रामकृष्ण परमहंस से किसी जिज्ञासु ने पूछा - ‘क्या मंत्र जप सबके लिए समान फलदायक होते हैं?’ उन्होंने उत्तर दिया- नहीं। ऐसा क्यों ? के उत्तर में परमहंस जी ने जिज्ञासु को एक कथा सुनाई।
एक राजा था। उसका मंत्री नित्य जप करता। राजा ने जप का फल पूछा तो उसने कहा-वह सबके लिए समान नहीं होता। इस पर राजा को असमंजस हुआ और वह कारण बताने का आग्रह करने लगा। मंत्री बहुत दिन तक तो टालता रहा, पर एक दिन उपयुक्त अवसर देखकर समाधान कर देने का ही निश्चय किया।
मंत्री और राजा एकान्त वार्ता कर रहे थे। एक छोटा बालक और वहाँ खड़ा था। मंत्री ने बच्चे से कहा- राजा साहब के मुँह पर पाँच चपत जमाओ, मंत्री की बात पर बच्चे ने ध्यान नहीं दिया और जैसे का तैसे ही खड़ा रहा। इस अपमान पर राजा को बहुत क्रोध आया और उसने बच्चे को हुक्म दिया कि मंत्री के मुँह पर जोर से पाँच चाँटे लगाओ। बच्चा तुरंत बढ़ा और उसने तड़ातड़ चाँटे लगा दिए।
मंत्री ने निश्चिन्ततापूर्वक कहा-राजन्। मंत्र शक्ति इस बच्चे की तरह है जिसे इस बात का विवेक रहता है कि किस का कहना मानना चाहिए, किस का नहीं। किस पर अनुग्रह करना चाहिए किस पर नहीं।
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