उस जमींदार ने विधवा बुढ़िया का खेत बलपूर्वक छीन लिया। बुढ़िया ने गाँव के सभी लोगों के पास इस अत्याचार से बचाने की पुकार की, पर किसी की हिम्मत जमींदार के सामने मुँह खोलने की न हुई।
दुखी बुढ़िया ने स्वयं ही साहस समेटा और जमींदार के पास यह कहने पहुँची कि खेत नहीं लौटाते तो उसमें से एक टोकरी मिट्टी खोद लेने दें, ताकि उसे कुछ तो मिलने का संतोष हो जाय।
जमींदार रजामंद हो गया, और बुढ़िया को साथ लेकर खेत पहुँचा। उसने रोते धोते एक बड़ी टोकरी मिट्टी से भर ली और कहा उसे उठवा कर मेरे सिर पर रखवा दें।
टोकरी बहुत भारी हो गई थी। जमींदार ने अकड़कर कहा-बुढ़िया इतनी सारी मिट्टी सिर पर रखेगी तो दबकर मर जाएगी।
बुढ़िया ने उलट कर पूछा “यदि इतनी सी मिट्टी से मैं दब कर मर जाऊंगी तो तू पूरे खेत की मिट्टी लेकर जीवित कैसे रहेगा?”
जमींदार ने कुछ सोचा, उसका सिर लज्जा से झुक गया और बुढ़िया का खेत लौटा दिया।
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