अब नहीं मौन का समय रहा,
अब नहीं शान्ति की बेला है॥
गर हो सपूत सच्चे माँ के, मारो मरमिटो पर हटो नहीं,
दो शीश चढ़ा माँ के पग में॥ यह दो दिन का मेला है॥
दो मसल मेरु मन्दराचल को, अब नहीं मौन का समय रहा,
यदि आजाये तेरे मग में॥ अब नहीं शान्ति की बेला है॥
ललकार रहा पंचानन को, केशरिया बाना पहन पहन,
गीदड़ का खड़ा झमेला है। तरु वर के पत्ते डोल रहे॥
अब नहीं मौन का समय रहा, धरती का कण कण बोल रहा,
अब नहीं शान्ति की बेला है। अम्बर से तारे बोल रहे॥
राणा प्रताप की शान आज, दिखलानी है वह कला तुझे,
है तुम्हें बचाना धीर वीर॥ दिखलाया जो कर्ण अकेला है॥
भारत माता को दिखलाना है, अब नहीं मौन समय रहा,
तुम्हें कलेजा आज चीर॥ अब नहीं शान्ति की बेला है॥
बनना है तुमको सेनानी, गंगा यमुना की धारों से।
आचार्य द्रोण का चेला है॥ सागर के विमल किनारों से॥
अब नहीं मौन का समय रहा, आवाज यही आती पल पल
अब नहीं शान्ति की बेला है। झाँसी की उन तलवारों से॥
कहते अतीत सुन लो नभ से, बढ़ो बीर बाँधो तुणीर
पद्मनियाँ भारत की बोली॥यह महा-प्रलय का खेला है॥
इस वर्ष मनाओ नव जवान,अब नहीं मौन का समय रहा।
गोली बारूदों से होली॥ अब नहीं शान्ति की बेला है॥
श्री देवनाथ त्रिपाठी शर्मा