तुमने क्रान्ति मशाल जलाई (Kavita)

May 1971

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नूतन युग के नवल सृजेता! कण्टक शैया-शायी।

स्वयं जले, औ जलकर तू ने क्रान्ति मशाल जलायी॥


देखी जब वेदना जगत की, करुण नयन भर आये।

युग-व्यापी था प्रश्न , विश्व की पीड़ा कौन मिटाये?

तब तुमने नव अंकुर सा बचपन बलिदान किया था।

तरुणाई संन्यास बन गई, विष का पात्र पिया था॥

दिन की बात कहाँ है? तुम तो रातों में भी जागे।

कैसे भी तो मिटें मनुज के ये दुष्कर्म अभागे॥

कल्मष, पाप, छद्म मिट जायें, भाव हृदय में छाया।

अग्नि प्रकट प्राणों से की, औ नूतन यज्ञ रचाया॥


चले रोकने शब्द रुदन का, तप्त त्रस्त जगती से-

अन्तर के झनझना उठे स्वर, गूँजी मधु शहनायी।


दुःखी नयन से मेंट उदासी मृदु मुस्कान बखेरी।

दिखे सूखते अधर, न की फिर नम करने में देरी।

त्रस्त, निराश, हताश हृदय में नवल प्रेरणा भर दी।

रही अधूरी कहीं साधना, खुद ही पूरी कर दी।

घाव दिखा रिसता, तो मरहम विहँस, तुरन्त लगाया।

राहहीन, भूले मनुष्य को, कर गहि मार्ग दिखाया॥

जागे तुम रातों को जग की विकल वेदना पीकर।

पाया है सन्तोष, दंश को आशाओं से सीकर॥


फसल उगेगी निश्चित, सुख, सन्तोष, तृप्ति की मनहर।

स्वेद बहाया और पौध, जो तुमने आज लगायी॥


आज बिछुड़ने की बेला है, पथ नहीं रोकेंगे।

औ देकर विश्वास हृदय का, तुमको विदा करेंगे॥

यह मशाल चिर ज्वलित रहेगी, रक्त हृदय का पीकर।

ज्योति न बुझने देंगे, अवसर पड़ा प्राण भी देकर।

जीवन बाँटा है तुमने, निज प्राण गलाकर छिटका।

मृत मानवता पुनः जी उठी पी अमृत तव घट का॥

नवल यज्ञ के उद्गाता को कौन न पहचानेगा।

युग दृष्टा, युग सृष्टा, तुमको विश्व सदा मानेगा।


युग-युग तक जग याद करेगा। युग के उद्घोषक को।

नव जागृति का सूत्रपात होगी यह सजल विदाई।

                                                              - माया वर्मा

                        *समाप्त*



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