प्रेम का अमृत और उसका प्रतिदान

February 1963

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किसी मनुष्य के पास दूसरे को देने योग्य यदि कोई सबसे अधिक उत्कृष्ट एवं महत्वपूर्ण वस्तु हो सकती है तो वह है प्रेम—। यों आर्थिक या बौद्धिक सहायता देकर भी किसी का कुछ उपकार किया जा सकता है पर उसका लाभ स्वल्पकालीन रहता है; इसलिए उसकी प्रसन्नता भी क्षण भर ही टिकेगी। प्रेम और सद्भाव पाकर आत्मा जितनी प्रसन्नता अनुभव करती है उतनी और किसी वस्तु से नहीं करती। उपकार करने में जो त्याग करना पड़ता है उससे कई गुना प्रतिफल तब वसूल हो जाता है जब जिसके साथ उपकार किया गया था वह सच्चे हृदय से कृतज्ञता और प्रेम-भावना प्रकट करता है। यह कृतज्ञता और प्रेम भावना उपकारी को ही प्राप्त हो सकती है। इस संसार में पाप और दुष्टता की तरह प्रेम और सौजन्य भी परिपूर्ण मात्रा में भरा पड़ा है, पर उसे वे लोग प्राप्त नहीं कर सकते, जिनका मन कुटिलता और व्यवहार अनीति से भरा पड़ा है। सज्जनता, सरलता, सचाई और सहृदयता में ही वह गुण है कि सामने वाले पत्थर को भी अपने लिए मक्खन जैसा कोमल बना कर रख दे। सच्चा प्रेम प्राप्त करने के लिए सज्जनता की आवश्यकता है। सज्जन व्यक्ति को कई बार चालाक लोग ठग लेते हैं पर तो भी उसकी उदारता और भलमनसाहत के प्रति उन्हें नत-मस्तक ही होना पड़ता है। ठगाये जाने पर भी जिसने अपनी सज्जनता को नहीं छोड़ा है वह किसी भी बलिदानी वीर से कम प्रशंसनीय नहीं है।

जिसके मन में दूसरों के प्रति कोमल भावनाएं रहेंगी वे ही दूसरों का स्नेह और सम्मान प्राप्त कर सकेंगे। मतलब के लिए गधे को बाप बनाने की नीति हर कोई जानता है। खुशामद, चापलूसी, और भुलावा देने वाली मीठी बोली बोलने की कला को अब बहुत लोग जान गये हैं और दूसरों को उल्लू बना कर अपना मतलब निकालने के लिए कितने ही लोग इस हथियार का भरपूर प्रयोग भी करते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि हर व्यक्ति की आत्मा स्नेह, सम्मान और सद्भाव की प्यासी है। यदि वे नकली रूप में भी कहीं दिखाई पड़ते है तो भी उन्हें लुभाने के लिए उतना ही बहुत है। बहेलिये जिस प्रकार दाने डाल कर अपना जाल कबूतरों से भर लेते हैं, मछुए जिस प्रकार आटे की गोली दिखा कर मछलियाँ समेटते रहते हैं उसी प्रकार नकली प्रेम का प्रलोभन देकर कितने ही ठग दूसरों का सर्वस्व हरण कर लेते हैं इन हथकंडों के बीच एक ही सत्य छिपा हुआ है कि वह यह कि हर व्यक्ति प्रेम का प्यासा है, हर किसी सद्व्यवहार और सज्जनता की प्यास है। यह इतना प्रकट तथ्य है कि नकली प्रेम की विडम्बना बना कर वेश्याओं से लेकर प्रपंची ठगों तक सभी ने नकली मधुरता को अपने लिए एक सफलता का व्यावसायिक अस्त्र बनाया हुआ है।

इस भूतल का अमृत—

यह तो हुई नकलीपन की बात। असली रूप का आनन्द तो इतना उत्कृष्ट है कि उसकी एक बंद के बदले में मनुष्य अपना सर्वस्व निछावर कर सकता है। प्रेम की असफलता में अनेकों आत्म-हत्या करते रहते हैं, प्रेम की प्राप्ति के लिए लोग बड़े से बड़ा त्याग करते हैं। पति-पत्नी के प्रेम सम्बन्ध में तो यह बात स्पष्ट ही है। स्त्री-स्त्री और पुरुष-पुरुष में भी प्रेम भाव की गहनता होने पर एक दूसरे के लिए मर-मिटने के अवसर सहज ही आ सकते हैं। निस्सन्देह मनुष्य को अपना धन और प्राण प्रिय हैं, पर प्रेम की महानता इतनी ऊँची है कि उसके लिए इन दोनों को भी सहज ही तिलाञ्जलि दी जा सकती है।

यदि सच्चे स्नेह और सच्चे सद्भाव की कुछ बूँद मनुष्य को मिलती रहें तो वह रूखी रोटी खाकर और फटे चिथड़े पहन कर अमीरों और रईसों से अधिक आनन्द एवं गर्व अनुभव करता हुआ जीवन व्यतीत कर सकता है। परिवार के छोटे दायरे में जिसे धर्म-पत्नी की अनन्यता, बच्चों को श्रद्धा भाई का विश्वास, बहिन की ममता, माता का वात्सल्य, पिता का प्रेम, नौकर की वफादारी, प्राप्त है, उसे अगणित समस्यायें सामने रहते हुए भी अपना जीवन स्वर्गीय शान्ति से परिपूर्ण दिखाई देगा। फिर जिसके मित्र, स्वजन, परिजन, परिचित, सम्बन्धी, व्यवहारी भी ऐसा ही व्यवहार रखने लगें तब तो कहना ही क्या है। उस जीवन में हर दिशा से आनन्द ही निर्झरिणी बहती रहेगी।

हम बदलें तो दुनिया बदले-

ऐसी प्रेममयी-आत्म-भाव से परिपूर्ण परिस्थितियाँ प्राप्त कर सकना हर किसी के लिए नितान्त सरल और सम्भव है। दुनिया में हर चीज की कीमत है यहाँ बिना कीमत चुकाये कुछ भी नहीं मिलता। दूसरों का सम्मान, स्नेह, सद्भाव और सहयोग प्राप्त करने के लिए हमें वही तत्व अपने भीतर पैदा करने पड़ेंगे और उसका उपयोग दूसरों के लिए करना पड़ेगा। चुम्बक अपने में आकर्षण शक्ति न हो तो पास में पड़े हुए लौह कण भी उपेक्षा का भाव दिखाते रहेंगे, उधर अभिमुख होने की कोई चेष्टा न करेंगे।

प्रेम, प्रेम की कीमत पर खरीदा जा सकता है। वह एकाँगी भी हो सकता है। एक का सच्चा प्रेम दूसरे को कभी न कभी अपने अनुगत बना ही लेता है। बुरे लोगों को भी यदि हम प्यार करने लगें तो उनका सुधार ही होगा। आज नहीं तो कल, हारे जितना न सही उससे कम, कुछ तो प्रेम भाव उनके मन में उपजेगा और बढ़ेगा ही। सच्चे मन से किया हुआ प्रेम कभी भी निरर्थक नहीं जाता। उसके द्वारा पत्थर की मूर्तियाँ और कागज के चित्र देवता बन कर हमें आनन्द से ओत-प्रोत कर सकते हैं तो फिर हाड़-माँस वाला सजीव प्राणी प्रत्युत्तर में सर्वथा प्रेम-विहीन कैसे बना रहेगा?

यदि प्रेम के बदले प्रेम का प्रत्युत्तर न भी मिले, अपने को ठगे जाने और घाटे में रहने का अवसर आवे तो भी उसकी हानि केवल भौतिक हानि ही रहेगी। प्रेम की दिव्य अनुभूतियाँ अपने अन्तःकरण में जब उठती रहती है तो वहाँ पुष्प-वाटिका की तरह सौंदर्य और सुगन्ध का साम्राज्य छाया रहता है। उसका आनन्द तो अपने को मिलता ही है। आत्मा की सबसे प्रिय अनुभूति प्रेम है। उसका रसास्वादन होते रहने से आत्म-तृप्ति, आत्म-सन्तोष और आत्मोल्लास का जो हर घड़ी लाभ होता रहता है उसकी तुलना में यदि कुछ भौतिक हानि उठानी पड़े तो वह तुच्छ एवं नगण्य ही मानी जायगी।

प्रेम की एक-एक बूँद के लिए यह दुनिया तरस रही है। अनावृष्टि काल में पानी का जैसा अकाल रेगिस्तानों में पड़ता है वैसा ही प्रेम दुर्भिक्ष आज सर्वत्र छाया हुआ है। प्रेम के नाम पर ठगी, चापलूसी, वासना और शोषण की प्रवंचना तो खूब बढ़ी है पर सच्चा प्रेम-जिसमें आत्म-दान और निःस्वार्थ सेवा का ही समावेश होता है अब देखने को नहीं मिलता इस आध्यात्मिक विभूति के अभाव में जीवन नीरस ही बने रहते हैं। सब ओर कुछ खोया-खोया सा, सब ओर अभाव-अभाव सा ही दिखाई पड़ता है। यदि सच्चे प्रेम के कुछ कण भी किसी को प्राप्त हो जाते हैं तो सचमुच ही उसके सब अभाव पूर्ण हो जाते हैं।

हमें अपने भीतर सच्चे प्रेम की भावनाएँ जागृत करनी चाहिए, दूसरों को अपना मानना चाहिए, उन्हें आत्मीयता की दृष्टि से देखना चाहिए, फलस्वरूप हम भी सच्चे प्रेम के रसास्वादन से वंचित न रहेंगे। संसार के खेत में अपना प्रेम बीज बखेरते फिरें तो कोई-कोई पौधा उसका जरूर उगेगा और उसकी सुगंध से भी हमें आनंद और तृप्ति देने लायक बहुत कुछ मिल जायगा।


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