सादगी अपनायें शालीनता बरतें!

January 1978

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सीधी, सरल और सज्जनता की नीति अपनाकर कदाचित ही कोई अपने को तत्काल चर्चा का विषय बना सका हो। इसमें देर लगती है। महानता वट वृक्ष की तरह है जिसकी प्रगति क्रमबद्ध रूप से होती है। उसकी अभिवृद्धि और सुरक्षा के लिए लम्बे समय तक तत्परता और सतर्कता का खाद, पानी मिलना चाहिए। जिन्हें वाहवाही की आतुरता है वे इतनी प्रतीक्षा क्यों करेंगे और सज्जनता एवं प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए कष्ट क्यों सहेंगे? आतुरता के लिए इतने महंगे मूल्य पर वाहवाही खरीद सकना कठिन है। उसके लिए धूर्तता ही सरल उपाय रह जाता है। उसमें कोई त्याग करने या शौर्य, साहस प्रदर्शित करने की आवश्यकता पड़ती है तो वह नाटकीयता और उच्छृंखलता के ऐसे तरीके अपनाने भर से पूरी हो जाती है जो सर्व साधारण के स्वभाव में सम्मिलित नहीं है। जिसका सामान्य जीवन में प्रचलन नहीं है। ऐसे काम प्रायः अनैतिक ही होते हैं। अनैतिक न सही क्षुद्रता से भरे हुए तो होते ही हैं। उन्हें ओछे बचकाने एवं छिछोरे ही कहा जा सकता है। नाटकीय सजधज बनाने वाले लोग प्रायः ऐसी ही आत्महीनता से ग्रसित होते हैं। बड़प्पन के लिए जिस सज्जनता की आवश्यकता है वह नाटकीयता से नहीं बनती उसे स्वभाव का- चरित्र का एक अंग बनाना पड़ता है और यह कार्य समय और श्रम-साध्य ही नहीं है उसमें आदर्शवाद और दृढ़ चरित्र का भी समावेश होना चाहिए। सज्जनता तो संस्कृति का ही दूसरा नाम है। इसे जीवन को साधनात्मक बनाकर ही पाया जा सकता है।

मनुष्य की इसी क्षुद्रता का बड़ा मनोरंजक एवं सुविस्तृत वर्णन अंग्रेजी उपन्यासकार सामरसेट माम ने बड़ी खूबी के साथ किया है। उनकी पुस्तक ‘दि समग अप’ तो ऐसी है जिसमें इन बचकाने लोगों की मनःस्थिति, तर्क, एवं मान्यता का पूरा विश्लेषण भली प्रकार समझा जा सकता है। ऐसे आतुर मनुष्य ही आतंकवादी बनते, उद्धत आचरण करते, गुण्डागर्दी अपनाते हैं यहाँ तक कि अपराधी बन कर फाँसी पर चढ़ने तक के लिए वे तैयार हो जाते हैं। चर्चा बुरी ही क्यों न हो, पर होनी अवश्य चाहिए। अनेक आततायी व्यक्ति किसी अभाव के कारण नहीं इसी उद्धत ओछेपन से पीड़ित होकर कुकृत्य करने पर उतारू होते हैं और शूरवीरों में गणना कराने की सनक में अत्याचारी पैशाचिकता तक को अंगीकार कर लेते हैं।

लोग अपना बड़प्पन इस बात में समझते हैं कि अधिक लोगों का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हो। अधिक लोग उनकी चर्चा करें। फैशन, सजधज, ठाट-बाट, और अमीरों जैसे खर्च करके लोग सम्पर्क क्षेत्र पर यह आतंक जमाना चाहते हैं कि उनकी विशेष स्थिति स्वीकार की जाय और उन्हें बार-बार देखा जाय, उनके बारे में बार-बार सोचा जाय। यह उद्देश्य पूरा करने के लिए जितना आडम्बर बनाना पड़ता है, जितना सरंजाम जुटाना पड़ता है और जितना समय खर्च करना पड़ता है, उसे सामान्य रूप से नहीं किया जा सकता है। उसके लिए असामान्य तरीके अपनाने पड़ते हैं। वह तरीके हैं- धूर्तता, नाटकीयता, उच्छृंखलता, आडम्बर और पाखण्ड। यह सारी सज्जा असत्य के कंकाल में ही उठाई जा सकती है। छद्म नीति अपनाये बिना इतना बड़ा ढाँचा खड़ा ही नहीं हो सकता, जिसे लोग घूर-घूर कर देखें और बार-बार सोचें।

यह एक भ्रान्त धारणा है कि नुकसान पहुँचाने की क्षमता का नाम शक्ति है। ऐसे काम प्रायः लुक-छिप कर किए जाते हैं। बेखबर आदमी पर छिप कर हमला करने से तो कोई अदना आदमी किसी सशक्त के प्राण हरण कर सकता है बगल में छुरी घोंप देना किसी के लिए भी सरल है। विश्वासघात करने में उनकी धूर्तता उतनी कारगर नहीं होती जितनी कि सामने वालों की सज्जनता। जिसने विश्वास किया उसी पर हमला बोल देना कायरता है, इस कायर आक्रमणकारिता से घृणा, द्वेष, कटुता, प्रतिशोध की भावना उलट कर अपने लिए ही सर्वनाश के कारण उपस्थित करती है।

सौजन्य की सद्भावना को कुण्ठित करने वाले कई कुसंस्कार हैं जो हमें असभ्य और धृष्ट बनाते चले जाते हैं। दूसरों को छोटा बनाकर अपने को बड़ा बनाना गलत तरीका है। अच्छाई की दृष्टि से हम औरों से आगे बढ़ें तो यह स्वस्थ प्रतियोगिता है। श्रेष्ठता की घुड़दौड़ में आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा को सराहा जा सकता है, पर साथियों को लात मार कर गिरा देना और इस स्थिति का लाभ उठा कर अपने को विजेता घोषित करना बेकार है। इसी प्रकार अपनी वर्तमान स्थिति पर असन्तुष्ट रहना भी शील सौजन्य के विपरीत है। जो उपलब्ध है उस पर प्रसन्नता भरा सन्तोष अनुभव करें, साथ ही आगे बढ़ने का उत्साह जारी रखें। इतना ही पर्याप्त है, पर जो सदा असन्तुष्ट ही रहता है, उसकी खीज और खिन्नता ही उसकी शक्तियों को नष्ट करती रहती है। अहंकार मनुष्य को सद्भावनाओं से वंचित करता है। दूसरों का व्यंग्य, उपहास, अपमान करके कई व्यक्ति अपना बड़प्पन सिद्ध करते हैं। कई सम्वेदन शून्य सहानुभूति रहित और निर्मम प्रकृति के होते हैं उन्हें दूसरों की स्थिति समझने की फुरसत नहीं होती और न हृदय इतना विशाल होता है जिसके कारण किसी पर क्या बीतती है इसका अनुभव किया जा सके। इन दुष्प्रवृत्तियों के रहते उस शील सौजन्य का विकास नहीं हो सकता, जिससे मनुष्य अपनी और दूसरों की आँखों में ऊँचा उठता तथा सम्मानित बनता है।

यदि तत्काल प्रसिद्धि पाने की आतुरता न हो और सम्पर्क क्षेत्र में अपने लिए भाव भरा सम्मान प्राप्त करने का धैर्य हो तो फिर एक ही सुनिश्चित मार्ग है- सज्जनता अपनाने का। यह सच्चाई और शालीनता पर अवलम्बित है। धीरे-धीरे लोग ही इसे अपनाते हैं। जिनमें दूरदर्शी विवेक की मात्रा जितनी होगी- जिनमें आदर्शों के प्रति निष्ठा का आत्मगौरव होगा उन्हीं के लिए यह मार्ग सरल है। नम्रता, विनयशीलता, मर्यादा, शिष्टता का व्यवहार देखकर किसी की सज्जनता का आरम्भिक परिचय मिलता है। उद्धत स्वभाव के मनुष्यों की अशिष्टता, वाणी और व्यवहार में झलकती देखी जा सकती है और यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह व्यक्ति कितना क्षुद्र और कितना ओछा है। सौजन्य हीन व्यक्ति असभ्य माने जाते हैं, तुनक मिज़ाज, अशिष्ट तथा उद्धत वेश विन्यास बनाने वाले व्यक्ति प्रायः इसी स्तर के होते हैं।

अपने सम्पर्क क्षेत्र के सभी व्यक्तियों से व्यवहार सहानुभूति पूर्ण रखें। वह न्याय संगत रहे और सहानुभूतिपूर्ण स्वार्थों के टकराव में यदि कुछ घाटा भी पड़ता हो तो उसे सहन किया जा सकता है किन्तु सद्भाव गँवा देने की क्षति ऐसी है जो अन्ततः अधिक घाटे की सिद्ध होगी। जब तक टकराव का कोई अत्यन्त ही अनैतिक या असभ्य कारण न हो तब तक व्यवहार कुशलता इसी में है कि सद्भावों को बनाये ही रखा जाय। इससे इतना लाभ तो प्रत्यक्ष ही है कि शत्रुता का नया सिलसिला चल पड़ने से जो आक्रमण-प्रत्याक्रमण का सिलसिला चलता है और उससे जो मानसिक अशांति छाई रहती है उसकी आवश्यकता न पड़ेगी। विद्वेष के कारण उत्पन्न होने वाली मानसिक अशान्ति जितनी हानि पहुँचाती है उसकी तुलना में वह घाटा कम ही रहेगा जो स्वार्थों में थोड़ी कमी करके भी सद्भावों को बनाये रख सके।

सौजन्य निजी जीवन में सादगी के रूप में दीखता है और दूसरों के साथ व्यवहार के अवसर आने पर वह नम्रता, विनयशीलता के रूप में दिखाई पड़ता है। उसमें दूसरों के सम्मान का भाव है न कि अपना छोटापन प्रदर्शित करने का नम्रता का भरा शिष्ट व्यवहार करने पर कोई अपनी इज्जत गंवाता नहीं है और न किसी की दृष्टि में छोटा बनता है, वरन् सच तो यह है कि उसकी इज्जत और भी अधिक बढ़ जाती है। किसी का सम्मान करने का अर्थ है बदले में उसका सम्मान पाना। इससे कम कीमत सम्मान पाने की और कुछ हो ही नहीं सकती कि हम सादगी के परिधान पहनें, शालीन लोगों जैसी वेशभूषा रखें और शिष्टता भरा मधुर व्यवहार करें, मीठे वचन बोलने से दूसरों को जितना सन्तुष्ट किया जा सकता है उतना टोकरी भर मिठाई खिला देने पर भी सम्भव नहीं है।

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