साधकों के पत्र

January 1941

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आपकी प्रेषित ‘सूर्य चिकित्सा विज्ञान’ तथा ‘प्राण चिकित्सा विज्ञान’ दोनों पुस्तकें प्राप्त हुईं। पढ़ कर अतीव आनन्द हुआ। प्राण चिकित्सा सम्प्रतकालीन समाज को एक दम नई सी है । मुझे इस आधार पर पूर्ण विश्वास पहिले से भी था। अब मुझे यह सफल गुरु का काम देगी।

रामनारायण आयुर्वेदाचार्य

सूर्य चि॰ वि॰, प्राण चि॰ वि॰ पुस्तकें मिलीं। जिसमें प्राण चि॰ वि॰ को पढ़ कर हमसे उसका महत्व वर्णन नहीं हो सकता। हम योग शास्त्र तथा तन्त्र शास्त्र के पहलुओं से देखते हैं तो सब विषयों का समावेश इसमें मिलता है। 5-6 महीने से ‘मैं क्या कहूँ’ पुस्तक देख रहा हूँ। 2-5 मिनट आसन पर बैठ जाता हूँ उसी के बल पर शारीरिक आरोग्यता लाभ कर रहा हूँ।

-कालीप्रसाद राय, खिरना।

अखंडज्योति’ कार्यालय, मथुरा


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