जैसे अत्याचारी तथा न्यायी का विरोध करना परम धर्म है। उसी तरह पतितों से प्रेम रखना भी परम धर्म है।
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धर्मोपदेश यही है। दुष्ट को न मार सको तो स्वयं ही उसके द्वारा मर जाना ठीक है, किन्तु अत्याचार को देख कर भाग जाना तो पशुता से भी बढ़कर है।