हमारा भविष्य अन्धकारमय नहीं हैं

February 1974

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इस युग के माने हुए इतिहास वेत्ता टायनवी इस बात से खिन्न नहीं हैं कि वर्तमान युग की बढ़ती हुई विकृतियाँ मनुष्य-जाति की उज्ज्वल संभावनाओं को नष्ट कर देंगी। वे इस संदर्भ में पूर्ण आश्वस्त हैं कि इन दिनों वैज्ञानिक प्रगति ने जो अनोखे आकर्षण मनुष्य के हाथ में दिये हैं, उनसे वह आज भले ही आतुरता भरी बाल-क्रीड़ा करले, पर कल उसे परिणामों पर विचार करना पड़ेगा और अमर्यादित लिप्सा से उत्पन्न संकट का समाधान खोजना होगा। निश्चित रूप से वह वैज्ञानिक खोजों की तरह आत्म-रक्षा और भविष्य की स्थिरता का उपाय भी ढूँढ़ लेगा।

उन तथ्य को उन्होंने अपने अति महत्वपूर्ण ग्रन्थों में इतिहास की अनेक साक्षियाँ प्रस्तुत करते हुए प्रतिपादित किया है। ‘चेञ्ज एण्ड है विट’ में उन्होंने लिखा है—”बढ़ना, परिणाम देखना और भूलों को सुधारना मनुष्य का स्वभाव है। समझदार लोग हर देश और हर काल में रहे हैं, वे अपनी समझदारी का लाभ पिछड़े लोगों को देते हैं और बताते हैं कि किस कठिनाई का समाधान किस तरह निकल सकता है। समझदारी की अपनी शक्ति है। वह भटकाव को थपेड़े देकर राहें रास्ते पर ले आती है और आदमी ठोकरें खाकर ही सही—उस दिशा को पकड़ लेता है, जो उसके लिए श्रेयस्कर है।

‘ए स्टडी आव हिस्ट्री’ और रिकसिडरेशन’ ग्रन्थों में उन्होंने अनेकों ऐतिहासिक उतार-चढ़ावों का उल्लेख करते हुए सिद्ध किया है कि दबाव और आकर्षण कई बार मनुष्य को कुछ समय के लिए कुछ भी करने के लिए सहमत कर सकते हैं, पर उसमें स्थायित्व नहीं होता। मानवी-विवेक अन्ततः जागृत होकर ही रहता है और ऊपर से लादे हुए लवादे को फेंक कर वह सरल स्वाभाविक स्थिति पाने के लिए तीखे उपाय बरतता है।

इस तथ्य के आधार पर वे मनुष्य-जाति का भविष्य उज्ज्वल होने की आशा करते हैं। ‘ए प्रोच टू रिलीजन’ ग्रन्थ में वे कहते हैं—जो बुद्धि-कौशल प्रकृति के सदस्यों का पता लगाने और उनका सुविधाजनक उपभोग करने में समर्थ हो सकता है, वह वैयक्तिक क विकृतियों और सामाजिक अव्यवस्थाओं के निराकरण का रास्ता निकाल लेगा। आग में पूरी तरह जलने से पहले ही बच्चा आग से अपना हाथ पीछे खींच लेता है। मनुष्य कभी सर्वभक्षी संकट का शिकार नहीं हो सकता। जब भी संकट की तीव्रता सामने आयेगी—परिवर्तन-चक्र तेजी से चल पड़ेगा और उन कारणों को निरस्त कर दिया जायगा, जो विभीषिकाऐं उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी थे।

आज वैयक्तिक क-जीवन में संकीर्ण-स्वार्थपरता और सामाजिक-जीवन में— जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ वाले जंगली-कानून का प्रचलन—यह दो ऐसे तथ्य हैं, जो अगणित उलझनें और कठिनाइयाँ उत्पन्न करते हैं। विज्ञान द्वारा उपार्जित सुविधा से मनुष्य बहुत लाभान्वित हो सकता था और सर्वजनीन सुख-शान्ति की सम्भावना आशाजनक स्तर तक विकसित हो सकती थीं। किन्तु इन विकृतियों ने सारी सुखद-संभावनाओं को ही उलट कर रख दिया। टायनवी यह विश्वास करते हैं कि निकट भविष्य में सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों के अभिवर्धन का एक प्रचण्ड अभियान आरम्भ होगा। इतिहास में आज जैसी विकृतियों के समाधान भौतिक काट-छाँट से नहीं, अध्यात्म संवेदनाओं का आश्रय लेने से ही निकले हैं। अब भी उसी मार्ग का अवलम्बन करना पड़ेगा।


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