शरीर सोता है तो सपने कौन देखता है?

February 1979

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स्वप्नों का अपना एक विचित्र संसार है जिसमें विचरण करते हुए हम अनेकों चित्र -विचित्र दृश्य देखते है। इनमें से कई सार्थक होते है और कई विचित्र। स्वप्न में देखी हुई बहुत सी बातें तो याद रह जाती है और अनेकों विस्मृति के गर्त में खो जाती है। प्रश्न उठता है उस समय व्यक्ति का शरीर तो सोता रहता, इन्द्रियाँ भी निष्क्रिय ही रहती है। गहरी नींद सोये व्यक्ति को अपने आस - पास क्या हो रहा है - इसका कुछ पता ही नहीं चलता। एक तरह से वह सोते हुए भी दूसरी दुनिया में चला जाता है। फिर प्रश्न उठता है कि शरीर का कौन-सा बाहरी या भीतरी अंग होता है जो स्वप्न देखता है?

प्रश्नोपनिषद् में गार्ग्य मुनि पिप्पलाद ऋषि से यही प्रश्न करते है- “कान्य स्मिंज्जागृति कतर एव देव स्वप्नान्पश्यन्ति (4/1)” अर्थात् - “कौन - कौन जागते रहते है और स्वप्न अवस्था में कौन - कौन स्वप्न की घटनाओं को देखते रहते है। “

चतुर्थ प्रश्न में गार्ग्य मुनि पिप्पलाद ऋषि से निद्रा के समय मनुष्य शरीर की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न करते है जिसके उत्तर में पिप्पलाद ऋषि कहते है कि - निद्रा एक यज्ञ हैं। उस शरीर रूप नगर में पंच प्राण रूप अग्नियाँ जागती रहती है। श्वास प्रश्वास दोनों इस यज्ञ में दी जाने वाली आहुतियाँ है। इनको जो समभाव से पहुँचाता है वही ‘होता’ है। यह मन ही यजमान है और उससे मिलने वाला अभीष्ट फल ही उदान है वह उदान ही इस मन रूप यजमान को प्रति दिन ( निद्रा के समय ) ब्रह्म लोक में भेजता है अर्थात् हृदय गुहा में ले जाता है ( प्रश्न4/3-4 )

ऋषि के अनुसार निद्रा एक यज्ञ है और उसमें शरीर में जाने वाले श्वास प्रश्वास आहुतियाँ है। इस अलंकारिक उत्तर में ऋषि ने यह बताया है कि स्वप्न के माध्यम से मन जीवात्मा के पास पहुँचने का प्रयास करता है। यद्यपि नींद में पड़ने वाले विक्षेपों के कारण भी कई स्वप्न आते जाते है। सोते-सोते यौन उत्तेजना में काम क्रीड़ा को दृश्य दिखाई देते है। उस समय की कष्ट कारक अनुभूतियाँ और मानसिक परेशानियाँ भी अपने-अपने स्तर के पीड़ा दायक डरावने स्वप्न खड़े कर देती है। अतृप्त आकांक्षायें भी अपना रंग महल बनाने बिगाड़ने का खेल खेलती है और कई प्रकार के स्वप्नों की सृष्टि होती है। इस तरह के स्वप्न महत्व हीन होते है। यो उनका विश्लेषण किया जाय तो उनके सहारे मनः स्थिति का परीक्षण निदान भी उसी प्रकार किया जा सकता है जिस प्रकार कि मल, मूत्र, रक्त, आदि की जाँच एक्सरे द्वारा शारीरिक रोगों का निदान किया जाता है। परन्तु पिप्पलाद का प्रतिपादन निद्रा यज्ञ से सम्बन्धित है।

यों अग्नियाँ और भी है जिनमें कूड़ा करकट के जलाने से लेकर खाना पकाने और मकान जलने जैसी प्रिय अप्रिय घटनायें घटनी है। परन्तु यज्ञाग्नि उन अग्नियो से भिन्न है। इसी प्रकार निद्रा को भी एक अग्नि की संज्ञा देते हुए उसके यज्ञ स्तर के स्वरूप वाली निद्रा मन को ऐसे उच्च-लोको की यात्रा करा देती है जिन्हें वरदान और अलौकिक अनुभूतियाँ कहा जा सकता है। ऋषि ने इसी स्तर के स्वप्नों को ब्रह्मलोक की यात्रा - हृदय गुहा में स्थित आत्मचेतना के सामीप्य की प्राप्ति और उसके माध्यम से विराट् चेतना के साथ सम्बद्ध होने का द्वार कहा है।

अब तक तो विज्ञान भी स्वप्नों को अतृप्त आकांक्षाओं और दबी हुई कामनाओं का ही प्रतीक मानता था ; परन्तु अब हाल ही में हुई शोधों के अनुसार स्वप्नों के बारे में मनःशास्त्री भी कहने लगे है कि कुछ स्वप्न ऐसे होते है जिनकी आधुनिक मनोविज्ञान के आधार पर व्याख्या नहीं की जा सकती है। कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय तथा शिकागो विश्वविद्यालय ने इस तरह के अव्याख्येय स्वप्नों का रहस्य सुलझाने के लिए अलग से ‘स्वप्न परीक्षण विभाग’ खोले है। जहाँ लोगों को बुलाया जाता है, उन्हें पैसे देकर सुलाया जाता है। वे गाढ़ी नींद लेकर सो सके इसके लिए आवश्यक प्रबन्ध भी किये जाते है। और सोते समय उनके मस्तिष्क में चलने वाली विद्युत तरंगों को रिकार्ड करने के साथ - साथ जागने के बाद उन्हें याद रहे स्वप्नों का विश्लेषण भी किया जाता है।

इन विश्वविद्यालयों द्वारा की गयी शोधों से प्राप्त निष्कर्ष फ्रायड के एकाँगी स्वप्न सिद्धाँत की यह मान्यता लगभग ध्वस्त हो चुकी है। दैनिक जीवन की अतृप्त आकांक्षायें, इच्छायें और संवेदनायें ही निद्रा के समय स्वप्न के रूप में परिलक्षित होती है। मनः शास्त्र के विश्व विख्यात आचार्य डा. कार्ल जुँग ने अपनी पुस्तक ‘मेमोरिज ड्ऱीक्स रिफलैक्शन्स’ में लिखा है चेतन मस्तिष्क को ज्ञान प्राप्ति के जितने साधन प्राप्त है उससे कही अधिक और समर्थ, ठोस साधन उपचेतना ( सब काशंस ) मन को उपलब्ध है। चेतन मस्तिष्क दृश्य ; श्रव्य तथा अन्य इन्द्रियानुभूतियों द्वारा ज्ञानार्जित करता है परन्तु - उपचेतना के पास तो ज्ञान प्राप्ति के असीम साधन है। वह अंतरिक्ष में प्रवाहित होते रहने वाले संकेत कंपनों को भी पकड़ लेता है जिनमें असीम जानकारियाँ होती है और वह भी विभिन्न स्तरों की।

यह उपचेतना तभी सक्रिय होता है जब चेतन मन सो जाता है। सामान्यतः हमारा शरीर ही सोता है, चेतन मन नहीं, जिसे मस्तिष्क भी कह सकते है। सोते समय मन में चलते रहने वाले विचारों और कल्पनाओं की दृश्यावली साधारण स्वप्नों के रूप में उभर कर आती है। लेकिन जब मस्तिष्क भी थका होता है - चेतन मन भी सो जाता हे तो गाढ़ी नींद के समय उपचेतन मन सक्रिय होता है।

फलोरन्स ( इटली ) के मनः शास्त्री गेस्टन उग्दियानी का कहना है कि सक्रिय मस्तिष्क शिथिल होने अथवा सुषुप्ति की अवस्था में चले जाने के बाद दिखाई पड़ने वाले स्वप्नों में कई ऐसे संकेत ढूंढ़े जा सकते है जो महत्वपूर्ण कहे जा सकते है। इसी स्थिति में बहुतों को ऐसे आधार हाथ लगते है जिन्हें बहुत माथा - पच्ची करने के बाद भी नहीं समझा जा सका है। अपने स्वयं के एक स्वप्न का विश्लेषण करते हुए उन्होंने यह बात कही थी।

घटना एस समय की है जब गेस्टन सात वर्ष की आयु के बालक थे। तब वे प्रायः सपना देखा करते थे कि वे किसी बहुत बड़े मन्दिर में पुजारी का काम करते है, सपना इतना अधिक स्पष्ट था कि इमारत का नक्शा उनके मस्तिष्क पर जमा रहा और उस स्वप्न की गहरी छाप भी उनके मस्तिष्क में जमी रही। एक बार जब वे भारत आये तो उन्होंने फिर वैसा स्वप्न देखा। भारत मंदिरों का देश है यह तो उन्हें मालूम ही था अतः वे अपनी जिज्ञासा का समाधान करने के लिए सभी प्रख्यात मंदिरों में गये। खोजते - खोजते वे महाबली पुरम् नगर के एक मन्दिर में गये तो उसे देख कर वे सन्न रह गये। यह मन्दिर हू बहू स्वप्न में देखे गये मन्दिर के समान था। इस स्वप्न का विश्लेषण उन्होंने पूर्व जन्म की स्मृति बताते हुए किया है।

स्वप्नों के साथ जुड़ी हुई दूर दर्शन, अविज्ञात का ज्ञान और भविष्य के पूर्वाभास की घटनायें भी यही सिद्ध करती है कि मनुष्य की चेतना स्वप्नों के माध्यम से सूक्ष्म जगत् की हलचलों के साथ अपना संपर्क स्थापित कर लेती है। मस्तिष्क या चेतन मन के शिथिल होते ही मनुष्य को सूक्ष्म चेतना पर छाया रहने वाला उनका आवरण हट जाता है और उसका संपर्क दिव्य चेतना से जुड़ जाता है। ध्यान धारणा, समाधि और योग निद्रा के समय भी चेतन मन तथा बुद्धि की दौड़ - धूप कम हो जाती है और उस समय भी अन्तः चेतना विराट् चेतना के साथ संपर्क कर लेती है। पूर्ण समाधि अथवा अर्ध समाधि की स्थिति में साधको को जो दिव्य अनुभूतियाँ होती है उन्हें जागृत एवं अधिक यथार्थ स्वप्न कहा जाया तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

प्रसिद्ध मनोविज्ञानी हैफनर मारस का तो कहना है कि अपनी अन्तश्चेतना को इस प्रकार प्रशिक्षित भी किया जा सकता है कि वह स्वप्नों का संकेत समझ सके। सिडनी के टामफीचर नामक व्यक्ति ने तो यह कर भी दिखाया है। इतना ही नहीं उन्होंने ऐसी क्षमता भी अर्जित कर ली है कि जागृत स्थिति में न सुलझायी जा सकने वाली समस्याओं और गुत्थियों को वे स्वप्नों के माध्यम से सुलझा सके। इस क्षमता को प्राप्त करने के लिए उन्होंने वर्षों तक कई अभ्यास किये थे और उनमें सफलता भी पायी। टामफीयर की स्वप्न सिद्धि के कई प्रमाण सिडनी के समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहे है।

एक प्रमाण तो सिडनी नगर के पुलिस दफ्तर में भी दर्ज है। इसमें फीयर ने एक चुराये गये बालक को अपहरणकर्ताओं के चंगुल से मुक्त कराने में पुलिस की सहायता की थी। बालक इस समय कहाँ है, उसे किन व्यक्तियों ने चुराया है और उनका क्या पता ठिकाना है, वे बालक को क्या - क्या यातनायें दे रहे है आदि बातों का विवरण टातफीयर ने स्वप्न में देखकर बताया था और इसके लिए सिडनी पुलिस ने टामफीचर को दो हजार डौलर पुरस्कार स्वरूप भी दिये थे।

योग साधना, ध्यान- अभ्यास और आत्मिक व्यायामों द्वारा हो अथवा पूर्व जन्मों के संस्कारों के परिणाम स्वरूप जब व्यक्ति का आत्मिक स्तर इतना ऊंचा उठ जाता हे कि उसका मन आत्मा की सन्निधि में पहुँच जाय तो वह इस स्तर की अनुभूतियाँ स्वप्नों के माध्यम से प्राप्त करता है। उपचेतन मन ऐसे स्वप्न संकेत ही पकड़ता है जिनसे किसी का भला होता हो अथवा अपना पवित्र साध्य भी पवित्र साधनों से सधता हो। स्वप्नों के माध्यम से आज तक न तो किसी को अनीति अपनाने अथवा अवाँछनीय लाभ उठाने के संकेत मिले है अथवा न किसी को पहुँचाने की ही प्रेरणा मिली है। ऐसे उदाहरण अवश्य मिलते है जिनमें व्यक्ति के अपने सौभाग्य उदय में आर हे अवरोधों को हटाने की प्रेरणा मिली हो।

स्वप्नों के माध्यम से विराट् चेतना व्यक्ति को दिशा बोध भी प्रदान करती है जैसे -सुदूर चौकियों पर लड़ रहे सैनिकों को उनके अफसर वायरलैस अथवा ट्रांसमीटर संकेत देता है कि अमुक दिशा में बढ़ो। अमुक मोर्चे पर आक्रमण करों। उसी प्रकार विराट् चेतना भी व्यक्ति चेतना का मार्ग दर्शन करती है। अमेरिका के चार्ल्स फिल्मोर को प्राप्त स्वप्न संकेत इसी सिद्धाँत को प्रमाणित करता है।

चार्ल्स फिल्मोर एक सात्विक प्रकृति के व्यक्ति थे। वे स्वयं ध्यान साधना का अभ्यास करते और लोगों से भी कराते थे। एक रात उन्होंने स्वप्न देखा कि एक अपरिचित व्यक्ति उन्हें अपने पीछे - पीछे आने का संकेत कर रहा है। वे उसके पीछे -पीछे चल पड़े और कसाँस नगर पहुँच गये। फिर वह व्यक्ति उन्हें ऐसे स्थान पर ले गया जो उनके लिए अपरिचित था। वहाँ उसने चार्ल्स के हाथ में एक समाचार पत्र दिया जिसका पहला अक्षर ‘यू’ ही वे पढ़ पाये थे कि एक के बाद एक अनेक समाचार पत्र उनके हाथों में आते गये। साथ ही उन्होंने देखा कि सामने बैठे बहुत से व्यक्ति ध्यान कर रहे है।

स्पष्ट ही इस स्वप्न का अर्थ उन्होंने लगाया कि वे ध्यान साधना का प्रचार करे, संयोग की बात कि एक दिन कुछ लोगों ने उनके पास आ कर इस कार्य को संगठन बद्ध प्रचार करने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद चार्ल्स फिल्मोर कसाँस शहर चले गये। वहाँ के लोगों ने जिस स्थान पर कार्यालय खोलने की बात कही वह स्थान यो तो चार्ल्स के लिए अपरिचित था परन्तु उन्होंने पाया कि स्वप्न में जिस स्थान को उन्होंने देखा था यह वही स्थान है उसी स्थान पर सोसायटी ऑफ सायलेण्ट यूनिटि नामक संस्था की स्थापना की। संस्था की ओर से जो समाचार पत्र निकाला गया उसका प्रथम अक्षर ‘यू’ ही था और अखबार का नाम ‘यूनिटि’ रखा गया। बाद में और भी पत्र पत्रिकायें वहाँ से छपी। और स्वप्न का तथ्य सत्य हो गया।

कई बार स्वप्न इतने प्रेरक होते है कि उनके कारण मनुष्य की जीवन दिशा ही बदल जाती है। सभी जानते है कि भगवान बुद्ध राजकुमार थे। उनके बीत राम संन्यासी हो जाने की भविष्य वाणी ज्योतिषियों से सुन कर शुद्धोधन ने इस बात का हर सम्भव प्रयास किया था कि उनके एक वृद्ध और शव यात्रा को देख कर जीव प्रवाह के मोड़ देखे। इन घटनाओं ने उनके चित्त व विचलित किया। एक दिन उन्होंने स्वप्न देखा कि श्वेत वस्त्रधारी एक वयोवृद्ध दिव्य पुरुष आया और उनके हाथ पकड़ कर श्मशान ले गया। उंगली का इशारा करते हुए उस दिव्य पुरुष ने बताया - देखा यह तेरी लाश है। इसे देख और प्राप्त हुए जीवन का सदुपयोग कर। आँख खुलते ही बुद्ध ने निश्चय कर डाला कि इस बहुमूल्य सौभाग्य का उन्हें किस प्रकार सदुपयोग करना है - जीवन का क्या प्रयोजन है और वे इसी क्षण रात में ही अपने राजपाट को छोड़ कर श्रेय की खोज में निकल पड़े तथा उसे प्राप्त कर ही लिया।

फ्राँस की राज्यक्रांति की सफल संचालिका ‘जान ऑफ आर्क’ एक मामूली से किसान के घर में जन्मी थी। अपने पिता के घर ही उसने स्वप्न देखा कि आसमान से कोई फरिश्ता उतर कर आया है तथा उससे कह रहा है कि - अपने को पहचान! समय की पुकार सुन और स्वतन्त्रता की मशाल जला। “ उस फरिश्ते ने जोन के हाथों में एक जलती हुई मशाल भी दी। नींद खुलने पर जोन ने इन बातों को गाँठ में बाँध लिया और उसी समय से फ्राँस को स्वतंत्र कराने के लिए उत्साह के साथ काम करने लगी। इतिहास साक्षी है कि जोन ने कितनी वीरता के साथ स्वतन्त्रता संग्राम लड़ा और अपने प्राणो की बाजी लगा कर सफलता प्राप्त कर सकी तथा अपने आपको अमर कर गयी।

इस तरह के दिव्य आभारू और दिव्य प्रेरणायें देने वाले स्वप्न उन्हीं व्यक्तियों को आते है जिनकी मनोभूमि अधिक विकसित होती है। पूर्व संचित संस्कारों के कारण भी किन्हीं में ऐसी विशेषतायें पाई जाती है। कई लोग साधना - उपासना द्वारा अपनी मलीनताओं तथा विकृतियां का शोधन करके भी इस प्रकार की आत्मिक प्रखरता उत्पन्न करते है और स्वप्नों के माध्यम से, ऐसे संकेत प्राप्त करते है जो आत्मतत्व की खोज में सहायक होते है अथवा आत्मसत्ता के अस्तित्व की पुष्टि करते है।

ऋषि पिप्पलाद ने निद्रा को इसीलिए यज्ञ कहा है कि इस अवस्था में भी व्यक्तिक चेतना परम चेतना के साथ आसानी से एकाकार हो जाती है। पाण्डूक्योपनिषद् में बताया गया है -

स्वप्न स्थानों हुन्तः प्रज्ञः सहाँग एकोनविंशति मुखः प्रविविक्त भुक तैज सो द्वितीय पादः(4) स्वप्न स्थान सौजस् उकारो द्वितीया मात्रोतकर्ष दुभयत्वा द्वोर्त्कषति हवैज्ञान संतति समानश्च भवति(10)

अर्थात्- स्वप्न अवस्था में जब मन सो जाता है तब उसकी प्रज्ञाबुद्धि अन्दर ही काम करने लगती है। इस समय उसके सातों अंग (पाँच तन्मात्रायें, अहंकार और महतत्व) उन्नीस मुख (दस इंद्रियां, पाँच प्राण और चार अतः करण) भी उसी में लीन हो जाते है जिनसे आत्मा शरीर के समान ही संसार का भोग करता है। यह आत्मा का तेजस् द्वितीय पाद है अर्थात् यह जागृति और सुषुप्ति के बीच की अवस्था आत्मतत्व की खोज में सहायक हो सकती है।

स्वप्न मन को आत्मा से जोड़ने वाली अवस्था के रूप में भी बदले जा सकते है। शास्त्रकारों ने इसके लिए साधना उपासना द्वारा अपनी चेतना का परिष्कार, मलीनताओं का निवारण तथा आत्मशोधन के द्वारा अपने व्यक्तित्व का परिपाक करना पड़ता है जिस समय चेतना पूर्णतः निर्मल, शुद्ध हो जाती है उस समय आत्मसत्ता-परमात्मसत्ता का उसी प्रकार अनुभव किया जा सकता है, जिस प्रकार कि सामने बैठे हुए व्यक्ति या रखी हुई वस्तु का।

साधना क्षेत्र में आत्मिक प्रगति की कितनी मंजिल पार कर ली गयी है इसका पता भी स्वप्नों से लगाया जा सकता है पुराणों और आर्ष-ग्रन्थों में इस प्रकार के कई स्वप्नों का उल्लेख आता है जिनसे यह पता चलता है कि साधना क्षेत्र में हमारी प्रगति किस गति से हो रही है। स्वप्नों के संकेत यदि समझना सम्भव हो सके तो न केवल आत्मिक स्थिति का स्तर मालूम किया जा सकता है वरन् उसके माध्यम से सूक्ष्म को समझ पाना तथा उसके साथ ताल मेल बिठाना भी सम्भव हो सकता है। प्रश्नोपनिषद् में महर्षि ने निद्रा को इसीलिए यज्ञ कहा है कि उस अवस्था में चेतना के अन्तर्मुख होने की सम्भावना भी रहती है। अन्यथा निद्रा आलस्य प्रमाद की तामसिक वृत्ति भी हो सकती है।


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