आत्मा को सत्य का साक्षात्कार कराने वाला नया प्रकाशन
‘अखण्ड ज्योति’ सम्पादक आचार्य श्रीराम शर्मा ने अपने अतुलित अध्ययन और गंभीर मनन के आधार पर इन सद्ग्रन्थों की रचना की है। इनकी एक पंक्ति में आध्यात्मिक तत्वज्ञान भरा हुआ है। यह रचनाएं इसी मास छप कर तैयार हुई हैं। पाठकों को इनकी एक-एक प्रति अवश्य मंगा लेनी चाहिए।
ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?
ईश्वर सम्बन्धी सम्पूर्ण शंकाओं का समाधान करते हुए इस पुस्तक में परमात्मा सम्बन्धी जानकारी के प्रत्येक पहलू पर प्रकाश डाला गया है। ईश्वर को कैसे प्राप्त किया जा सकता है? उसकी कृपा से क्या होता है? इन सब रहस्यों पर गंभीर विवेचना की गई है। मूल्य।-)
जीवन की गूढ गुत्थियों पर तात्विक प्रकाश।
जीवन की समस्याएं इतनी उलझी हुई हैं कि उन्हें सुलझाते हुए मनुष्य की बुद्धि चक्कर खा जाती है। हम कौन हैं? कहां से आये? किधर जा रहे हैं? आगे हमारा क्या होगा? जीवन का उद्देश्य क्या है? मृत्यु क्या है? पशु योनि कैसे मिलती है? ऐसी अनेकों गुत्थियाँ इस पुस्तक में बड़े ही सुन्दर ढंग से सुलझाई गई हैं। मू. ।-)
गहना कर्मणो गतिः
कर्म की गति बड़ी गहन है। भला करते बुरा फल और बुरा करते अच्छा फल मिलता हुआ देखकर लोगों की बुद्धि चक्कर खा जाती है। इस पुस्तक में उस समस्या को सुलझा कर दर्पण की तरह रख दिया है, जिससे कर्म फल की सारी समस्या भली प्रकार समझ में आ जाती है। मूल्य।-)
क्या धर्म? क्या अधर्म?
संसार में अनेक सम्प्रदाय, मत एवं धर्म प्रचलित हैं। एक मत किसी बात को धर्म बताता है, दूसरा उसी का खंडन कर देता है। इस विरोध की गुत्थी को सुलझाते हुए धर्म की ऐसी व्याख्या की गई है, जो हर एक व्यक्ति को मान्य हो। प्रथाओं में सम्प्रदायों, कर्मकाण्डों की उपयोगिता, अनुपयोगिता पर भी भली प्रकार मार्मिक चर्चा है। मूल्य।-)
पंचाध्यायी
यह आधुनिक युग की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक मानसिक शारीरिक एवं धार्मिक समस्याओं पर व्यवस्था देने वाली गीता है। भारत की दुरवस्था कैसे हुई? और भविष्य में नवीन भारत का निमार्ण कैसे होगा? इसमें इन प्रश्नों का ठोस उत्तर है। संस्कृत के सुचलित श्लोक, नीचे अन्वय सहित अर्थ, अच्छा कागज, सुन्दर जिल्द, इस पर भी मूल्य॥।) मात्र। नवीन युग की यह नवीन गीता हर धर्मप्रेमी के हाथ में होनी चाहिए।
मँगाने में जल्दी कीजिये! इस अलभ्य ज्ञान से एक घड़ी भी वंचित मत रहिये।
मैनेजर-अखण्ड ज्योति, मथुरा।
मृत्योर्मामृतं गमय
-श्रुति
मृत्यु की ओर नहीं; जीवन की ओर चलिए!
अविद्या ही मृत्यु और विद्या ही जीवन है!
-इसलिए-
अपने अविद्या पूर्ण विचारों को त्यागते हुए, हृदय में ज्ञान का प्रकाश धारण करिए।
वर्ष 2 सम्पादक - आचार्य श्रीराम शर्मा अंक 12