बड़े का बड़प्पन

December 1942

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जुटफान की रणभूमि में घोर युद्ध करते हुए फौज के प्रधान अफसर सर फिलिप सिडनी बुरी तरह घायल हुए। वे युद्ध में बहादुरी से लड़ रहे थे कि दुश्मन की एक गोली उनकी जाँघ में आ कर लगी। जिससे वहाँ की हड्डी के दो टुकड़े हो गये। घोड़े को लौटा कर वे अपने कैम्प में आये। घाव में से खून इतनी तेजी से निकल रहा था कि उनके बचने की कोई आशा नहीं थी।

कैम्प में पहुँचते-पहुँचते सर फिलिप घोड़े पर से गिर पड़े। मूर्छा से चेत हुआ तो उन्होंने इशारे से पानी माँगा। तलाश के बाद पानी लाया गया और फिलिप के हाथ में दे दिया गया। पानी होठों तक ही जाने पाया था कि उनके कानों में एक दूसरे सिपाही की आवाज आई जो दूर घायल पड़ा हुआ था और पानी-पानी चिल्ला रहा था।

फिलिप ने गिलास को अपने होठों से अलग हटा दिया और कहा इसे उस सिपाही को पिला दो। उनसे आग्रह किया कि आप अफसर हैं, आपका मूल्य एक साधारण सिपाही की अपेक्षा अधिक है। इसलिए आप ही पानी पीजिए। फिलिप ने कहा “मेरा मूल्य इसीलिए अधिक है कि मैं सिपाहियों को सच्चे दिल से प्यार करता हूँ और उनकी तकलीफ को अपनी तकलीफ से बढ़कर समझता हूँ। यदि यह बात मुझमें न रहे तो फिर किस प्रकार मुझे बड़ा कहा जाएगा।

“मुझे एक सिपाही से बड़ा समझा जाता है, इसलिए मेरा बड़प्पन इसी में है कि मैं इस पानी को सिपाही को दे दूँ। उनकी आज्ञानुसार वह गिलास सिपाही के पास पहुँचा दिया गया। सर फिलिप सिडनी कुछ क्षण उपरान्त स्वर्ग सिधार गये, पर उनका बड़प्पन अभी तक जीवित है।”


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