और प्रेम ईश्वर है।

September 1941

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(महात्मा गाँधी)

बुद्धिवाद द्वारा ईश्वर पर श्रद्धा नहीं कर सकता, मैं अपने लेखों द्वारा दूसरों में श्रद्धा उत्पन्न नहीं कर सकता, मैं कबूल करता रहा अनुभव अकेले मुझे ही मदद कर सकता जिन्हें शंका हो, वे दूसरा सत्संग खोज करें। मेरा ईश्वर तो मेरा सत्य और प्रेम है। नीति परे है। ईश्वर अन्तरात्मा ही है। वह मृतकों की नास्तिकता भी है। क्योंकि वह अपने मर्यादित प्रेम से उन्हें भी जिन्दा रहने देता है। हृदय को देखने वाला है। वह बुद्धि और ज्ञान से परे है। हम स्वयं जितना अपने को जानते हैं उससे कहीं अधिक वह हमें और हमारे दिलों को जानता है। जैसे कहते हैं, वैसे ही वह हमें बताता है, क्योंकि वह जानता है कि जो हम कहते हैं। अक्सर वही हमारा भाव होता और कुछ लोग यह जान कर करते हैं, कुछ अनजान में। ईश्वर उनके लिये एक व्यक्ति है तो उसे व्यक्ति रूप में हाजिर देखना चाहते हैं, उसका स्पर्श करना चाहते हैं, उनके लिए वह स्वयं धारण करता है। वह पवित्र से पवित्र तत्व है उन्हें उसमें श्रद्धा है, उन्हीं के लिए उसका तत्व है। सब लोगों के लिए वह सभी चीज हममें व्याप्त है और फिर भी हमसे परे है। क्योंकि वह पश्चाताप करने के लिए मौका देता है। दुनिया में सबसे बड़ा प्रजा तंत्रवादी वही है। और वह बुरे-भले को पसन्द करने के लिए हमें एकाँत छोड़ देता है। वह सबसे बड़ा जालिम है, अक्सर हमारे मुँह तक आये हुए कौर निगल लेता है और इच्छा स्वतंत्र की ओट में आत्म छूट देता है, कि हमारी मजबूरी सिर्फ उसी को आनन्द मिलता है। उस हिन्दू धर्म के अनुसार उसकी लीला है। तो छाया है हम कुछ नहीं है। सिर्फ वही हो अगर हम हों तो हमें सदा उसके गुणों का गान करना चाहिये और उसकी इच्छा के अनुसार चलना चाहिये। आइये, उसकी वंशी की नाद पर हम नाचें सब अच्छा ही होगा।


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