शास्त्रादपि-शरादपि

May 1971

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कोंकण के एक छोटे से गाँव में, छोटी सी चौपाल में समर्थ गुरु रामदास उपदेश कर रहे थे-समस्त जीव भगवान् के बनाये हैं। कोई शक्तिशाली है इसका यह अर्थ नहीं होता वह अपने से अशक्त को मारे और सताये। जो जिस स्थिति में है उसे उसी स्थिति से आत्म-विकास का अवसर मिलना चाहिए।

गाँव की भावुक और श्रद्धालु प्रजा समर्थ के उपदेश से बहुत प्रभावित हुई। प्रतिदिन ऐसा ही उपदेश चलता, कीर्तन होते। गाँव के लोग भक्तिपूर्वक आते और भजन का आनन्द लूटते। लेकिन दुनिया में सब अच्छे ही अच्छे लोग नहीं, बुरे और निन्दक भी कम नहीं। ऐसे भी लोग है जिनको अपनी इंद्रियों के सुख, शरीर की वासना, सांसारिक वैभव जैसी स्थूल प्रवृत्तियों के आगे कुछ सूझता ही नहीं। भावनाओं का विज्ञान उनकी दृष्टि में पागल-कृत्य से अधिक कुछ नहीं होता। स्थूल प्रकृति का भाग समस्त ब्रह्माण्ड का चौथाई भी नहीं है। शेष सारा अंतर्गत भावनाओं से ही भरा हुआ है। तथापि स्थूल बुद्धि, वासना से डूबे मन की मूर्खता को क्या कहा जाये जो मनुष्य को भावनाओं के सत्य की अनुभूति ही नहीं करने देता। ऐसा ही एक व्यक्ति - एक पटेल इस गाँव में भी रहता था। वह शरीर से हृष्ट-पुष्ट था इसलिए समर्थ के कीर्तन में भाग लेने वालों को बलपूर्वक रोक लेता। कहता-मूर्खों कथा-कीर्तन से भला नहीं होगा। खाओ पियो मौज करो, मर जायेंगे तब देखा जायेगा, अभी तो दुनिया धरती का आनंद ले लो।

कोई कह भी देता- पटेलजी! मनुष्य शरीर भगवान् की अमूल्य देन है इसका श्रेष्ठतम सदुपयोग आध्यात्मिकता से ही सम्भव है-पटेल को यह शब्द विष-बुझे बाण की तरह लगते और वह कई बार लोगों को पीट भी देता। कीर्तन में भाग लेने वालों से उसकी दुश्मनी सी हो गई। लोग कहते भी-भाई तुम्हें धर्म-कर्म से मतलब नहीं-न सही, हमें क्यों रोकते हो। समर्थ यहाँ रोज-रोज थोड़े ही आयेंगे। पर पटेल पत्थर का बना था। किसी की एक न सुनी; डराना, धमकाना बराबर जारी रहा।

समर्थ उसके अत्याचार की कहानी सुनते, कुछ सोचकर चुप रह जाते। धर्म प्रचार चलता रहा और पटेल उन लोगों को दण्ड देता रहा जो लोग कीर्तन में सम्मिलित होते। एक दिन बड़े सवेरे समर्थ स्नान करके आ रहे थे। उन्होंने देखा एक आदमी एक मुर्गा पकड़े लिए जा रहा है। उन्होंने टोका मुर्गा कहाँ लिये जा रहे हो? तब तक आ गए पटेल के सामने बोले, महाराज! धर्मकार्य के लिए-मेरा बेटा बीमार हुआ, तब मनौती मानी थी। इसे काली की भेंट चढ़ाने ले जा रहा हूँ। फिर थोड़ा व्यंग से बोला- क्यों आज कथा-कीर्तन की छुट्टी कर दी क्या ?

और समर्थ इससे पूर्व कि पटेल कुछ और कहे - लपके और एक हाथ से पटेल को तथा दूसरे हाथ से उस आदमी को जो मुर्गा पकड़े था, धर दबोचा। पटेल समझता था, धर्म-कर्म वाले लोग कायर और कमजोर होते हैं पर भुट्टे सी गर्दनों को कसकर समर्थ ने दाबा तो उसे हिचकी आ गई। समर्थ की समर्थता का अनुमान करना उसे कठिन हो गया।

समर्थ बोले-आज रात काली ने मुझे स्वप्न दिया कि मेरा पेट मुर्गे से नहीं भरेगा, दो मोटे-ताजे आदमी चाहिए, काली बहुत भूखी है चलो आज तुम्हारी बली चढ़ा दें। पटेल का दम खुश्क हो गया। समर्थ के पैरों पर गिर गया और बोला - महाराज फिर कभी किसी जीव को नहीं सताऊँगा-कोई दुष्कृत्य नहीं करूँगा।

दूसरे दिन सभा जुड़ी-लोगों ने देखा-पटेल सबसे आगे बैठा कीर्तन कर रहा है-एक ग्रामीण ने हँसकर दूसरे ग्रामीण के कान में कहा-जेठ में बरसात कैसी? दूसरे ने कहा भाई-आज कल लोग शास्त्र की बात को कम मानते हैं, उन्हें थोड़ा शक्ति से भी मनवाना पड़ता है।



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