बदला मत माँगो

September 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ऋषि तिरुवल्लुवर के उपदेश)

मैंने इतना किया पर इसका बदला मुझे क्या मिला? उतावले मनुष्य! बदले के लिए इतनी जल्दी क्यों करते हो? बादलों को देखो, वे सारे संसार पर जल बरसाते फिरते हैं, किसने उनके अहसान का बदला चुका दिया? बड़े-बड़े भूमि-खंडों का सिंचन करके उनमें हरियाली उपजाने वाली नदियों के परिश्रम की कीमत कौन देता है? हम पृथ्वी की छाती पर जन्म भर लदे रहते हैं और उसे मल-मूत्र से गंदी करते रहते हैं, किसने उसका मुआवज़ा अदा किया है? वृक्षों से फल, छाया, लकड़ी पाते हैं, पर उन्हें क्या कीमत देते हैं? परोपकार स्वयं ही एक बदला है। इस समय तुम उसे व्यर्थ समझ रहे हो, पर जब तुम परोपकार करने का स्वयं अनुभव करोगे, तो देखोगे कि ईश्वरीय व दान की तरह यह दिव्य गुण स्वयं ही कितना शाँतिदायक है, हृदय को कितनी महानता प्रदान करता है। उपकारी जानता है मेरे कार्यों से जितना लाभ दूसरों का होता है, उससे कई गुना स्वयं मेरा होता है। ज्ञानवान पुरुष जो कमाते हैं, वह दूसरों को बाँट देते हैं, वे सोचते हैं, कि प्रकृति जय जीवन सरीखी बहुमूल्य वस्तु मुफ्त दे रही है, तो हम अपनी फालतू चीजें दूसरों को देने में कंजूसी क्यों करें? वह बुरे दिनों में और विपत्तियों की घड़ियों में भी इस दिव्य गुण का परित्याग नहीं करता। वह जब भौतिक पदार्थ देने में असमर्थ होता है, तो अपनी सद्भावनाएं और शुभकामनाएं ही दूसरों को देता रहता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118