सत्य नारायण का व्रत

September 1941

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(विद्यालंकार पं. शिवनारायण शर्मा, आगरा)

“नहीं सत्यात् परोधर्मः” - सत्य से परे और धर्म नहीं है, इस श्रेष्ठ धर्म से पतित होकर, मिथ्या के वशीभूत होकर, केवल अर्थ और काम की सेवा करने से ही आज हम रोग, शोक, अभाव, उत्पीड़न से जर्जरीभूत, मिथ्या-अधर्म के तीव्र पोषण से संकुचित हैं। याद रखिये, हमारा यह देश धर्म-भूमि’ है, यहाँ धर्म को त्याग कर कोई अधिक समय तक सुख स्वच्छन्द होकर रह नहीं सकता। अधर्म के सामयिक प्रलोभन से मुग्ध होकर अब कब तक जीवन मिथ्यामय अशन्तिमय किये रहोगे? आओ, जाति, धर्म, सम्प्रदाय का विचार छोड़कर सब ‘सत्य-परायण होओ’।

आपके बालक, दास-दासी, मित्र आदि यदि आपसे झूठी बात कहें, आपको धोखा दें, तो आपके प्राण पर कितनी चोट लगती है; उतनी ही, वैसी ही व्यथा आपकी झूठी बातों से पाकर दूसरे लोग भी व्यथित होते होंगे- यह तो विचार देखिये। जिनके संसर्ग में आप रहते हैं, वे यदि निष्कपट व्यवहार करें, तो आप कितने सुखी होंगे; उसी प्रकार दूसरे लोग भी आपसे सरल सत्य-व्यवहार पाने की आशा करते हैं। पक्षान्तर में जगत के सब लोग झूठ बोलें, धोखा दें, तो भी आप कभी सत्य न छोड़िये, फिर देखिये कि आपके प्राण में कैसी शान्ति विराजती है, उस शाँति का कण-मात्र पाने की आशा से सारा जगत मुग्ध नेत्रों से आपकी ओर ताकता रहेगा।

आप मनुष्य हैं, आपकी नस-नस में सत्य दर्शी ऋषियों का रक्त प्रवाहित हो रहा है, आप सत्य से ही आये हैं, अब उस विलुप्त प्रायः पुण्यमय सत्य-स्मृति को जाग्रत करके देखिये कि आपका वाक्य सत्य, विचार सत्य, और कार्य सत्य है या नहीं। क्या आप सत्यमय होना चाहते हैं? तो उसका उपाय ध्यान देकर सुनियेः-

किसी दिन उपयुक्त समय पर यथासम्भव शुद्ध प्रशान्त चित्त होकर किसी पवित्र निर्जन स्थान में स्थिर भाव से बैठिये “सत्यं परं धीमहि” मन-ही-मन धारण कीजिये, कि सत्य स्वरूप परमात्मा तुम्हारे अन्त बाहर पूर्ण रूप से व्याप्त हो रहा है। भगवान् का जो नाम और रूप आपको प्रिय हो, वही नाम और रूप यथाशक्ति स्मरण कर भक्तिपूर्वक प्रणाम कर अधीरभाव से प्रार्थना कीजिये, कि ‘आप हमें सत्य परायण कीजिये, आप हमें सत्य परायण कीजिये। मिथ्या प्रलोभन से हमारी रक्षा कीजिये, जिससे हम भूल कर भी कभी झूठ न बोलें। आप सर्वशक्तिमान हैं, हमें शक्ति दीजिये, जिससे हम किसी अवस्था में कभी भी मिथ्या मार्ग पर न चलें।

किसी ऐसे विशेष भाव से प्रार्थना करके सत्य बोलने के लिए दृढ़-प्रतिज्ञ हों, फिर प्रतिदिन प्रातः काल उठते ही शय्या पर बैठे-बैठे कई बार “सत्यं परं धीमहि” मंत्र पाठ कीजिये, अपने अभीष्ट देवता को स्मरण कर दिन भर के लिए प्रार्थना कीजिये, कि प्रभो! आप हमें इस भाव से चलाइये कि जिससे आज दिन-रात में एक बार भी झूठ न बोलना पड़े।

प्रतिदिन प्रातः काल यह स्मरण करने और अनावश्यक बातें त्यागने की प्राण पन से चेष्टा करो। जब किसी से बात-चीत या व्यवहार करो, तब कम से कम एक बार पूर्वोक्त सत्य मन्त्र स्मरण कर लो। इसी तरह दिन के कार्य समाप्त करके रात्रि में शय्या पर शयन करते समय एक बार स्मरण कर देखो कि दिन में कोई झूठी बात कही वा कोई मिथ्या व्यवहार तो नहीं किया है यदि न हुआ हो तो कृतज्ञापूर्वक भगवान् को धन्यवाद देकर कहो- प्रभो! आपकी कृपा से मैं आज सत्य की रक्षा कर सका हूँ, आप मेरा भक्ति-हीन प्रणाम ग्रहण कीजिये, जिससे मैं प्रतिदिन इस भाव से आपकी कृपा का अनुभव कर सकूँ।”


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