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February 1963

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न जातु कामः कामानामुपभोगे-शाम्यति।

हविष कृष्णावर्त्मेव भूय एवाभिवर्द्धते॥

विषयों की लालसा भोगों के भोगने से शाँत नहीं होती। घृत की आहुति डालने से अग्नि शान्त नहीं हो सकती वरन् उत्तरोत्तर और भी प्रचण्ड होती है।

ठोस काम तभी होता है जब उसे करने वाले की भावनाएँ सच्चे मन से कार्य करती हैं।

हमारी समस्त दुर्बलताएँ तभी समाप्त होती है जब अन्तःकरण जगेगा। उस जागरण के साथ ही हमारा सर्वतोमुखी जागरण होगा। इस जागृति की स्थिति में कोई चोर हमारे घर में एक कदम भी रखने का साहस न करेगा, कोई लुटेरा लूट करने के मनसूबे न बाँध सकेगा। सुरक्षा के लिए जागरण आवश्यक है। राष्ट्रीय जागरण का अर्थ है—जन भावनाओं की प्रखरता, तेजस्विता और जागृति।


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