लघु कहानी - परमहंस देव का मन

May 1971

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तोतापुरी जी ने अपने चमकते हुए पीतल के लोटे की तरफ संकेत करते हुए कहा- “देखिए, यह लोटा कैसा चमचमा रहा है । यदि इसे रोज माँजा न जाय तो इस पर मैल चढ़ जायेगा । यही दशा मन की भी है । यदि ध्यान धारणा आदि द्वारा मन को निरन्तर स्वच्छ न किया जाय, तो उस पर भी मैल चढ़ जायगा और उसकी दमक का स्थान मलिनता ले लेगी ।”

परमहंस देव ने हँसकर कहा “किन्तु महाराज ! यदि यही लोटा सोने का हो-तब तो मलिन होने की कोई सम्भावना नहीं” तोतापुरी समझ गये, परमहंस का मन वास्तव में स्वर्ण-कांति जैसा ही देदीप्यमान तथा अपरिवर्तनशील है ।


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