परमाणु बिजली घरों से संसार को जितनी बिजली आवश्यक है उसका सातवाँश पूरा होने लगा है अनुमान है कि एक दिन इनसे सारी की सारी आवश्यकता पूर्ति होने लगेगी किन्तु इससे विकिरण की और इन बिजली घरों में बचे रेडियो सक्रिय कूड़े की मात्रा इतनी अधिक जमा हो जायेगी कि उसे ही ठिकाने लगाना मनुष्य जाति के लिए चुनौती बन जायेगी।
कुछ रिएक्टरों से प्लूटोनियम 239 पैदा होता है उसका दूषण समाप्त होने के लिए 48 हजार वर्षों की लंबी अवधि चाहिए। इसके 10 लाख वें हिस्से से भी फेफड़े का कैंसर हो जाता है। इतना भीषण विष और उसकी इतनी लंबी आयु का स्पष्ट अर्थ यही होगा कि कुछ ही वर्षों बाद की पीढ़ी में से एक भी बालक ऐसा नहीं होगा जो अपने साथ अनुवांशिक कैंसर लेकर न जन्मा हो।
परमाणु शक्ति के इस विषाक्त प्रभाव तथा अनुवांशिकी अभिशाप को देखकर मानवतावादी चिन्तन को कुछ अत्यन्त कठोर निर्णय करने आवश्यक हो गई है। परमाणु शक्ति सम्पन्न होने वाली बात ही मुख्य नहीं है, वरन् प्रौद्योगिकी के भीषण विकास का भी प्रश्न है यदि इस पर रोक नहीं लगाई जाती तो विद्युत शक्ति के लिए भी अणु-विखण्डन आवश्यक बना रहेगा और इस तरह भावी पीढ़ी की बाधिता व मनुष्यता के विनाश का चक्र चलता ही रहेगा।
क्यों कर लोग मशीनों का आश्रय लें, शरीरों से श्रम करने की नीति स्वल्प उत्पादन वाली तो होगी, पर उससे जहाँ लोग स्वयं स्वस्थ होंगे, प्रतिस्पर्द्धायें घटेंगी हर व्यक्ति को काम मिलेगा, अर्थ तन्त्र विकेन्द्रित नहीं होगा वहीं मानवता का भविष्य उज्ज्वल और संरक्षित बनेगा इसके लिए आज कुछ अभावग्रस्त जीवन जीना पड़ता हो तो उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। वैसे प्राकृतिक जीवन से बढ़कर अन्य कोई आनन्द नहीं।
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