(श्री नारायण प्रसाद तिवारी, ‘उज्ज्वल’)
(गतांक से आगे)
दोहा-
शुक्ल पक्ष है चन्द को, कृष्ण पक्ष रवि केर।
कृष्णपक्ष से तीज तक, रविकी ही तिथि हेर॥
तीन तिथी फिर चन्द की, फेरि तीन रचि मान।
तीन तिथी फिर चंद्रमा, तीन तिथी फिर भान॥
शुक्लपक्ष से तीज तक, तिथी चंद्र की लेख।
ऊपर के परमान सम, जानो बहुत विसेख॥
शुक्लपक्ष की तीज तक, प्रति चंद्र स्वर होय।
पक्ष भरे तक कुशल है, सिद्धि कार्य सब होय॥
कृष्ण पक्ष की तीज तक, सूरज सुर चल जाय।
शुभ कारज उहि पक्षभर, अरु अब कुशल रहाय॥
सोरठा-
चलै जो स्वर विपरीत, हानि दुख भय जानिये।
करिये यह परतीत, पक्ष भरै लौं अशुभ है॥
दोहा-
बुध वृहस्पति शुक्र अरु, सोमवार दिन चार।
चंदा स्वर को जानिये, शुभ कारज निरधार॥
शनि रवि मंगल वार के, जो ये दिन तीन।
सूरज स्वर में जानिये, क्रुर कर्म लौ लीन॥
चंद्र दिनन में चन्द्र स्वर, चलो चही प्रतकाल।
सूरज के स्वर में चले, सूरज स्वर की चाल॥
जो स्वर उलटे चलैं तो, ताको कहौं विशेष।
दुध दिना सूरज चलै, तो विरुद्ध कुछ लेख॥
गुरु वासर रवि स्वर चले, तो कुछ राज चिगार।
शुक्रवार को रवि चल, जिय विपरीत विचार॥
सोरठा-
मन कछु चिंतित होय, सोम जो सूरज स्वर चलै।
अवश हानि कुछ होय; बाये स्वर मंगल दिना॥
दोहा-
शनिवार बहे चंद्र जो जिय उदास कछु जान।
रविवार इडा चलै, कष्ट होय यह मान॥
ढाई घड़ी लौं प्रात ही, स्वर को है परमान।
जो प्रमान स्वर ना चलै, दुःख होय अरु हान॥
प्रात समय नित उठत ही, चलित होय स्वर जोय।
सो पग आगे धर उठे, सिद्ध सब कारज होय॥
चनदा स्वर में दोई पग, सूरज स्वर में तीन।
यहि विधि सगुन विचार नित उठे पुरुष परवीन॥
सोरठा-
गयो चहै जो कोय, पूर्व उत्तर की दिशा।
पूरण कारज होय, जो सूरज स्वर में चलै॥
दोहा-
दक्षिण अरु पश्चिम दिशा, चंदा स्वर में जाय।
तो शुभ कारज जानिये, मन प्रसन्न हुई जाय॥
मेष, सिंह, धन, कुँभ, अरु, मिथुन, तुला षटजान।
सूरज स्वर की लगन ये, क्रुर कर्म हित मान॥
मकर मीन कन्या वृश्चिक, वृष अरु, कर्क विचार।
ये लगनें स्वर चन्द्र को, शुभ कारज निरधार॥
कौनें स्वर में कौन सों, चहिये कारज कीन।
बरणत हूँ संक्षेप मे, गुनिये ह्नै लवलीन॥
चन्द स्वर में कीजिये, चिर कारज शुभ जोय।
चर कारज सिध होत हैं, सूरज स्वर जवै होय॥
सोरठा-
चलत सुखमना होय, हिये में हरि को ध्यान धर।
कारज कछू होय, करत हो होवे हानि दुख॥
स्वरोदय प्रेमियों से निवेदन
कई सज्जनों ने मुझे “स्वर योग से दिव्य ज्ञान” नामी पुस्तक पर अपना संतोषप्रद विचार भेजा है, जिसके लिये गतांक में मैं सश्रम प्रदर्शन कर चुका हूँ तथा उसके बाद भी जो पत्र आये उनको भी मैं सहर्ष स्वीकार करता हूँ।
कई सज्जन कुछ शंका समाधान के लिये पत्र भेजते हैं, तथा उत्तर के लिये टिकट या कार्ड भेजते हैं, मैं निवेदन करता हूँ कि कोई भी सज्जन सहर्ष शंका समाधान के लिये मुझे लिख सकते हैं, चाहे वे टिकट भेजें अथवा न भेजें यथासंभव उत्तर अवश्य दिया जावेगा।
-उज्ज्वल
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दूसरों से भलमनसिह का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। दुनिया को ऐसे मनुष्यों की जरूरत है, जो अपने सभ्य व्यवहार से द्वेष और कलह की आग बुझा कर प्रेम की शीतल सरिता बहावे।
दूसरों से भलमनसिह का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। दुनिया को ऐसे मनुष्यों की जरूरत है, जो अपने सभ्य व्यवहार से द्वेष और कलह की आग बुझा कर प्रेम की शीतल सरिता बहावे।