(महात्मा सच्चे बाबाजी, धौलपुर)
कलियुग समाप्ति और सतयुग के आरंभ के संबन्ध में स्थूल दृष्टि से देखने पर काम न चलेगा वरन् इस सम्बंध में सूक्ष्म तत्वों पर दृष्टिपात करना पड़ेगा। इसके लिये इस चतुर्युगी पर विचार करना पर्याप्त न होगा, बल्कि और भी पीछे का हिसाब देखना होगा। इस समय श्री स्वेतबाराह्कल्प चल रहा है, इसमें 6 मन्वन्तर और 28 चतुर्भुजी बीत चुकी। 72 चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है, इस प्रकार 6 मन्वन्तरों में 432 चतुर्युगी और इस सातवें वैवस्वत मन्वन्तर में 28 चतुर्युगी, इस प्रकार वर्तमान कल्प में 460 चतुर्युगी व्यतीत हो चुकी।
जिस प्रकार ऋतुओं के परिवर्तन तथा प्रातः मध्याह्न, सन्ध्या और रात्रि आदि के समय पृथ्वी का निकटवर्ती वातावरण बदलता रहता है उसी प्रकार सूर्यमण्डल में ईश्वरेच्छा से युगों का वातावरण परिवर्तित होता रहता है। अदृश्य लोकों में सत, रज, तम में से जिनकी न्यूनाधिकता होती रहती है उसी के अनुसार युगों का आविर्भाव होता है। यद्यपि युगों की अवधि निर्धारित है तो भी प्रकृति जड़ होने के कारण वह चैतन्य सत्ता द्वारा शासित है। अतएव जब कोई दिव्य चेतना में जागृत आत्माएं उसमें परिवर्तन करना चाहती हैं तो कर लेती हैं। बीच-बीच में यह समय घट-बढ़ जाता है पर कल्प का पूरा हिसाब अन्ततः ठीक ही बैठता है। सत् के कारण 17 लाख 28 हजार वर्ष सतयुग, सत् रज के कारण 12 लाख 96 हजार वर्ष त्रेता, रज तम् के कारण 8 लाख 64 हजार वर्ष द्वापर एवं तम् के कारण 4 लाख 32 हजार वर्ष कलियुग होता है। कई बार उच्च योग्यताओं में जागृत आत्माएं जब अवतीर्ण होती हैं तो युग धर्म को हराकर अपनी इच्छानुसार नवीन वातावरण भी बना डालती हैं। स्वायम्भूमन्वन्तर के त्रेता युग में राम ने अवतार लेकर उस समय सतयुग की ही सृष्टि कर दी थी द्वापर का कृष्णावतार बीच में ही सतयुग को बहुत दिनों तक प्रकट करने में समर्थ हुआ है।
इसी प्रकार कुछ तम् प्रधान आत्माएं भी समय पर अवतीर्ण हुई हैं। रावण, कुम्भकरण, मेघनाद, सरीखी तामसी चेतनाओं ने त्रेता में कलियुग उपस्थित कर दिया। कई बार तो वृत्तासुर, त्रिपुर आदि तामसी आत्माएं लगातार कई चौकड़ी तक तम का ही वातावरण बनाये रही हैं और अविचल रूप से कलिकाल छाया रहा है।
उच्च कोटि की, ईश्वरीय सत्ता में जागृत आत्माएं अपने निजी अनुभव से बताती हैं कि इन 462 चतुर्युगियों 68 करोड़ वर्ष तम में व्यतीत हो चुके हैं चतुर्युगियों 42 करोड़ वर्ष तम में व्यतीत हो चुके हैं जबकि एक कल्प में 42 करोड़ वर्ष ही तम रहना चाहिये अभी लगभग आधा कल्प व्यतीत होता है, पर पूरे कल्प में रहने वाले तम की अपेक्षा भी कुछ काल अधिक व्यतीत हो गया। अब और अधिक समय तम में व्यतीत होना किसी प्रकार वाँछनीय नहीं है। योग दृष्टि से देखने पर विदित होता है कि अदृश्य जगत् में दिव्य आत्माएं इस बात के लिए प्रबल प्रयत्न कर रही हैं कि अब तम को अधिक स्थान न मिलना चाहिये। तदनुसार युगान्तर आरंभ हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों से तम की समाप्ति और सत् का आगमन आरम्भ हो गया है और यह कार्य बहुत जल्द पूरा होने वाला है। अब वह युग दूर नहीं है जिसमें सत् का साम्राज्य होगा। वह सतयुग आरम्भ हो गया है, उसका पूरा-पूरा अधिकार होने में कुछ समय भले ही लगे, पर अब सतयुग में का आगमन निश्चित है।