नया! स्वर्गलोक बनेगा और वहाँ जाने का रास्ता भी

February 1974

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यह विश्व बहुत बड़ा है। उसके आकार-विस्तार और महत्व की गरिमा को कम नहीं किया जा सकता। फिर भी यह मानना ही पड़ेगा कि चेतन की तुलना में जड़ का महत्व नगण्य है। मनुष्य उन सम्भावनाओं से भरापूरा है, जिनके आधार पर असम्भव को सम्भव बनाया जा सकता है।

मानवी-व्यक्तित्व में ईश्वर की सत्ता का भरपूर समावेश है। व्यक्ति अपनी सूक्ष्म दृष्टि को तीव्र बनाकर अपनी गरिमा को समझे और जो महान् संभावनाऐं उसके भीतर विद्यमान हैं, उन्हें जगाने में प्रवृत्त हो तो निस्सन्देह उसका कर्तृत्व इतना महान् हो सकता है, जिसे ईश्वर के समकक्ष माना जा सके।

यों मनुष्य के कलेवर की अपूर्णता और तुच्छता स्पष्ट हैं, पर उसके अन्तराल में जो सम्भावनाऐं बीजरूप से छिपी पड़ी हैं, उन्हें नगण्य नहीं ठहराया जा सकता। आन्तरिक-चेतना को विकसित करके और अपने भीतर भर एक से एक अद्भुत रत्न-भण्डारों को हस्तगत कर सकता है और सिद्ध-योगी के—देवदूत अवतार के स्तर पर पहुँच कर ईश्वर का राजकुमार कहला सकने का अधिकारी बन सकता है।

भौतिक जगत में भी उसकी चेतना इतनी सम्भावनाऐं प्रस्तुत कर सकती हैं कि अन्य जीवधारी उसे देवताओं की करामात स्तर की ही मान सकते हैं। पिछले दिनों जो वैज्ञानिक प्रगति हुई हैं, उसे पाँच सौ वर्ष पुराना कोई मनुष्य कहीं जीवित हो तो इस जमाने को जादुई-लोक की तरह ही हक्का-बक्का होकर देख सकता है।

निकट भविष्य में दृश्यमान वैज्ञानिक उपलब्धियों में एक नई कड़ी जुड़ने वाली है, वह है—’स्वर्ग की सीढ़ी’। अब तक यह कल्पना जगत की उड़ान ही समझी जाती थी कि कोई व्यक्ति शरीर समेत अन्तरिक्ष में अवस्थित स्वर्गलोक के लिए सीढ़ियों पर चढ़ते हुए पहुँचे, पर अब उसका एक चरण निकट भविष्य में पूरा ही होने वाला है।

पौराणिक स्वर्ग-लोक कहाँ है? उसे ढूँढ़ निकालने की सम्भावनाओं से वैज्ञानिकों ने दो टूक इन्कार कर दिया है। उतनी सुविधाओं से भरापूरा कोई नया स्वर्ग बसाने की बात भी किसी के दिमाग में नहीं हैं, पर एक अन्तरिक्षीय प्लेट-फार्म ऐसा बनाया जाने वाला है, जिस पर एक छोटा—किन्तु सर्व सुविधा सम्पन्न नगर बसा हो और उसमें अन्तर्ग्रहीय-यात्राओं के लिए समस्त सुविधाऐं एकत्रित करके रखी जायँ। इस मध्यवर्ती स्टेशन के बन जाने से अन्तर्ग्रहीय-यात्राओं सम्बन्धी कठिनाइयों का तीन-चौथाई समाधान निकल आवेगा।

अनेक मञ्जिली ॐ ची इमारतें, मीनारें, पर्वतारोहण, पिरामिड, स्तूप आदि बनाने की महत्वाकाँक्षाऐं सम्भवतः इसीलिए रही हैं कि आकाश में ऊँचे से ऊँचे चढ़ने का आनन्द लेना मनुष्य चाहता रहा है। वायुयानों का निर्माण-विकास जहाँ उपयोगिता, आवश्यकता की दृष्टि से हुआ है, वहाँ अधिक ऊँचाई तक आकाश में विचरण करने की महत्वाकाँक्षा का योगदान भी कम नहीं रहा है। चन्द्रारोहण की सफलता और मंगल, शुक्र आदि अन्य ग्रहों पर जाने की तैयारी के पीछे अन्य कारण जो भी रहे हों, अन्तरिक्ष का आनन्द और अनुभव लेने की आकाँक्षा ने कम प्रोत्साहन नहीं दिया है। कहते हैं—रावण स्वर्ग तक सीढ़ी बनाना चाहता था, पर आलस्य वश—’आज-कल’ कहते-कहते समय टलता गया और उसकी यह अन्तिम इच्छा अधूरी ही रह गई। पर अब लगता है कि—विज्ञानवेत्ता उस आकाँक्षा को पूरा करने जा रहे हैं।

योजना यह चल रही है कि 36 हजार किलोमीटर ऊँचाई पर अन्तर्ग्रहीय उड़ानों के लिए मध्यवर्ती स्पूतनिक प्लेटफार्म बनाया जाय। यह प्लेटफार्म ठीक चौबीस घण्टे में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करेगा। इतने ही समय में पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। समानान्तर चाल से चलने वाली दो रेल गाड़ियाँ यदि अलग-अलग पटरियों पर चलती रहे तो दोनों पर सवार यात्री यही अनुभव करेंगे कि वे गाड़ियाँ आमने-सामने खड़ी भर हैं। इसी प्रकार पृथ्वी और स्पूतनिक की चाल जब समान होगी तो वह प्लेटफार्म ऐसा प्रतीत होगा कि आकाश में एक ही स्थान पर स्थिर खड़ा है।

जमीन से आसमान तक सीड़ी बनाने का विचार इस स्पूतनिक प्लेटफार्म के साथ जुड़ा हुआ है। स्पूतनिक से लेकर धरती तक धातु निर्मित एक मजबूत सीड़ी लटकाई जायगी और उसी के सहारे माल, असबाब तथा मनुष्य अधिक आसानी एवं कम खर्च में वहाँ तक पहुँचाये जा सकेंगे। भार उठाने वाली ‘क्रेनें’ कई मञ्जिली इमारतों पर चढ़ने का प्रयोजन पूरा करने वाली ‘लिफ्ट’ जिस तरह चढ़ाने-उतारने का काम करती है, उसी उद्देश्य को यह ‘सीड़ी’ पूरा किया करेगी।

पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और सीड़ी के भार से यह प्लेटफार्म जमीन पर न आ गिरे—इस आशंका के समाधान का यह उपाय सोचा गया है कि जैसी सीड़ी नीचे लटकी हो, वैसी ही ऊपर की ओर भी खड़ी कर दी जाय—उसे अन्य ग्रहों की आकर्षण-शक्ति ऊपर को खींचेगी। फलस्वरूप दोनों आकर्षणों के बीच—भार का सन्तुलन बन जायगा और स्पूतनिक अपने स्थान पर बिना किसी कठिनाई के खड़ा रहेगा।

प्लेटफार्म पर अन्तरिक्ष-यात्रियों के लिए—निवास-आवास की तथा अन्तरिक्ष-यानों के लिए मरम्मत तथा ईधन की सुविधा-सामग्री जमा की जायेंगी। रहने के लिए-हवाई-अड्डा, घर, खाद्य-पदार्थ, टेलीफोन, गोदाम, सुधार की मशीनें, पुर्जे, बिजली, चिकित्सा आदि के सभी आवश्यक साधन यहाँ जमा करके रखे जायेंगे। हलकेपन का पूरा-पूरा ध्यान रखने पर भी यह सारे साधन एक हजार टन के लगभग भारी हो जायेंगे।

अन्तर्ग्रहीय-योजनाओं को सफल और सस्ता बनाने के लिए अन्तरिक्षीय प्लेटफार्म बनाना अब एक अनिवार्य कदम बन गया है। उस पर माल या मनुष्य पहुँचाने के लिए इस ‘स्वर्ग सीड़ी’ को भी आवश्यक मान लिया गया है। आरम्भ में इस कदम पर असाधारण खर्च आवेगा, पर अन्ततः यह एक मितव्ययी प्रयास ही सिद्ध होगा। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को पार करके भार हीनता वाले क्षेत्र तक पहुँचने में ही अन्तरिक्ष-यात्रा में पड़ने वाले खर्च का तीन-चौथाई धन खर्चा हो जाता है। अधर लटकती सीड़ी और स्पूतनिक प्लेटफार्म बन जाने पर ब्रह्माण्ड की खोज और ग्रहों की यात्रा करने के मार्ग की बहुत बड़ी कठिनाई दूर हो जायगी और मनुष्य गर्व पूर्वक कह सकेगा कि उसने अपने कर्तृत्व से एक नया ग्रह—नया लोक बनाया और वहाँ पहुँचने तक के लिए अद्भुत आकाश मार्ग तैयार किया। पौराणिक-भाषा में इस ‘मानव-निर्मित स्वर्गलोक’ और पहुँचने की स्वर्ग-सीड़ी को ‘देव-यान मार्ग’ कहा जा सकेगा। मरने का इन्तजार किये बिना, शंका, सन्देह और अविश्वास के झंझट में पड़े बिना यह स्वर्ग यात्रा अगले दिनों विज्ञान सम्भव होगा—ऐसा प्रतीत होता है। तब परलोक में निवास करने वाला महा-विज्ञानी रावण भी यह सन्तोष कर सकेगा कि स्वर्ग तक सीड़ी बनाने की मेरी आकाँक्षा-आखिर मेरी सन्तान ने पूरी ही कर दी।

जमीन से ऊपर जो भार ऊपर चढ़ाया जायगा, उसका सबसे अधिक दबाव उस स्थान पर पड़ेगा—जहाँ रस्से और स्पूतनिक जुड़ेंगे। इस जोड़ को अधिकाधिक मजबूत कैसे बनाया जाय? इसका समाधान ढूँढ़ने के लिए इंजीनियरों का एक बड़ा दल विविध प्रकार के प्रयोग कर रहा हैं। अनुमान हैं कि रस्सों को हलका रखने का भरपूर प्रयत्न करने पर भी उनका वजन 900 टन तो हो ही जायगा। इतना भार प्लेटफार्म के लिए कोई संकट उत्पन्न न करे और माल को ऊपर चढ़ाने तथा नीचे उतारने का कार्य बिना किसी विशेष ईधन का खर्च किये स्वसंचालित पद्धति से होता रहे, इसके लिए कई तरह के प्रयोग परीक्षण किये जा रहे है।

यह अन्तर्ग्रही-प्लेटफार्म बन जाने से अन्तरिक्ष-यात्रा की वे अधिकांश कठिनाइयां सरल हो जायेंगी, जिनके कारण अन्तर्ग्रहीय शोध-कार्य में पग-पग पर भारी अड़चनें प्रस्तावित प्लेटफार्म की ऊँचाई तक यदि लटकती सीड़ी के सहारे कोई अन्तरिक्ष-यान चढ़ जाय तो वह स्वयमेव बिना किसी प्रयास के पलायन गति पकड़ लेगा। 7 किलोमीटर प्रति सेकेंड की चाल से चलने वाले राकेट धरती की परिक्रमा करने लगते हैं। किन्तु जब वह चाल 11 किलोमीटर प्रति सेकेंड हो जाती हैं तो वह अन्तरिक्ष-यात्रा गति बन जाती है। इसी को ‘पलायन गति’ कहते हैं। प्रस्तावित सीड़ी के सहारे यों अन्तरिक्ष-यानों को प्लेटफार्म तक चढ़ाया जायगा, वह पलायन गति पकड़ लेगा। तब उपग्रहों में प्रयुक्त होने वाले ईधन का खर्च, स्थान भार बहुत ही कम रह जायगा और अन्तरिक्ष-यात्रा के उपक्रम के मार्ग की 80 प्रतिशत कठिनाइयाँ एवं आवश्यकताऐं हल हो जायेंगी।

मध्य आकाश में अवस्थित प्लेटफार्म बनाने की आवश्यकता जहाँ अंतर्ग्रहीय उड़ानों की दृष्टि से अनिवार्य बनती जा रही हैं, वहाँ मनोरंजन के लिए भी साहसिक यात्रा की दृष्टि से भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। सोचा यह जा रहा है कि सम्पन्न और साहसी लोग अवश्य ही ऐसी यात्रा का आनन्द लेना चाहेंगे। इसलिए एक दूसरी योजना यह चल रही है कि एक प्लेटफार्म विशुद्ध यात्रा मनोरंजन के लिए बनाया जाय और वहाँ पिकनिक के सारे साधन जुटाकर रखे जायँ। सस्ते होटलों में भी आवश्यक सुविधाऐं रहती हैं, पर अमीर लोग ऊँचे दर्जे के, अधिक खर्चीले होटलों में ही ठहरना अधिक पसन्द करते हैं। अन्तरिक्ष-यात्रा करके वहाँ थकान मिटाने और क्रीड़ा-विनोद का आनन्द लेने के लिए मनचले शौकीन, धनाध्यक्ष वहाँ अवश्य पहुँचेंगे और खर्चीली टिकट खरीद कर भी वे उस यात्रा के लिए तैयार रहेंगे। इस प्रयोजन के लिए मध्य आकाश में एक क्रीड़ा प्रांगण और वहाँ तक जाने-आने के लिए ‘अन्तरिक्ष-शिटल’ चलेगी।

अमेरिका की एक बड़ी अन्तरिक्ष-फर्म लाकहीड एयरक्राफ्ट कारपोरेशन’ ने इस कार्य को अपनी विशाल-काय योजना ‘हाइपरसोनिक्स’ में विशेषज्ञों के योग से आवश्यक साधन जुटाने के लिए कदम उठाये हैं। ध्वनि की गति से 25 गुना तेज उड़ सकने वाले यान यात्रियों को, उनके सामान को ले जाया करेंगे और जेट विमानों की तरह अपने अड्डे पर लौट आया करेंगे। इस योजना को लाकहीड तथा कई बोइंग कम्पनियाँ मिलकर कार्यान्वित करने जा रही हैं।

प्रस्तावित प्लेटफार्म से न केवल अन्तर्ग्रहीय यात्राओं के सरल बनाने का माध्यम बनाया जायगा, वरन् उस पर अनेक मनुष्य-कृत प्रयोगशालाऐं, शक्ति शाली यन्त्र उपकरणों से सुसज्जित करके रखी जायेंगी। धरती के कोलाहल से अंतर्ग्रहीय रेडियो संकेत सुनने-समझने में भारी बाधा रहती हैं, यह प्लेटफार्म के शान्त वातावरण में न रहेगी और वहाँ वह शोध अधिक अच्छी तरह हो सकेगी। उल्काओं का पृथ्वी से टकराने का खतरा बना रहता है, जो उल्का पृथ्वी के समीप आ रही होंगी, उन्हें रेडियो तोपों से चलाकर दूर भगाया जा सकेगा। समस्त पृथ्वी पर काम करने वाले—रेडियो, टेलीविजन एवं टेलीग्राम, टेलीफोन का यह एक सार्वभौम स्टेशन होगा और इस एक केन्द्र से ही समस्त पृथ्वी की संचार-सम्वाद-व्यवस्था सुसंचालित की जा सकेगी। अणु-अस्त्रों के प्रयोग को भी यहीं बैइकर रोका जा सकेगा। मौसमों की न केवल पूर्व सूचना दी जा सकेगी, वरन् उनकी रोक-थाम भी सम्भव हो सकेगी। ऐसे-ऐसे अनेक उपयोग इस मध्यवर्ती अन्तरिक्ष-स्टेशन के सोचे गये हैं और उन लाभों को ध्यान में रखते हुए उतना अधिक धन तथा साधन उस कार्य में लगाने का निश्चय किया गया है।

यह प्लेटफार्म प्रस्तावित योजना के अनुरूप इसी शताब्दी में बन जाता है या उसमें हेर-फेर अथवा इन्तजार की आवश्यकता पड़ेगी—यह भविष्य के गर्भ में हैं। पर जो योजना चल रही हैं, वो यह बताती हैं कि मानवी-मस्तिष्क और मानवी-साधनों की महत्ता कितनी अधिक हैं। मनुष्य यदि सर्वांगीण प्रगति के पथ पर चल पड़े तो यह सत्य ही सिद्ध होगा कि उसके लिए कुछ असंभव नहीं है।


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