पेशवाओं के जमाने में एक न्यायाधीश थे—रामशास्त्री प्रभुण। राघोवा ने अपने भतीजे का खून किया, जो पेशवा था। रामशास्त्री पेशवाओं के न्यायाधीश थे। उनकी तनख्वाह पाते थे। राघोवा पेशवा ने उन्हें अपने दरबार में बुलाया। पेशवा की रानी ने उनसे पूछा कि पेशवा ने प्रत्यक्ष खून किया है, अब तुम क्या करना चाहते हो? रामशास्त्री ने कहा कि न्यायासन पर बैठ कर मैं एक ही चीज सीखा हूँ कि इस राज्य में जो कोई दूसरे का खून करेगा, उसे देहान्त प्रायश्चित्त करना चाहिए। रानी ने दुबारा, तिबारा वही सवाल पूछा और उन्होंने हर बार देहान्त प्रायश्चित्त की ही बात कही। रानी ने कहा कि क्या तुम जानते हो कि हम तुम्हारी जीभ काट सकते हैं, तुम्हारे शरीर की बोटी-बोटी काट सकते हैं, तुम्हें काल-कोठरी में बन्द कर सकते हैं। राम शास्त्री ने जवाब दिया कि प्राणों के मोह के कारण मेरे मुँह से न्याय विरुद्ध कोई कमजोरी का शब्द निकलने से पहले अच्छा होगा कि आप इस जीभ को कटवा लें।