ईश्वर और उनके नियम भिन्न नहीं है। कोई किसी को छोड़ता नहीं, न ईश्वर किसी को छोड़ता है। दोनों एक वस्तु है। एक विचार हमें कठोर बनाता है, दूसरा नम्र। संसार में कोई न कोई अपूर्व चेतन मय शक्ति काम कर रही है। उसे आप चाहे जिस नाम से पुकारें, लेकिन वह प्रत्येक काम में हस्तक्षेप तो किया ही करती है। हमारा प्रत्येक विचार कर्म है। कर्म का फल होता है। फल ईश्वरीय नियम के अधीन है। यानी हमारे प्रत्येक काम में ईश्वरीय सत्ता नियम हस्तक्षेप किया करता है। फिर भले हम इसको जानते हों या अनजाने हों। स्वीकार करें या अस्वीकार।