हम सुन्दर कैसे बनें?

September 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जैसे स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिये भीतरी और बाहरी नियमों को पालन करने की आवश्यकता है, वैसे ही सौंदर्य के लिए दोनों प्रकार की आवश्यकता है। प्रेम भावना और सौंदर्य की दृष्टि होने से आत्मा का स्वाभाविक सौंदर्य स्रोत फूट निकलता है अब हमें बताना है कि सौंदर्य के बाह्य साधन क्या हैं? वैसे तो स्वास्थ्य ही सौंदर्य है। तन्दुरुस्त आदमी हमेशा खूबसूरत मालूम पड़ता है। जब शरीर और मन, अनावश्यक भारों से मुक्त होकर हलका हो जाता है, तो देवी गुण उसमें ऊपर झलकने लगते हैं। कीचड़ में पड़े हुए लकड़ी के टुकड़े जहाँ के तहाँ पड़े रहते हैं, किन्तु जब कीचड़ हट जाती है और स्वच्छ जल में वे रहते हैं, तो फिर गढ़े नहीं रहते, वरन् सतह पर ऊपर आकर तैरने लगते हैं। काँच की खिड़कियों पर से जब गर्द गुबार हट जाता है और वे स्वच्छ कर दी जाती है, तो सूर्य का प्रकाश उनमें होकर आर-पार जाने लगता है। निर्मल शरीर और मन में होकर आत्मा की ज्योति जगमगाने लगती है, यही श्रेष्ठतम सौंदर्य है।

सफाई सौंदर्य की अग्रदूती है। मन की सफाई से आत्म-ज्योति के ऊपर पड़े हुए पर्दे हट जाते हैं। बाहरी सफाई से वे खिड़कियाँ स्वच्छ हो जाती हैं, जिनमें होकर इस जगमग ज्योति के दर्शन होते हैं। मन के साथ शरीर को भी निर्मल रखना चाहिये। क्योंकि मलीनता ही कुरूपता है। तुम्हारे शरीर पर कहीं भी मैल जमा न होना चाहिये। रोज स्नान करो और खुरदरे तौलिये से चमड़ी को खूब अच्छी तरह रगड़ डालो, ताकि पसीने का मेल और बाहर से उड़ कर जमा हुई धूलि कहीं भी लगी हुई न रह पावे। जहाँ कुछ छिपने का स्थान मिलता है, वहाँ चोर की नाई मैल छिप बैठता है, इसलिये छिपने के स्थानों पर तीव्र दृष्टि रखो। गुप्त अंग सदा छिपे रहते हैं, इसलिये हम उधर ध्यान नहीं देते। चोर को तो वही जगह चाहिए, जहाँ कोई देखता न हो। इसलिये जंघाओं के आस-पास कोई भी जगह बिना अच्छी तरह साफ किये न छोड़ो। बगलें भी छूट जाती हैं, फलस्वरूप उनमें एक प्रकार की गंध आने का रोग हो जाता है। उन्हें खूब रगड़-रगड़ कर धो डालो। बालों की जड़ों में मैल को छिपने की जगह मिल सकती है, इसलिये सिर को खूब अच्छी तरह रगड़-रगड़ कर साफ करो, ताकि कहीं जरा भी मैल न छिपा रहे। नाक, कान में भी कोई खुरट जमा न रहने चाहिये। दाँतों की सफाई तो सब से बहुमूल्य है। यदि दाँत गंदे हैं, तो उनमें विष अवश्य जमा होगा, यह विष साँस के साथ पेट में जाकर बड़े उपद्रव पैदा करता है। दाँतों की गंदगी बढ़कर जब पायेरिया का रूप धारण कर लेती है और पीप निकलने लगता है, तब तो मुँह से बड़ी बुरी बदबू आती है और वह पीप भोजन के साथ मिल कर उसे जहरीला बना देता है। इसलिये नित्य दाँतों को माँजो और भोजन के उपरान्त अच्छी तरह कई बार कुल्ला कर डालो, जिससे कि अन्न का एक भी कण दाँतों की जड़ में जमा न रहे और सड़ कर कोई रोग न पैदा कर सके। शौच जाते समय मल-मूत्र की इन्द्रियों को शीतल जल से अच्छी तरह धो डालो, ताकि अशुद्धता का लेश भी वहाँ न रह जावे। पेट में भीतर मल जमा हो गया हो कृष्ट बद्ध हो, तो तुरन्त ही उसकी सफाई करने का प्रयत्न करो। शरीर में भीतर बाहर सर्वत्र निर्मलता रहनी चाहिये।

कपड़े अधिक मूल्यवान या रंग-बिरंगे पहनने की कोई जरूरत नहीं है। मामूली हलके कपड़े पहने जा सकते हैं, परन्तु वे रहें बिलकुल साफ यदि तुम्हारे पास पैसा है, तो धुलाई का खर्च बढ़ा दो। स्नान करने के बाद रोज नया धुला हुआ कपड़ा पहनो। यदि पैसे की कमी है, तो अपने हाथ से स्नान के बाद रोज अपने कपड़े साबुन से साफ करो। जो कपड़े शरीर को छूते हैं, वह तो जरूरी ही नित्य धुलने चाहिये। सोते समय बिस्तर के ऊपर चादर बिछाओ जो जल्दी-जल्दी धुलते रहना चाहिए। जाड़े के दिनों में रुई का लिहाफ या कम्बल ओढ़ो तो उसके नीचे भी चादर लगा लो क्यों भारी लिहाफ एवं कम्बल न धुल सकें तो वह चादर जरूर ही धुलता रहे।

टीम-टाम के बीस उपायों की अपेक्षा उपरोक्त दो बातें ही कई गुनी मूल्यवान हैं। आज ही अपने शरीर को इंच इंच जगह रगड़-रगड़ कर अच्छी तरह साफ कर डालो और बिलकुल साफ धुले हुए कपड़े पहन कर दर्पण में मुँह देखो, तुम्हें मालूम पड़ेगा कि कल की अपेक्षा आज सुन्दरता ठीक दूनी हो गई है। इस क्रम को यदि नित्य नियम में आदत की तरह ले आओ तो देखोगे कि कुछ ही दिनों में तुम्हारी सुन्दरता कितनी बढ़ जाती है। तुम्हारे प्रयोग में जो वस्तुएं आवें वह भी साफ-सुथरी रहनी चाहिए। पलंग, बिस्तर, कुर्सी, मेज, दवात, कलम, पुस्तकें, अलमारी, कमरा, बर्तन, घर, सवारी सब में सफाई का ध्यान रखो। तुम देखो कि जो वस्तु गंदगी के कारण मलीनता लिए हुए कुरूप अवस्था में पड़ी थी, वही सफाई होने के साथ दूसरे ही रूप में चमक उठी। इस सिद्धान्त का मूल मत है कि मलीनता ही कुरुता की जननी है। जो वस्तु भद्दी मालूम पड़ती हो, जान लो कि इसमें कहीं न कहीं मैल जमा हो गया है। चाहे कोई वस्तु कितनी ही बुरी क्यों न हो, उसकी सफाई हो जायेगी तो उसकी आत्मा निखर जाएगी और उसमें भी भीतरी प्रकाश चमक उठेगा।

जब तुम सफाई का सिद्धान्त स्वीकार कर लेते हो उसे कार्य रूप में परिणित करना आरंभ कर देते हो तो उसी क्षण से सुन्दर बनना आरंभ कर देते हो। अब अपनी सुन्दरता पर विश्वास करने लगो। विद्वानों द्वारा कलाकार की सौंदर्य दृष्टि से विश्व की प्रत्येक वस्तु को सुन्दर देखने का उपदेश किया गया है, उसका प्रारंभ अपने घर से ही होना चाहिए। अपने अंग-अंग को सौंदर्यमयी दृष्टि से देखो। एक बड़ा सा दर्पण लेकर बैठ जाओ और उसमें अपने चेहरे का एक-एक अंग, नाक, कान, आँखें, भवें, गाल, होंठ, दाँत ध्यानपूर्वक देखो और उन पर सौंदर्य की दृष्टि डालो। विश्वास करो कि उनकी मालीनता हट गई है और स्वच्छता के साथ सौंदर्य की ज्योति जगमगाने लगी है। दिन में कई-कई बार दर्पण देखो और हर बार अपने अंगों पर पहले की अपेक्षा अधिक सौंदर्य की दृष्टि डालो। जरा सा मुस्कराओ और देखो कि तुम्हारी मुसकराहट में कितना अपूर्व सौंदर्य छिपा हुआ है। अपनी मुसकराहट पर मुग्ध हो जाओ। मानो तुम्हारी मुसकराहट में आज ही विश्व वशीकरण का अमृत परमात्मा ने घोल दिया है, मानो आज ही यह बहुमूल्य नियामत तुम्हें मिली है। मुस्कराओ। अपने सौंदर्य पर, अपनी मुसकराहट पर, मुसकराहट में मिले हुए अमृत पर, परमात्मा की महती अनुकम्पा पर खूब मुस्कराओ। जब फुरसत मिले तभी मुस्कराओ, इतना मुस्कराओ कि तुम्हारा जीवन ही प्रसन्नता की मधुर मुसकराहट के साँचे में ढल जाय। तुम्हारे होठों से फूल बरसने लगेंगे।

अपने सौंदर्य पर विश्वास करने से सचमुच मनुष्य सुन्दर बन जाता है। वेश्याओं के सभी कार्य कुरूपता उत्पन्न करने वाले होते हैं, परन्तु वे हर वक्त मन में अपने सौंदर्य का चिन्तन करती रहती हैं, सौंदर्य की बनाव संभाल पर उनका विशेष ध्यान रहता है, फलस्वरूप ब्रह्मचर्य के अभाव और स्वास्थ्य के निर्बल होने पर भी वे सुन्दर बनी रहती हैं। इसके विपरीत हमारे घरों में जो स्त्रियाँ सौंदर्य पर ध्यान नहीं देती वे वेश्याओं की अपेक्षा अनेक गुनी सुन्दर होने पर भी उतनी आकर्षक नहीं रहती। नाटकों में स्त्रियों का पात्र खेलने वाले नट बहुत उम्र तक सुन्दर बने रहते हैं। इसके विपरीत अपने को बुजुर्ग कहने के उत्सुक बहुत जल्द बुड्ढे हो जाते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118