महात्मा बुद्ध नित्य ही उपदेश देते थे कि “पापी के साथ स्वयं भी वैसा ही व्यवहार करके पापी न बनो। कीचड़ से कीचड़ कभी नहीं धुलता। जो कोई तुम्हारे साथ बुराई करे उसके साथ भी भलाई ही करो। अपकारी के साथ भी उपकार ही करो।” महात्मा बुद्ध की यह बातें सुनकर एक दुष्ट बुद्धि व्यक्ति ने उसका गलत अर्थ लगाया। वह जान बूझ कर महात्मा बुद्ध को गाली देने लगा। महात्मा बुद्ध शान्त और गम्भीर भाव से सब कुछ सहन करते रहे। जब वह गाली देता-2 थक कर चुप हो गया तब महात्मा बुद्ध ने प्रेम पूर्वक पूछा-”वत्स! यदि कोई किसी की दी हुई भेंट स्वीकार न करे तो वह किसकी रहती है?’ इस पर वह बोला - “देने वाले की ही’। तो फिर अपनी भेंट तुम अपने ही पास रखो। मुझे यह सब नहीं चाहिए। इन्हें स्वीकार करने और सुनने पर तो मुझे भी तुम्हारी ही तरह उद्विग्न होना पड़ेगा।”