लघु कहानी - अपनी प्रजा की देखभाल

May 1971

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छत्रसाल अपनी प्रजा की देखभाल बच्चों की तरह करते थे। वह समय-समय पर अपने राज्य का दौरा करते और जन-संपर्क द्वारा उनसे कठिनाईयां पूछते रहते थे। एक बार उनके स्वस्थ और सुन्दर शरीर को देखकर एक युवती उनकी ओर आकर्षित हुई। कामातुरता के सम्मुख भय और लज्जा कैसी !

वह युवती महाराज के पास आई और मौका देखकर बोली “राजन्! आप जैसे दयालु राजा के राज्य में भी मैं दुःखी रहती हूँ’।

राजा बड़े दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि मेरे निरन्तर प्रयत्नशील रहने पर भी राज्य के स्त्री-पुरुष दुःखी रहें, अभावग्रस्त रहें फिर मेरे राज्य करने से भी क्या लाभ है ?

वे बोले देवी! बताइये आपको क्या कष्ट है, मैं उसे दूर करने के लिए भरसक प्रयत्न करूंगा।

‘राजन! ऐसी मीठी-मीठी आश्वासन भरी बातें कह तो सब देते हैं, पर करते विरले ही हैं। आप वचन दें तब तो मेरा बताना भी सार्थक है।’

उस युवती महिला ने अपना पाँसा फेंका। महाराज ठहरे सरल हृदय वाले और प्रजावत्सल, उन्होंने कहा देवी ! आपके दुख दूर करने के लिए मैं यथाशक्ति प्रयत्न करूंगा।

बात बड़ी छोटी सी है। मैं चाहती हूँ कि आप जैसी सन्तान मेरे भी हो।

उसकी बात सुनकर कुछ क्षण के लिए महाराज छत्रसाल स्तब्ध रह गये पर उन्होंने बड़ी विवेकशीलता तथा संयम से कार्य किया। वे उस कामातुर नारी के चरणों में मस्तक नवाकर बोले-माताजी! सम्भव है आप जिस पुत्र को जन्म दें, वह मेरी तरह न हो अतः आज से आप मुझे ही अपना पुत्र स्वीकार कर लीजिए।

राजा की यह बात सुनते ही उस महिला का स्वप्न टूट गया। उसे अपनी त्रुटि का बोध हो गया। पर छत्रसाल अपने जीवन भर उसके प्रति श्रद्धा रखते रहे और राजमाता की तरह सम्मान प्रदान करते रहे।


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