सोना बनाने वाले ताँत्रिक

January 1941

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(15 मार्च सन् 37 के ‘अभ्युदय से उद्धत’)

ताँत्रिक विद्या पर से आज कल के पढ़े-लिखे पाश्चात्य सभ्यता के लोगों का विश्वास बिल्कुल उठ गया है। इसका कारण सम्भवतः यही है कि आजकल अनेक लोग झूठमूठ में ताँत्रिक बन कर ठगने के उद्योग में लगे रहते हैं। कैप्टन जार्ज कार्टर एक ब्रिटिश हैं, आप शिक्षित तथा भारतीय ताँत्रिक विद्या तथा बाजीगरी के बड़े प्रेमी हैं। अपने इसी प्रेम के कारण आपने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया है। आपने अपनी देखी हुई कुछ घटनाओं का वर्णन किया है,जो बहुत रोचक हैं। जब वे रंगून में थे तब उन्हें एक स्त्री से परिचय हुआ। वह उनके घर के सम्मुख ही रहती थी। उसे बिलकुल खालिस सोना बनाने की विधि-जिसके लिये युगों से बहुत रासायनिक प्रयोग करते-करते मर गये और नहीं जान पाये-ज्ञात थी, परन्तु सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह थी कि उसे अपने इस गुण द्वारा धन पैदा करने की तनिक भी लालसा न थी। वह तो एक दूसरी ही अप्राप्य वस्तु-अमृत की खोज में थी, जिससे मनुष्य जाति दीर्घजीवी बनाई जा सके।

मिस्टर कार्टर का पहले-पहल इस विलक्षण स्त्री से इस प्रकार परिचय हुआ कि वे बौद्ध जीवन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बुद्ध की मूर्ति ही अपने घर में प्रतिष्ठित कर ली। इस विषय में किसी बौद्ध से राय लेना चाहते थे। उनके सम्मुख ही यह स्त्री रहती थी। अतएव उनका उससे परिचय हो गया। उसने इनकी हर तरह से सहायता की।

इस स्त्री का नाम श्रीमती वारटन था। वह एक अंगरेज की विधवा थी, परन्तु वह स्वयं साइनोचर्मीज जाति की थी। यह एक बहुत बड़े बाग में केवल अपनी एक परिचारिका के साथ रहती थी, जो स्वयं भी उसी की अवस्था की थी। वह दिन भर या तो भजन में मगन या अपना प्रयोगशाला में रहती थी। उसकी प्रयोगशाला एक गुप्त स्थान पर थी। बाग में एक कुटी थी जिसमें केवल एक चूल्हा था। बहुत से लोगों ने उसे सोना बनाते देखा। क्योंकि उसे कोई काम छिपाकर करने की आदत नहीं थी।

उसकी सोना बनाने की विधि भी विचित्र थी। वह पारा को किसी ऐसे द्रव पदार्थ में डाल देती थी वह ठोस बन जाता था। तब वह इसकी छोटी छोटी गोलियाँ बना लेती, इन गोलियों को वह एक प्रकार के अन्य द्रव पदार्थ में डाल देती। कुछ समय पश्चात् वे गोलियाँ फूलतीं, परन्तु वह उसे आग में रक्खे रहती। अन्त में जब वह मंत्रों से फूँक कर उसे निकालती तो वह शुद्ध सोना हो जाता। मिस्टर कार्टर का कहना है कि इस सोने की उन्होंने हर प्रकार से परीक्षा कराई, परन्तु उसमें कोई कमी न थी।

एक दिन प्रातःकाल यह स्त्री मरी हुई पाई गई। लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि सोना बनाने की कोई विधि ज्ञात हो जाए, परन्तु सब प्रयत्न व्यर्थ हुये।

इसके अतिरिक्त मि॰ कार्टर एक अन्य घटना का भी वर्णन करते हैं, परंतु भारतीयों के लिये वह कोई नई बात नहीं हैं। वे लिखते हैं कि जब वे दार्जलिंग के लामा मठ में थे तब यह घटना हुई। दार्जलिंग में बालकों का एक स्कूल है जिसमें यूरोपियनों के बच्चे शिक्षा पाते हैं। इसमें कई अध्यापिकायें हैं। एक समय की घटना है कि उस स्कूल में ग्लोरिया नामक एक छोटी सी बालिका भी पढ़ती थी। वह लगभग 6 वर्ष की थी। उसकी तीव्रता तथा आकर्षण के कारण प्रत्येक अध्यापिका उसे बहुत प्यार करती थी। प्रधान अध्यापिका तो उसे बहुत ही चाहती। एक दिन वह अपने स्कूल में झूलने पर झूल रही थी। उसकी अन्य सहेलियाँ झुला रही थीं। उसने अपनी सखी से खूब जोर से झुलाने को कहा। उस बालिका ने झूले को खूब जोर से झुलाया, दूसरे ही क्षण झूला बहुत ऊपर गया और ग्लोरिया पृथ्वी पर आकर गिर पड़ी। उसके हाथ-पैर टूट गये और वह मूर्च्छित हो गई। अध्यापिकायें समाचार पाते ही दौड़ आईं और बालिका को उठा ले गईं। बहुत से डाक्टरों ने प्रयत्न किया, परंतु ग्लोरिया के पैर टूट गये थे उसकी मृत्यु निकट थी। उसे कोई भी न अच्छा कर सका। सब लोग हताश हो गये।

उसी समय किसी ने लामा मठ के साधुओं की ताँत्रिक विद्या का जिक्र किया। प्रधान अध्यापिका को भला उस पर कैसे विश्वास होता, परन्तु बहुत कुछ कहने सुनने पर वे राजी हुईं और एक आदमी लामा मठ के प्रधान के पास भेजा गया। उस आदमी ने आकर मिस्टर कार्टर से सब बातें कहीं।

मिस्टर कार्टर ने प्रधान लामा से सब कुछ निवेदन किया। प्रधान ने आँख बन्द कर के कहा- ‘बेटा’ हमें उस बालिका को अच्छा करना होगा? तत्क्षण तीन साधु ग्लोरिया के स्थान पर भेजे। उन्होंने ग्लोरिया के कमरे में प्रवेश किया तथा अन्य सबको कमरे से बाहर निकाल कर दरवाजा बन्द कर लिया। बाहर बहुत से लोग खड़े थे, परंतु बाहर से केवल तालियाँ बजाने अथवा उनके मंत्र पाठ की ही आवाज सुनाई पड़ती थी।

लगभग एक घन्टे पश्चात् दरवाजा खुला। एक साधु ग्लोरिया को गोद से उतारा। परन्तु अब वह वही ग्लोरिया न थी, उसके पैर ठीक हो गये थे। ऐसा ज्ञात होता था कि वह अभी खेल कर आई हो।

भारतीय ताँत्रिक विधान द्वारा ऐसे अनेक चमत्कार हो सकते हैं, परन्तु यह कोई जादू न था । यह तो एक यौगिक शक्ति है। आज भी भारत में ऐसे अनेक योगी हैं तो आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं।


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