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December 1942

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अग्नि की तीव्रता आग से शान्त नहीं हो सकती है। इसको ठण्डे जल की जरूरत है। इसी तरह क्रोधी का क्रोध भी शीतल शब्दों के प्रयोग से ही दूर हो सकता है। न कि भड़कीले शब्दों से।

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आपत्तियाँ आना नदी में बाढ़ आने के समान है। गम्भीर मनुष्य चट्टान की तरह दृढ़ हुआ करते हैं। जैसे चट्टान पानी टकरा-टकरा कर थोड़ी देर बाद ठहर जाता है। उसी तरह विपत्तियाँ भी गम्भीर मनुष्यों का सामना करके उन्हें कुछ भी हानि नहीं पहुँचा सकती।

अदृश्य विवेचन लेखमाला-2


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