सृष्टि के आरंभ की बात है पुलस्ति के पुत्र विश्रवा के एक ऐसा पुत्र उत्पन्न हुआ जो बहुत ही कुरूप और बेडौल था। हाथ तो उसके बहुत ही छोटे थे। उसे देखकर घर के सभी लोग खिन्न हुए और उसका नाम कुबेर-अर्थात् कुरूप रख दिया। बालक कुबेर जब बड़ा हुआ तो दूसरों द्वारा अपना उपहास उड़ाये जाते देख कर उसे लोगों की मूर्खता पर बड़ा क्षोभ हुआ। रूप को गुणों से अधिक महत्त्व दिया जाय यह बात उसे सहन नहीं हुई। कुबेर ने अपने पुरुषार्थ से अपनी योग्यता को बढ़ाने का निश्चय किया और कठोर तप करने लगा। बालक की ऐसी लगन देख कर घर के वे लोग भी द्रवित हो गये जो पहले उसका उपहास करते थे। बाबा पुलस्ति और पिता विश्रवा भी कुबेर की पुरुषार्थ साधना में सम्मिलित हो गये और तीनों का सम्मिलित प्रयत्न कुछ ही दिनों में आशाजनक रीति से सफल हुआ। देवताओं को प्रसन्न करके कुबेर धनाधीश और लोकपाल बन गये। और अलकापुरी में राज करने लगे।
जो लोग आरम्भ में कुबेर की कुरूपता देख कर उसका उपहास करते थे, उन्हें समृद्ध धनाधीश कुबेर के पुरुषार्थ के सामने नतमस्तक होना पड़ा। सबने स्वीकार किया कि रूप की अपेक्षा गुणों का महत्व अत्यधिक है।