथी को नुकसान पहुँचाने वालों को भूला न था और उनको बिल्कुल ठीक पहचान गया था।”

भयभीत होने, प्रसन्नता व्यक्त करने तथा शत्रु को पहचानने में समर्थ होने के अतिरिक्त पेड़ पौधे गर्मी और सर्दी भी महसूस करते हैं, उन्हें प्यास भी लगती है तथा उन्हें भी एक निश्चित मात्रा में खनिज लवणों और पोषक तत्वों की जरूरत होती है। यह खोज रूस के प्रसिद्ध, वनस्पति शास्त्री’ लियोनिड ए. पनिशकिन तथा कैरोमोनेव ने की है। कैरामोनेव ने एक दिलचस्प प्रयोग किया। उन्होंने एक विशेष यन्त्र को एक सेम के पौधे के साथ जोड़ा और यन्त्र को चालू कर दिया। जब पौधे को पानी की जरूरत पड़ती तो वह यन्त्र पर एक विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा संकेत देता। यह संकेत देखकर पौधे को एक विशेष विधि से पानी दिया जाता। यह देखा गया कि पहले दो मिनट तक पौधे ने पानी लिया किन्तु फिर उसने पानी कि प्रति अनिच्छा व्यक्त की। इसके घण्टे भर बाद पौधे ने पुनः पानी का संकेत किया इस बार भी उसने केवल दो मिनट तक ही पानी लिया और फिर पानी लेने में अरुचि दर्शायी।

इन अनुसंधानों ने वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन प्रस्तुत किया है। काई आश्चर्य नहीं कि पेड़ पौधों के इस तरह के व्यवहार को देखते हुए उन्हें जानवरों, प्राणियों से अलग न माना जाय। भाव संवेदनाओं की दृष्टि से वृक्ष वनस्पति को यन्त्र की श्रेणी का ही कहा जा सकता है। अभी तो यही पता चला है कि दुर्भावनाओं, धमकियों, सद्भावों और दूसरों पर होने वाले अत्याचारों पर पेड़ पौधे भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियायें करते हैं। कौन जाने उनकी प्रतिक्रियाओं में उपेक्षा, परामर्श, तिरस्कार या मित्रता की भावनायें व्यक्त होती हों और कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी बुद्धि, नैतिक चेतना तथा आध्यात्मिकता मनुष्य से अधिक उन्नत स्तर की हो। मनुष्य और वनस्पति में अन्तर है तो इतना भर ही कि वनस्पति मनुष्य की भाषा में बात नहीं कर सकता है? तो मनुष्य ही वनस्पति जगत की भाषा में बात करने में कहाँ समर्थ है?


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