माल्थस ने इस शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ही यह चेतावनी दे दी थी कि जनसंख्या वृद्धि की वर्तमान दर पर अविलम्ब रोक लगाई जानी चाहिए अन्यथा मानवता भयंकर प्राकृतिक दुष्परिणामों के लिए तैयार रहे। जनसंख्या वृद्धि ज्यामितीय गणना के अनुसार अर्थात् 77 में 1, 78 में 2, 79 में 4 और 80 में 8 की दर से बढ़ती है तो अन्न उत्पादन तमाम सिंचाई साधनों के विकास, रासायनिक खाद की मात्रा बढ़ाकर अधिकतम भूमि कृषि योग्य बना कर भी यदि बढ़ाई जाती है तो उत्पादन गणितीय गणना से अर्थात् 77 में 1, 78 में 2, 79 में 4 और 80 में 4 मात्र इसी गति से बढ़ेगा एक स्थिति वह आयेगी जब वह विराम तक भी पहुँच जायेगा, उस समय क्या होगा?
तब प्रकृति का ‘संहारक सिद्धान्त’ प्रारम्भ होगा। माल्थस ने बताया यदि मनुष्य जनसंख्या रोकने के लिए विवेक से काम नहीं लेता तो फिर प्रकृति अर्थात्- स्वयं संभूत समस्यायें स्वतः ही सर्वनाश पर उतारू हो जायेंगी। अच्छा तो यह है कि लोग संयमशील जीवन जियें पर यदि वैसा सम्भव नहीं तो जन्म निरोध के कृत्रिम साधन भी बुरे नहीं- इतने पर भी यदि मनुष्य अपनी जिद पर अड़ा रहता है तो उसे अभी से युद्ध पूर्व से युद्धाभ्यास की तरह विनाश के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
एक ओर मानवता भूख की समस्या से भयाक्रान्त है तो दूसरा पृष्ठ यह है कि इस पर कोई भी विवेकपूर्ण रवैया अपनाने को तैयार नहीं हो रहा। यह एक ऐसी समस्या है जो हर व्यक्ति, हर देश के सामने प्रश्न चिन्ह लगाती और पूछती है- “आप इसके लिए क्या कर रहे हैं?” यह एक ऐसा महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसके हल में परम्पराएं, धर्म, देश जाति की संकीर्णताओं को बाधक नहीं बनना चाहिए। समूची मानवता को दृष्टि में रखकर इस दिशा में उदारतापूर्वक सोचना और व्यक्तिगत जीवन में कठोरता बरतना आवश्यक है।
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