पूरा और खरा काम

January 1941

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(श्रीमती लिली एल. एलन)

किसी भी स्त्री या पुरुष के वास्ते इससे अधिक लज्जा और गिरावट की बात क्या होगी कि उसे एक काम को दुबारा करने के वास्ते कहा जाए कि उसने अपना काम ठीक तौर से नहीं किया है, अधूरा किया है। जो आदमी सम्मान प्राप्त करने की इच्छा करता है उसे कभी किसी काम को अधूरा और रद्दी न करना चाहिये। जो आदमी अपने मालिक की उपस्थिति में तो ठीक काम करता है किन्तु उसके पीठ फिरते ही सुस्ती से भद्दा काम आरम्भ करता है वह कभी बड़ा नहीं बन सकेगा, सद्गुण उसे दूर से ही प्रणाम करेंगे।

उच्च आदर्शों वाला आदमी हमेशा एक खरे आदमी के समान काम करता है, किराये पर रखे हुये आदमी के समान नहीं। ‘मुझे इतने पैसे मिलते हैं वैसा ही मुझे काम करना चाहिये’ इस विचार से प्रेरित होकर वह कभी अपनी कारीगरी को बट्टा न लगावेगा। वह अपनी कला की अच्छाई को मजदूरी के पैसों से नाप कर खराब न करेगा। उसे अपनी तरक्की के लिये न तो षडयंत्र बनाने की जरूरत होगी और न वेतन बढ़ाने के लिये किसी से कुछ कहना पड़ेगा। क्योंकि दुनिया इस कायदे को मानने के लिये बाध्य है कि जो आदमी योग्यता रखता है उसे पुरस्कार अवश्य मिलना चाहिये।

पूरे और खरे काम के सामने सबको झुकना पड़ता है। जो छोटे से छोटा काम निकम्मा, रद्दी, अधूरा किया जा सकता है वही परमात्मा की सेवा या अपना कर्तव्य समझ कर सारे चातुर्य तथा कला से अच्छी तरह भी किया जा सकता है।


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