यथार्थवादी बनें-संकल्पबल प्रखर करें

February 1974

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अभिलाषा का पूर्णता तक पहुँचाने वाले दो अत्यन्त महत्व पूर्ण माध्यम हैं—(1) यथार्थवादी दृष्टिकोण, (2) सुदृढ़ संकल्प-बल। इन दो पहियों की गाढ़ी को लुढ़काते हुए लम्बी मंजिल भी आसानी से पूरी हो सकती है।

देर तक सोच-विचारने के बाद कोई निर्णय करना और रास्ता अपनाना उचित है। सफलताओं के साथ असफलता के कारणों और परिणामों पर ध्यान रखना भी बुद्धिमानी का चिन्ह हैं। सुविधाऐं और सरलताऐं जो भी हो सकती हैं। उनका लेखा-जोखा रखना ठीक है, पर कठिनाई क्या-क्या आ सकती है और उनके निवारण के लिए क्या करना पड़ सकता है, यह उभय-पक्षीय चिन्तन हर दृष्टि से सराहनीय है। इससे हमारी काल्पनिक भावुकता और बिना पर के आसमान में उड़ने के यथार्थवादी जोश को वस्तुस्थिति समझने का अवसर मिलता है। अपने साधनों को तोलकर जो भी निर्णय किये जाते हैं व कदम बढ़ाते जाते हैं, वे आमतौर से सफल ही होते हैं।

यथार्थवादी चिन्तन आज की अपनी स्थिति पर निर्भर रहता है। दूसरों आश्वासनों की नींव पर महल खड़ा नहीं किया जाता। क्योंकि सद्भाव सम्पन्न स्वजन भी कई बार बहुत भावुक होते हैं और अपना सहयोग देने तथा दूसरों का दिलाने के लम्बे चौड़े सब्ज बाग दिखाते हैं। उनमें से कुछ तो भावुकता वश सब्ज बाग दिखा बैठते हैं और कुछ सामयिक प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए झूँठ-मूँठ बहकाते हैं। ऐसे लोग कम ही होते हैं, जो सहयोग का नपा-तुला ऐसा आश्वासन देते हैं, जो समय पर उपलब्ध भी किया जा सके। इसलिए यथार्थवादी सदा अपने ही साधनों को ध्यान में रखते हुए कोई योजना बनाते हैं, कोई निर्णय करते हैं। आश्वासनों पर बहुत अधिक भरोसा नहीं करते। ऐसे लोग छोटे कार्य भले ही हाथ में लें, छोटे कदम भले ही उठायें, पर उनकी सफलता निश्चित जैसी रहती है।

प्रगति की आकाँक्षा आवश्यक भी है और उचित भी, पर उसकी सफलता के लिए यथार्थवादी चिन्तन नितान्त आवश्यक है। भावुक काल्पनिकता इस दिशा में सहायक नहीं, बाधक ही अधिक होती है। असफलता का एक ही झोंका ऐसे लोगों की उमंगों को तोड़ मरोड़ कर रख देता है और वे आरम्भ में जितने उत्साही थे अन्त में उतने ही निराशावादी और शंकाशील बन जाते हैं। इसलिए अभिलाषाओं को मूर्त रूप देने के लिए यथार्थवादी चिन्तन की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है।

अभिलाषाओं की सफलता की मंजिल तक पहुँचाने का दूसरा कदम है—सुदृढ़ संकल्प। जो निश्चय है,उसे पूरा करने के लिए अदम्य साहस और आगत अवरोधों से निपटने का अविचल धैर्य रखकर ही आगे बढ़ सकना सम्भव है। यदि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और हवा के अवरोध की कठिनाई न हो तो ऊपर उछाली गेंद सिद्धान्त अनन्त अन्तरिक्ष में भ्रमण करने लगेगी, पर यथार्थवादी जानते हैं कि इस संसार में बिना अवरोध की गतिशीलता असम्भव है। ऊपर उड़ान भरने से पहले गुरुत्वाकर्षण और वायु अवरोध से जूझने की पूरी तैयारी करने से ही ऊपर उड़ना होता है। प्रगति का पथ ठीक इसी प्रकार है। ऊँचे उठने और आगे बढ़ने के लिए अवरोधों से जूझने और उपयुक्त अवसर आने तक—बिना हारे और बिना अधीर हुए—हँसते-मुस्कराते हुए बढ़ते जाने की क्षमता सम्पन्न मानसिक स्तर को संकल्प-बल कहते हैं और संकल्प-बल जिसके पास है, जिसे यथार्थवादी दृष्टिकोण उपलब्ध है, उसके सफल मनोरथ होने में प्रायः कोई संदेह करने की गुंजाइश रहती ही नहीं।


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