दृश्य और अदृश्य का संधि द्वार- स्वप्न

May 1971

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“स्वप्न-समीक्षा” (इंटरप्रिटेशन ऑफ़ ड्रीम्स) नामक पुस्तक में सुप्रसिद्ध मनोविज्ञानवेत्ता डॉ. फ्रायड एक घटना का वर्णन करते हुए लिखते हैं -

“मेरे शहर के एक सम्भ्रान्त व्यक्ति के पुत्र का देहावसान हो गया । रात में अन्त्येष्टि सम्भव नहीं थी। अतएव प्रातःकाल अंत्येष्टि का निर्णय कर लाश के चारों तरफ मोमबत्तियां जलाकर रख दी गईं। एक व्यक्ति को पहरे पर नियुक्त कर मृतक का पिता अपने कमरे में जा, सो रहा । निद्रा के प्रवेश किये थोड़ा समय ही हुआ था कि पिता ने स्वप्न में देखा-उसका लड़का सामने खड़ा कह रहा है- बाबा ! तुम यहाँ सो रहे हो और मैं जल रहा हूँ, मेरा शरीर यहीं जल जाने दोगे क्या ? यह स्वप्न देखते ही पिता की नींद टूट गई। खिड़की से झाँककर देखा तो जिस कमरे में बच्चे का शव रखा हुआ था, तेज प्रकाश दिखाई दिया। अज्ञात आशंका से पिता वहाँ दौड़कर गया और देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि पहरे वाला व्यक्ति अलग हटकर सो गया है और मोमबत्ती गिर जाने से कफ़न में आग लग चुकी है । थोड़ी देर और पहुँचना न होता तो लाश का क्या, घर का ही पता न चलता । जलकर खाक हो जाता !

डॉ. फ्रायड ने स्वप्नों की गम्भीर समीक्षाएं की हैं और उन्हें अधिकांश मन में दबी हुई वासनाओं की अवचेतन मन में काल्पनिक स्थिति माना है । फ्रायड का कथन है कि मनुष्य दिन भर अनेक तरह की इच्छायें किया करता है, किन्तु साधनों के अभाव, सामाजिक प्रतिबन्ध, कानून के भय आदि के कारण वह इच्छाएँ पूरी नहीं कर पाता। मन स्वप्नावस्था में इन दमित इच्छाओं की ही मनचीती किया करता है । इस सम्बन्ध में निःसन्देह फ्रायड के तर्क और प्रस्तुत घटनायें जोरदार हैं, हमारे अधिकांश हलके स्वप्न सचमुच शरीर की गड़बड़ी, मन की दबी हुई इच्छाओं के द्योतक होते हैं; किन्तु इस तरह के उदाहरण के बाद, जैसा कि इस लेख की आरम्भिक पंक्तियों में दिया गया है-फ्रायड ने स्वीकार किया है कि स्वप्न का संसार दृश्य जगत तक और मन की स्थूल वासनाजन्य कल्पनाओं तक सीमित किया जाना भूल ही होगी; अलबत्ता हम यह नहीं जानते कि जो स्वप्न भविष्य में हू-बहू सत्य हो जाते हैं उनका रहस्य क्या है।

(1)स्वप्न में मनुष्य अपने आपको उड़ता हुआ देखता है ? फ्रायड ने उत्तर दिया-चिड़ियों को, जहाजों को उड़ते देखकर मन में स्वयं उड़ने की इच्छा आई होगी पर मनुष्य शरीर से उड़ना सम्भव न होने के कारण वह इच्छा जागृत अवस्था में दब गई और स्वप्न में उसी ने उड़ने का रूप ले लिया ।

(2)स्वप्न में मनुष्य ऊपर से गिरता क्यों अनुभव करता है ?-फ्रायड की बुद्धि ही तो थी-बुद्धि तो समुद्र की सतह तक की खोजकर लाती है। फिर इस प्रश्न का तुक्का मिलाना उसके लिए कितनी बड़ी बात थी । फ्रायड बोले-मनुष्य बन्दरों की सन्तान है, बन्दर जंगलों में रहते थे और पेड़ों पर सोते थे । कभी उन्हें अच्छा आसन नहीं मिल पाता था तो वे सोते-सोते जमीन पर गिर जाते थे । बन्दर से विकसित होकर मन मनुष्य बन गया पर उसके संस्कारों में छाया, वह पेड़ में गिरने का भय न गया-उसी भय का परिणाम है कि मनुष्य सोते समय गिरने के दृश्य देखता है ?

फ्रायड की इस तरह की व्याख्याओं में सम्भव है कुछ दम हो। मन की अपनी कल्पनाओं का महत्व कम नहीं। हमारी ज्ञात कल्पनायें स्वप्न जगत का सृजन करती हो तो आश्चर्य क्या ? किन्तु छोटे से छोटे व्यक्ति से लेकर आइंस्टीन एलियंस होवे के जीवन तक में ऐसी घटनायें आईं जब उन्होंने जटिल समस्याओं के हल स्वप्न जगत में पाये । प्रसिद्ध रसायनज्ञ बोलर ने जीव-रसायन और कार्बनिक रसायन के अन्तर को स्पष्ट करते हुए बताया था कि प्रत्येक जीवधारी के शरीर में लाखों यौगिक पाये जाते हैं, उन सभी में कार्बन अनिवार्य रूप से रहता है। यही नहीं सभी जीवित कोष कार्बन के गुणों पर भी आधारित रहते हैं। यह एक जबर्दस्त प्रयोग था जो दो प्रकार की चेतनाओं के अस्तित्व को स्वीकार करता है। जीव-चेतना के अतिरिक्त प्रकृति की चेतना भी । इसे भारतीय शास्त्रों में आत्मा और मन कह सकते हैं, आत्मा जैसे गुणों वाला होकर भी मन का उसी प्रकार  स्थूल किन्तु आत्मा से सम्बन्ध है जैसे कार्बन की प्रत्येक जीव चेतना में उपस्थिति । यह ज्ञात हो जाने के बाद ‘कार्बनिक-रसायन’, रसायन विज्ञान का एक स्वतन्त्र क्षेत्र ही बन गया किन्तु कार्बन परमाणुओं की रचना और उनके वलय का रहस्य वैज्ञानिक तब तक भी न जान पाये थे जब तक कि उसके 700000 से अधिक कार्बन-यौगिक ढूँढ लिये गये थे । यह समस्या हल न हुई होती यदि जर्मनी के प्रसिद्ध रसायनज्ञ डॉ. फ्रेडरिक कैकेलू ने एक महत्वपूर्ण स्वप्न नहीं देखा होता जिसमें 6 कार्बन परमाणुओं को नाचते देखकर कैकूले ने कार्बन परमाणु की संरचना का ज्ञान प्राप्त किया था । इस तरह स्वप्न का योगदान मनुष्य जीवन से उतना ही नहीं है जितना हमारी स्थूल बुद्धि उसे जानती है । या जितना हम मानव मन की स्थूल व्याख्या करने से जान पाते हैं ।

अमेरिका का एक साधारण गृहस्थ चार्ल्स फिलमोर ईश्वरभक्त था, सच्चा और सरल व्यक्ति था। कहा जा सकता है इसी कारण उसके स्वप्न भी सात्विक होते रहे होंगे; किन्तु एक रात फिलमोर जब सो रहे थे उन्होंने एक स्वप्न देखा-एक अज्ञात शक्ति ने कहा तुम मेरे पीछे-पीछे आओ। फिलमोर पीछे-पीछे चल पड़े। अपने स्वप्न का वर्णन करते हुये वे स्वयं लिखते हैं - मैं एक शहर में पहुँचा, वह शहर मैंने पहले भी देखा था । इसलिये मुझे साफ पता चल गया कि यह ‘कंसास’ (अमेरिका का एक शहर ) है। फिर मुझे एक स्थान पर ले जाया गया। उस स्थान के बारे में मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं था पर मुझे मेरे मार्ग-दर्शक ने बताया-यहीं पर तुम्हें काम करना है-उसने एक अखबार दिखाया। जब तक उसका पहला अक्षर “यू” पढ़ने में आये कई और अखबार उसके हाथ में दिखे और नींद टूट गई ।

चार्ल्स फिलमोर एक ईश्वर विश्वासी भक्त व्यक्ति थे। उन दिनों वे ध्यान-साधना का अभ्यास कर रहे थे । उन्होंने कई प्रभावशाली व्यक्तियों को ध्यान की एकाग्रता द्वारा अच्छा करके स्वस्थ किया था। अतएव उन्हें लोग एक सन्त के रूप में प्रतिष्ठा देते थे; पर उन्हें ऐसा कोई ख्याल नहीं आया था कि “प्रार्थना और ध्यान साधना का प्रसार करना चाहिये । एक दिन कुछ लोग स्वयं ही उनके पास आये और उक्त योजना उनके सामने रखी वहीं पर ‘मौन मिलन समाज’ (सोसायटी आफ साइलेंट यूनिटी) नामक संस्था का श्रीगणेश किया गया । उसके लिये कार्यालय खोलने की बात आई तो कंसास शहर चुना गया । वही स्थान जो फिलमोर ने स्वप्न में देखा था । अखबार निकाला गया,  उसका नाम”यू” से बनने वाला दी-”यूनिटी” रखा गया। पीछे वहाँ से कई एक पत्र-पत्रिकायें छपीं जिनकी फिलमोर ने कभी कल्पना भी न की थी ।

स हि स्वप्नो भूत्वेमं लोकमतिक्रामति । तस्य वा एतस्य पुरूषस्य द्वे एव स्थाने भवतः इदं च परलोक स्थानं च संध्यं तृतीयं स्वप्न स्थानं तस्मिन्सन्धे स्थाने तिष्ठन्नेते उभे स्थाने पश्यतीदं च परलोक स्थानं च ॥  -वृहदारण्यक ४/३/९

अर्थात्-वह आत्मा ही स्वप्न अवस्था में जाकर इस लोक का अतिक्रमण करता है। इस पुरुष के दो स्थान होते हैं- एक तो यह लोक दूसरा परलोक और तीसरा संधि स्थान । यह संधि स्थान जहाँ से इस लोक को भी देखा जा सकता है उस लोक को भी। इसे स्वप्न स्थान कहते हैं ।

दो कमरों के बीच दरवाजे पर खड़ा मनुष्य जिस प्रकार इस कमरे को भी देख सकता है उस कमरे को भी, इसी प्रकार स्वप्न में जीव-चेतना मन अपने दृश्य जगत सम्बन्धित कल्पना तरंगों के चित्र भी देख सकती है और आत्मा के अदृश्य विराट जगत में झाँककर भूत और भविष्य की उन गहराइयों तक की भी थाह ले सकती है जो समय और ब्रह्मांड की सीमा से परे केवल विश्व-व्यापी मूल चेतना में ही घटित होते रहते हैं। जो स्वप्न जितना गहरा और भावनाओं के साथ दिखता है वह इस अदृश्य जगत की उतनी ही गहरी अनुभूतियाँ पकड़ लाता है। योगियों का मन अत्यन्त सूक्ष्म हो जाने और प्रगाढ़ निद्रा आने के कारण वे अपने मन को आत्मा के व्यापक क्षेत्र में प्रविष्ट कराकर स्वप्न में आत्म जगत का आनन्द ही नहीं लिया करते वरन् अपने भूत को जानकर वर्तमान को सुधारने और भविष्य को जानकर होतव्यता से बचने का भी उपक्रम करते रहते हैं। इसलिये योगी “अविजित” रहता है। उस पर सांसारिक परिस्थितियाँ हावी नहीं होने पातीं । वह उन पर स्वयं ही हावी बना रहता है । स्वप्न ने ही योगी को इस शरीर में रहते हुए विराट आत्मा के रहस्य खोले हैं, जो मन को अधिक पवित्र और सूक्ष्म बनाने के साथ स्वतः खुलते जाते हैं -

य एष स्वप्ने महीप मानश्च रव्येष आत्मेति । -छान्दोग्य उपनिषद  ८ /१० /१

तद्यत्रैतत् सुप्तः समस्त सप्रसन्नः स्वप्नं न विजानात्मेष आत्मेति ॥ -छान्दोग्य उपनिषद्  ८ /११ /१

अर्थात्-स्वप्न में जो अपने गौरव के साथ व्यक्त होता है वह आत्मा है । प्रगाढ़ निद्रा में आनन्दित होता हुआ जो उस स्वप्न से भी बढ़कर शाश्वत है वह आत्मा है, उसका कभी अन्त नहीं होता ।

विज्ञान की भाषा में आत्मा को एक सर्वव्यापी विद्युत (यूनिवर्सल वायटैलिटी) और मन जो कि शरीर के स्थूल अंश की चेतना है, उसे  सीमाबद्ध विद्युत कह सकते हैं । रेडियो की विद्युत को यन्त्रों के द्वारा (एक फ्रीक्वेंसी पर) किसी भी रेडियो स्टेशन की तरंगों से मिलाकर वहाँ की गतिविधियों का ज्ञान कर लेते हैं । उसी प्रकार मन द्वारा भी विश्वव्यापी चेतना का परिभ्रमण, दर्शन और ज्ञान की अनुभूति का नाम स्वप्न है । मन विद्युत को जितना सूक्ष्म और उच्च स्तर का बनाया जा सकता है उतनी ही सत्य अनुभूतियाँ उपलब्ध की जा सकती हैं पर इस सिद्धान्त में कोई सन्देह नहीं । स्वप्नों के सत्य पूर्वाभास इसी वैज्ञानिक सत्य का समर्थन करते हैं, और आत्मा की शोध व उसके विकास का मार्ग प्रस्तुत करते हैं । स्वप्न केवल मन की दमित इच्छाओं का प्रतीक ही नहीं, वह काल, ब्रह्मांड और गति से परे का दर्शन और विज्ञान है। उससे वर्तमान जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाने, (2) अब तक लाखों वर्षों, हजारों योनियों में भ्रमित जीवन के स्वरूप और (3) भविष्य -ज्ञान के महत्वपूर्ण तथ्यों का उद्घाटन और विकास करने का एक अत्यन्त उच्चकोटि का शोध कार्य सम्पन्न किया जा सकता है । उससे विज्ञान को भी नई दिशायें मिल सकती हैं। विभिन्न प्रकार के स्वप्नों का वर्गीकरण करके न केवल मानवीय जीवन की गहराइयाँ खोजी जा सकती है बल्कि आत्म-विश्लेषण भी किया जा सकता है और दूसरों का मार्ग-दर्शन भी ।



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