नाटक द्वारा मनःशक्तियों का केंद्रीकरण और सम्मोहन

May 1971

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प्रस्तुत लेख में भारतीय सम्मोहन विद्या और त्राटक द्वारा उपलब्ध लाभों का प्रत्यक्षदर्शी वर्णन दिया जा रहा है । अनुभव डाक्टर अलैक्जेंडर कैनन के हैं । श्री कैनन हाँगकाँग में रहते थे । ब्रिटिश गवर्नमेंट ने उन्हें नाइट की पदवी दी थी । उन्होंने आजीवन आत्म तत्व की खोज की और उसके लिये चीन, तिब्बत, भारत ही नहीं सुदूर पश्चिमी देशों की यात्रा की और महत्वपूर्ण अनुभव अर्जित किये । प्रस्तुत अंश उनकी पुस्तक “इनविजिबुल इन्फ्लूयन्स” से उद्धृत किया जा रहा है ।

एक बार डॉ. कैनन को एक लामा का निमन्त्रण मिला । उसके लिये उन्होंने तिब्बत की यात्रा की । जो रास्ता बताया गया था उसमें से होते हुए वे एक ऐसे मठ के समीप पहुँचे जिसके किनारे 50 गज चौड़ी विशाल खाई थी, उसे पार करके जाना किसी भी भाँति सम्भव न था । अभी यह विचार करते हुए श्रीकैनन खाई की ओर बढ़ ही रहे थे कि आगे एक लामा खड़ा दिखाई दिया । उसने नमस्कार करके पूछा-आप डॉ. अलैक्जेंडर कैनन है न, मैं आपकी सहायता के लिये यहाँ आया हूँ । आप कृपया अपने साथी इन स्त्री-बच्चों को वापस कर दीजिये जब तक आप इस मठ में रहें ये लोग गाँव की धर्मशाला में विश्राम करेंगे । लामा के कहने पर स्त्री, बच्चों को वापस कर दिया गया ।

अब वे उस खाई के समीप पहुँचें । लामा की गतिविधियां स्वचालित यंत्र की भाँति और बड़ी विलक्षण-सी थी। उसने बताया-अब मै आपको कुछ प्राणायाम, शरीर का शिथिलीकरण तथा कुछ ऐसे योग साधन बताऊंगा जिनसे आपका शरीर हलका रुई की तरह हो जायेगा और आप बादलों की तरह उड़कर खाई पार कर लोगे मैं आपके साथ ही होऊंगा ।

श्रीकैनन ने भारतीय योगियों द्वारा तो ऐसे योग-कारनामे देखे थे और सुना था कि यहाँ ऐसी योग साधनायें ढूंढ़ी गई है जो पाश्चात्य-विज्ञान से भी अधिक विस्मय से भरी हुई है। अणिमा - जिसमें जीव-चेतना अणु के समान बनकर कण - कण की खोज कर लाती है, महिमा - जिसमें मनुष्य पर्वत समान विशाल और शक्तिशाली हो जाता है, गरिमा शरीर को बहुत भारी और लघिमा हलका कर लेने को कहते हैं । प्राप्ति लाखों मील दूर की वस्तु के स्पर्श आदि प्राप्ति की सिद्धि है तो प्राकाम्य कोई भी कामनायें तत्काल पूर्ति कराने वाली सिद्धि है। शरीर के भीतर अदृश्य चक्रों, उपत्यिकाओं, कुँडलिनी और मन पर अधिकार कर इच्छानुसार प्रयोग कर सकने की सामर्थ्य प्रदान करने वाला ईशत्व सिद्धि तथा परिस्थितियों और शक्तिशाली पदार्थों को भी वश में रखने की वाशित्व सिद्धि भी भारतीय योग विद्या के चमत्कार हैं। मन को कण्ठ में संयम करने से अदृश्य राग रागनियों का सुनना, नाभि में संयम करने से भूख न लगना जैसी संयम और सूर्य-वेध, नाड़ी-शोधन, उज्जायी, भ्रामरी आदि प्राणायाम भी भारतीय योग-विद्या की विद्यायें है ; तो वस्ति, धौति, नौलि, नेति, वज्रोली और कपालभाति क्रियायें भी भारतीय योगी जानते हैं। श्री कैनन ने लामा से पूछा आप लोग भी यह सब जानते हैं क्या ? तो उसने बताया हाँ यह भारतीय योग विद्या ही है। एक समय प्रसिद्ध “बज्रयान-योगी पद्म संभव भारतवर्ष से बुद्ध धर्म का प्रचार करने तिब्बत आये थे । उन्होंने ही तिब्बत में इन साधनाओं का प्रचार किया था । भारतवासी धीरे-धीरे इस महान् विज्ञान को भूलते जा रहे हैं जब कि तिब्बत में अनेक लामा अभी भी इन साधनाओं और गुह्य आत्मविद्या के ज्ञाता है ; डॉ. लोवसांग रम्पा जैसे लामा योगविद्या ज्ञाताओं की ख्याति अमेरिका और इंग्लैंड तक में हुई है ।

लामा के बताये अनुसार साधन करने के बाद डॉ. कैनन ने आँखें खोलीं तो वे हैरान थे कि अभी एक क्षण पूर्व तो हम खाई के उस पार थे अब खाई के इस पार कैसे आ गये । वहाँ से चल कर वे मठाधीश लामा के सम्मुख पहुँचे। उन्होंने डॉ. कैनन का स्वागत किया । डॉ. कैनन लिखते हैं - लामा के शरीर के बाहर तीन फीट के घेरे मैंने नीले रंग का विलक्षण तेज देखा। उससे लामा की आकृति बड़ी दिव्य लग रही थी । लामा से योग-विद्या और आत्मा आदि पर देर तक बातचीत होती रही । उन्होंने यह भी बताया कि अब शीघ्र ही संसार में ऐसा परिवर्तन आने वाला है जिसमें भौतिक विज्ञान की अपेक्षा आत्म-विज्ञान की भावनाओं का महत्त्व बढ़ जायेगा; लोग धन, यश, पद की अपेक्षा प्रेमभाव, कर्त्तव्य भाव, मैत्री और सेवा आदि भावनाओं को अधिक महत्त्व देंगे ।

इस बीच लामा ने डॉ. कैनन को योग-विद्या के अनेक चमत्कार दिखाये । लामा ने यह भी बताया-योग चमत्कार की वस्तु नहीं है पर आपको एकान्त में बुलाकर और यह सब दिखाकर मैं आशा करता हूँ कि आप योग-विद्या के भाव से लोगों को अवगत करावें । एक दिन लामा ने त्राटक विद्या का अद्भुत करिश्मा देखा । कफ़न में लपेटा एक शव लाकर डाक्टर कैनन के सामने रख दिया गया। डॉ. कैनन ने परीक्षा की और बताया इसे तो मरे हुये 24 घन्टे से भी अधिक हो गये । किन्तु तभी लामा ने कुछ पढ़ा। कोई मन्त्र लगता था। फिर अपनी आँखें शव पर गड़ाईं और बोले-उठो भाई कितनी देर से पड़े हो - यह शब्द उधर मुँह से निकले इधर मृतक ने आँखें खोल दीं। चारों ओर देखा फिर उठ बैठा और खड़ा होकर डॉ. कैनन के पास तक गया, कैनन को प्रणाम किया । तिलस्मी किस्सों की तरह- डॉ. कैनन हैरान थे मृत व्यक्ति को खड़ा देखकर नहीं वरन् यह जानकार कि यही वह व्यक्ति था जो विविध योग साधनायें करा कर मुझे खाई से अन्दर लाया था । लामा ने बताया यह व्यक्ति तो सात वर्ष से मृत है। इसे कई वर्ष तक इसी तरह रख सकते हैं। इसी बीच डॉ. कैनन मन में जो भी बात आई, लामा अपने आप बता देता था। उसका उत्तर भी दे देता था । कैनन हैरान थे आखिर वह कौन-सी वस्तु है, जिसे माध्यम बनाकर यह लामा मन की सारी बातें जान लेता है ?

हठयोग प्रदीपिका में लिखा है-

     निरीक्षेत्रिश्चलादृशा सूक्ष्म लक्ष्यं समाहितः ।

      अश्रु  संपात पर्यन्तं आचार्यें स्त्राटक स्मृतम् ॥

मोचनं नेत्ररोगाणां तं द्रादीनाँ कपाटकम् ।

                                    यत्रतस्त्राटकं गोप्यं यथा हाटक पेटकम् ॥             -   ह.प्र. 2/31-32

अर्थात्-एकाग्रचित्त होकर मनुष्य किसी सूक्ष्म वस्तु को सामने रख कर तब तक देखे जब तक आँखों में आँसू न आ जायें । आचार्यों ने इसे त्राटक कहा है । त्राटक से नेत्र रोग दूर होते हैं, तंद्रा और आलस्य दूर होते हैं । इस त्राटक से गुप्त रहस्यों का ज्ञान होता है, इसलिये योगी इसे सोने की पेटी की तरह गुप्त रखते हैं ।

दूसरे के मन की बातें जान लेना, औरों को प्रभावित करना, मूर्छित कर लेना त्राटक की ही सिद्धि है। योग्य और अनुभवी योगियों के मार्ग-दर्शन में सीखा हुआ त्राटक सब प्रकार की सिद्धि देने वाला है । जिस समय तुर्कों ने भारत पर हमला किया लीलाब्रज ने इसी विद्या के आधार पर उनका हमला विफल कर दिया था । आचार्य कमलरक्षित ने यवन-सेना पर पूर्ण कुंभ का प्रयोग करके 500 सैनिकों को मार डाला था और सारी सेना रक्त वमन करने लगी थी । इससे चिढ़कर उन्होंने विक्रम शिला और नालन्दा के विशाल योग ग्रन्थागार को जला डाला था । सिद्ध पीठों को नष्ट करने और योगियों को मारने का कुचक्र भी इसी कारण रचा गया था कि पीछे सैनिकों से लड़ना आसान हो गया और विदेशी सेना ने इस देश पर विजय पाई । महाभारत काल में इस विज्ञान की जो अनेकों शाखायें खोजी गई थीं। वे इसी समय या तो नष्ट कर दी गईं या विदेशों को चली गईं ।

डॉ. कैनन लामा के योग-बल से बड़े प्रभावित हुये। उन्होंने त्राटक सीखा भी और उसका प्रचार भी किया । उनकी पुस्तक-”इनविजिबुल इन्फ्लूएन्स” इस सम्बन्ध में और भी प्रकाश डालती है । यह घटना कल्याण योगांक में भी छपी थी और सम्मोहिनी विद्या नामक पुस्तक में श्री चन्द्रिका प्रसाद जिज्ञासु ने भी छापी थी जो कि 1938 में छपी थी ।

इसके बाद डॉ. कैनन को लामा ने बड़े सम्मान के साथ विदा किया। लौटते समय उन्हें खाई पार कराने के लिये वही पहले वाला लामा उपस्थित मिला-उन्होंने इस बार गौर से देखा तो पाया कि वह सचमुच यंत्र की भाँति किसी और के इशारे पर काम करता है। उसकी आँखों की पुतलियाँ नहीं चल रही थीं । एक बार तो डॉ. कैनन डरे भी कि यह तो उनके साथ शव चल रहा है पर शीघ्र ही वे सम्भल गये कि इस शव के भीतर बातचीत करते हुए वह मुख्य लामा ही चल रहे हैं, जिनके योग-बल की कोई थाह नहीं है । भारत से सीखी साधना का एक विद्वान् लामा इतना शक्तिशाली हो सकता है तो कोई भारतीय योगी कितना शक्तिशाली होता होगा सहज ही सोचा जा सकता है ।

लामाओं से सीखी त्राटक विद्या को डॉ. कैनन ने भी ध्यान साधना का ही अंग माना है। उन्होंने लिखा है कि साधक लामा लोग सूर्योदय के एक घण्टा पहले से सूर्योदय तक यह साधना करते हैं । श्वेत पत्थर, शालिग्राम या स्फटिक पत्थर को आँखों की सीध, उतनी ही ऊँचाई तथा 2 फीट की दूरी पर रखकर टकटकी लगाकर जितनी देर संभव हो, स्थिर दृष्टि से उसकी ओर देखा जाता है । आँखें थक न जायें ; तब तक जब यह अभ्यास करना चाहिये । पत्थर पर दृष्टि स्थिर होने के बाद घी का दीपक जलाकर उसकी लौ पर दृष्टि स्थिर की जाती है। जब ज्योति शिखा पर दृष्टि स्थिर हो जाए हो जाये, तब यही प्रयोग ठुड्डी को कंठ कूप (गले में जो गड्ढा सा बनता है) में लगाकर अपनी नाक के अग्रभाग पर करना चाहिये ।

दूर त्राटक दूर के पौधों पर, गोलाकार गुंबज वाले मन्दिर, चन्द्रमा तथा अन्य तारों पर किया जा सकता है । इन पर दृष्टि स्थिर होने पर सूर्य पर भी किया जा सकता है । पर सबको नहीं करना चाहियें । यह सारी क्रियाएं बिना अनुभवी मार्गदर्शक के भी नहीं करनी चाहिए। योग-ग्रन्थों में वर्णित ध्यान-बिन्दु साधना भी त्राटक ही है। उसमें बिना आँख बन्द किए दोनों भौहों के बीच ध्यान किया जाता है । यह ध्यान प्रारम्भ में किसी मूर्ति या चित्र के रूप में करते हुये प्रकाश की लौ के रूप में किया जाता है । भ्रूमध्य स्थित आज्ञा चक्र या तीसरे नेत्र का उन्मीलनइस साधना की सिद्धि है । इससे योगी में आश्चर्यजनक क्षमतायें उत्पन्न होती हैं। दूसरों के मन की बातें जान लेना, दूर की वस्तुओं, घटनाओं का ज्ञान, दूरवर्ती आकाश में हो रही सूक्ष्म हलचलों का ज्ञान और स्वप्नावस्था में दिव्य-दृश्य तथा भविष्य में होनी वाली घटनाओं का पूर्वाभास सब इसी साधना के सत्परिणाम हैं। पर यह साधनायें सात्विक आहार-बिहार तथा मनोवृत्ति वाले लोगों को योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिये। अन्यथा लाभ होने के बजाय हानि अधिक होती है । इसलिये इन साधनाओं के अभ्यास के पूर्व यह निश्चित कर लेना आवश्यक है कि वे अभी साधना की कठिनाई (कठिनाई केवल मन के आकर्षण, इच्छाओं को मारने की होती है ) को झेल सकेंगे या नहीं । दुर्बल मन वालों को यह नहीं सिखायी जाती । साधना एक प्रकार का समर (युद्ध) है; उसे मनस्वी, सशक्त और तेजस्वी व्यक्ति जीतते हैं। जिनमें इस तरह का संकल्प बल हो, केवल उन्हें ही इसका अभ्यास करना चाहिये ।



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