अदृश्य प्राणियों का अस्तित्व

December 1942

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तलाश करने पर ऐसी अनेक अद्भुत एवं आश्चर्यजनक घटनाएं हर प्रदेश में प्राप्त हो सकती है, जिनसे अलौकिकताओं का अस्तित्व सिद्ध होता है। भूत प्रेतों की करतूतों के परिचय अक्सर प्राप्त होते रहते हैं। देवी देवताओं का विग्रह अनुग्रह अक्सर दृष्टिगोचर हुआ करता है। इस देश में घटित होने वाली अलौकिक घटनाओं को अन्धविश्वास या पाखण्ड कहकर अक्सर हँसी में उड़ा दिया जाता है, परन्तु सत्य पर सदा के लिये पर्दा नहीं डाला जा सकता है। योरोप, अमेरिका जैसे विज्ञान उपासक देशों में निरन्तर ऐसे अवसर आते रहते हैं, जिनमें किसी अदृश्य प्राणी का हाथ होना सिद्ध होता है। इस विषय में बड़े बड़े जाँच कमीशन बिठाये गए हैं और उनकी रिपोर्टों में स्पष्ट रूप में स्वीकार किया गया हैं कि कई ऐसे अदृश्य प्राणी इस संसार में अवश्य मौजूद हैं जो मनुष्य इस कई गुनी अधिक शक्तियाँ रखते हैं और वे स्वेच्छानुसार मनुष्यों, को सहायता या बाधा पहुँचा सकते हैं।

कुछ दिन पहले की बात है, स्टेनफोर्ड नगर में एक सी॰ वेइली नामक लुहार रहता था, उसे कोई अदृश्य देवता सिद्ध था, जिसकी सहायता से अनेक अद्भुत वस्तुएं वह पल भर में मँगा देता था। मि. फोर्ड ने उस लुहार को आर्थिक आश्रय दिया और उसकी सचाई की परीक्षा के लिए एक बड़ी भारी सभा में उसे उपस्थित किया। दर्शकों ने लुहार से बड़ी विचित्र चीजें माँगी। लुहार ने क्षण भर में उन चीजों को मँगा दिया। इन चमत्कारों की चर्चा उस देश के ऊँचे लोगों तक पहुँची और वहाँ की सबसे बड़ी वैज्ञानिकों की सभा ने फोर्ड और वेइली को चुनौती भेजी कि यदि उनकी बातें सच है तो एक विशाल प्रदर्शनी में अपनी सचाई सिद्ध करें। फोर्ड ने वह चुनौती स्वीकार कर ली और मेल्बोर्न नगर की उस सबसे बड़ी प्रदर्शनी के सामने, जिसमें देश भर के प्रख्यात तार्किक, वैज्ञानिक, अन्वेषक और शोधक उपस्थित थे, देवता के करतब दिखाये और दर्शकों की माँगी हुई ऐसी-ऐसी वस्तुएं हाजिर कर दीं जिनके बारे में किसी को ख्याल तक नहीं था। दर्शकों में से एक ने टर्की देश का वह अखबार माँगा जो ठीक उसी समय वहाँ छप रहा हो। उसी क्षण वह अखबार हाजिर कर दिया। छपाई की स्याही भी सूखने न पाई थी कि हजारों मील उड़कर पल भर में वह अखबार आ गया। इन चमत्कारों को देखकर शीया पेरेली, काउण्ट बाउडी डिवेस्मे, प्रोफेसर फरल कमेर, जिग्नोर, वर्जीनिया पेगे प्रो॰ सोमी, डिगिस्टी नियानी सरीखे गणमान्य पुरुषों को यह बात मुक्त कण्ठ से स्वीकार करनी पड़ी कि इसमें रत्ती भर छल कपट नहीं है और यह किसी अदृश्य शक्ति का ही काम है।

एक फोर्ड या वेहली ही नहीं अनेक महानुभाव इन अदृश्य प्राणियों के अद्भुत कार्यों का प्रत्यक्ष अनुभव कर चुके हैं। आत्मा के न मानने वाले जड़ विज्ञान के अन्वेषकों में से भी जिन लोगों ने इस तत्व का अन्वेषण किया है उनमें से अधिकाँश को अपना अविश्वास छोड़ना पड़ा है। डार्विन का साथी कार्यकर्ता और साइन्स का अग्रिणी विद्वान, आलफ्रेड रसेल वालेस, इंग्लैंड की रायल सोसाइटी के सदस्य और फ्राँस की एकेडमी आफ साइन्स से स्वर्ण पदक प्राप्त एवं रेडियो मीटर आथियोस्कोप सरीखे यन्त्रों के आविष्कारक प्रोफेसर विलियम क्रुक्स, हाबर्ट कालेज के प्रोफेसर सर जेम्स, कोलम्बिया कालेज के प्रोफेसर हिर लोप, खगोल विद्या के आचार्य केमिल फ्लेमेरियोगा, आयरलैण्ड के वैज्ञानिक प्रो. वेरेट आदि अनेक महानुभावों को उनके अपने अनुभवों ने इस बात को मानने के लिए मजबूर कर दिया है कि दृश्य मनुष्यों की भाँति कोई अदृश्य प्राणी भी इस दुनिया में मौजूद है ओर वे यदा कदा साँसारिक कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं। अखण्ड ज्योति के पाठक पिछले अंकों में ऐसे अनेक विवरण पढ़ चुके है जिनमें प्रेतात्माओं के कार्यों का वर्णन है।

प्रेतों सम्बन्धी अनुभव इतने अधिक परिमाण में प्राप्त होते हैं कि विज्ञान के सम्मुख अब यह सवाल नहीं रहा है कि प्रेत होते हैं या नहीं। उनके अस्तित्व को प्रमुख विज्ञान परिषदों ने बिना किसी हिचकिचाहट के स्वीकार कर लिया है। आजकल जो मृतात्माओं के सम्बन्ध में शोधें हो रही हैं, वह प्रेतों की उत्पत्ति, क्रियाशीलता, रुचि, शक्ति एवं इच्छाओं से सम्बन्ध रखने वाली है। प्रेतों की कितनी किस्में कही जाती है जैसे भूत, प्रेत, जिन्न, मसान, बैताल, पीर, भैरव आदि। यह दो प्रकार के माने जाते है। छोटी योग्यता और नीच इच्छा वाले अदृश्य प्राणी भूत प्रेत कहलाते हैं और ऊँची शक्ति एवं उत्तम इच्छा वाले प्राणी देवी देवता कहे जाते हैं। भूत प्रेत अक्सर पूर्व जन्म की इच्छाओं से प्रेरित होकर अपना विग्रह अनुग्रह प्रकट करते हैं। किन्तु देवी देवताओं को तप साधना द्वारा वश में किया जाता है। योग दर्शन में जिन ऋद्धि-सिद्धियों का वर्णन किया है वे देवियाँ हर किसी पर अनुग्रह नहीं करती। वरन् तपस्वियों पर ही प्रसन्न होती हैं। योग साधना करने वाले तपस्वी तथा कठोर वाममार्गी, हठ अनुष्ठान करने वाले तान्त्रिक ही ऋद्धि सिद्धियों को धारण किये हुए देखे जाते हैं। इससे यह प्रतीत होता है कि भूत प्रेत चाहे भले ही किसी पर स्वेच्छा से विग्रह अनुग्रह करें पर ऊँची शक्ति वाले देवी देवता घोर आध्यात्मिक साधन करने वाले साधकों के ऊपर ही कृपा करते हैं सिद्ध लोगों के जीवन क्रम का रहन सहन का, आचार व्यवहार का परीक्षण किया जाए तो वे एक विचित्र ढंग के साँचे में अपने को ढले हुए मिलेंगे, साधारण व्यक्तियों से उनकी स्थिति बहुत ही भिन्न होगी। यह भिन्नता प्रकट करती है उनका जीवन साधनामय बना हुआ है। तपस्या के कारण देवताओं की कृपा उन्हें प्राप्त हुई है या देवता की कृपा प्राप्त करने के लिए वे तपस्या कर रहे हैं, बात चाहे जो भी हो परन्तु यह निर्विवाद है कि देवताओं की तपस्या से ही, इन सिद्धियों का अत्यन्त घना सम्बन्ध है इतिहास में भी ऐसे ही आख्यात मिलते हैं जिनमें तपस्या से प्रसन्न होकर किसी देवता का प्रकट होना और मनोवाँछा पूरी करना सविस्तार वर्णित है।

भूतों की बात हम छोड़ देते हैं क्योंकि उनके कार्यों का मूल हेतु प्राप्त हो गया है वे पूर्व जन्म की इच्छाओं से प्रेरित होकर कार्य करते हैं। परन्तु देवी देवताओं का यह स्वभाव बड़ा रहस्यमय है कि कोई दूसरा व्यक्ति घोर कष्ट सहन करे, कठोर आध्यात्मिक परिश्रम करे तो उन्हें बहुत प्रसन्नता होती है और अनायास ही उस साधक के वशवर्ती हो जाते है। विक्रमादित्य को ‘वीर’ सिद्ध थे। वे वीर उसकी आज्ञा में हर वक्त खड़े रहते थे। ऊपर बेइली लुहार के वश में अदृश्य प्राणी के होने का वर्णन है यह प्राणी मोटी दृष्टि में भूत प्रेत समझा जा सकता है, पर बारीक दृष्टि से देखने पर वह देवता कोटि में आता है, क्योंकि भूत प्रेत किसी के आज्ञानुवर्ती नहीं बनते, वे मन मौजी काम करते हैं किन्तु सिद्ध हुआ देवता सेवक की तरह हुक्म बजाता है। सिद्ध योगी एवं ताँत्रिकों के पास मनमौजी भूत नहीं, वरन् आज्ञाकारी देवता होते हैं। भूतों के तो विग्रह अनुग्रह दोनों ही अन्ततः हानिकारक सिद्ध होते हैं, किन्तु देवता का वश हो जाना एक बड़ी सफलता है। पाठकों को भूत और देवताओं में अन्तर भली प्रकार समझ लेना चाहिए। भूत अपनी ओर से आते हैं किन्तु देवता बड़े प्रयत्न से बुलाये जाते है। कभी कभी कोई भूत विशेष अनुग्रह करे तो देवता स्वभाव का थोड़ा बहुत परिचय दे सकते हैं पर उसकी यह कृपा अस्थिर एवं अनिश्चित ही होती है।

‘देव सिद्धि’ वास्तव में एक बड़ा भारी पौरुष है। अनेकों मनुष्यों को कुछ अंशों में कोई देवी देवता सिद्ध होते हैं, पर उसके सम्बन्ध में कुछ अधिक जानकारी नहीं रखते। अपने में कुछ विशेष शक्ति उन्हें प्रतीत होती है, कभी-कभी ऐसे भी अनुभव आते हैं कि किसी आवश्यक मौके पर अचानक ईश्वरीय सहायता प्राप्त होती है। असल में यह शक्ति एवं सहायता देवता की ही प्रेरित होती है। ईश्वर तो एक साक्षी तत्व है वह प्राणियों के दैनिक काम काज में हस्तक्षेप नहीं करता। अदृश्य सहायताएं एवं प्रेरणायें तो उन देवताओं से ही प्राप्त होती हैं। हर कोई जानता है कि जो जितना परिश्रमी, उद्योगी तथा तपस्वी होता है उसे उतनी ही ईश्वरीय सहायता मिलनी है कारण यह है कि उस व्यक्ति की तपस्या जितने परिमाण में होती है उसी अनुपात की देव कृपा प्राप्त हो जाती है।

दैनिक जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण सहायता करने वाले यह देवता कौन हैं? कहाँ रहते हैं? क्या करते हैं? तपस्या से क्यों प्रसन्न होते हैं? वश में आने पर क्यों सेवक की तरह हुक्म बजाते हैं? पाठक इन सब गुप्त मर्मों को जानने के इच्छुक होंगे। हम वैज्ञानिक ढंग से, साइन्स की खोज के आधार पर और मनोविज्ञान शाखा के प्रामाणिक सिद्धान्तों के अनुसार उपरोक्त सब प्रश्नों का विस्तारपूर्वक उत्तर इन्हीं पंक्तियों में जनवरी के विशेषाँक के बाद फरवरी मास में देंगे।


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