भलमनसाहत व्यवहार

September 1941

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जब पोप धर्म गुरु के पद पर चौदहवाँ क्लेमेण्ट आसीन हुआ तो आगन्तुकों ने उसे प्रणाम किया। इसके उत्तर में पोप ने भी उन्हें प्रणाम किया। चर्च के प्रधान कार्य-कर्त्ता ने उनके निकट आकर कहा- जनता के अभिवादन के धर्म को वैसा ही उत्तर नहीं देना चाहिये। पोप ने कहा- ‘लेकिन मुझे धर्म गुरु के आसन पर बैठे हुए इतना समय नहीं हुआ है कि अपने भलमनसाहत के व्यवहार को भी भूल जाऊँ।’

एक बार सेन्ट हेलेना में नेपोलियन दरबारियों सहित कहीं जा रहा था, सामने से एक मजदूर सिर पर भारी बोझा लादे हुए जा रहा था। दरबारी तो अपने पद के रौब से रास्ते में से हटना नहीं चाहते थे। इस पर नेपोलियन ने कहा- ‘बोझ का सम्मान कीजिये। रास्ते में से एक तरफ हट जाइए।’ वास्तव में भलमनसाहत का व्यवहार मनुष्य का एक बड़ा उत्तम गुण है। प्रसन्न चित्त और उदार व्यवहार वाला मनुष्य संसार में जहाँ कहीं भी रहेगा वहीं उसे आदर मिलेगा।

चार्ल्स डिकिन्स शीत काल में फुरसत के वक्त जिन लोगों के यहाँ जा पहुँचा था, वे उसे गरम अंगीठी की तरह घेर कर बैठ जाते थे। महाकवि गेटे जिस होटल में जाता वहाँ के सब लोग भोजन छोड़कर उसके निकट खिसक आते। मिरावो बड़ा ही कुरूप और भद्दी शकल का आदमी था, परन्तु उसके स्वभाव में इतनी भलमनसाहत थी कि सैकड़ों स्वरूप वालों की अपेक्षा उसकी प्रतिष्ठा कहीं अधिक थी। भले मनुष्यों के लिये सब जगह स्थान है। सूर्य के प्रकाश की तरह हर मनुष्य उन का स्वागत करता है। विनम्र व्यक्ति के लिए क्रोधी और कडुए स्वभाव का मनुष्य गरम-नरम हो जाता है शहद के पुते हुए मनुष्य को मधुमक्खियां नहीं काटती।


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