वचन-भंग मांसाहार से बड़ा पाप

May 1971

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सद्वाक्य

भूल-सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है जब कि बुराइयों से मूँह मोड़ना सबसे बड़ा पाप है ।      - महात्मा गांधी


वचन-भङ्ग माँसाहार से बड़ा पाप

इंग्लैंड के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के घर भोज था उसमें गाँधीजी भी आमन्त्रित थे। नियत समय पर गांधीजी पहुंच गये। भोज में एकत्रित सभी व्यक्ति उच्च प्रतिभा और सम्मान वाले व्यक्ति थे। भोजन परोसा गया। उन्होंने देखा भोजन की थाली में माँस है तो वे उठकर खड़े हो गये और खाने से इनकार कर दिया। लोग आश्चर्य चकित रह गये। तभी एक अँग्रेज ने कहा-माँस खाने से क्या होता है ? गाँधीजी बोले-माँ को दिये गये वचन को तोड़ना ही क्या कम पाप है जो मैं माँसाहार के पाप पर, विचार करूं।


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