आत्म-निवेदन

January 1941

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‘अखण्ड ज्योति’ का उद्देश्य मनुष्य समाज में सदाचार, धर्म निष्ठा, भ्रातृ भाव और सुख शान्ति के विचारों का प्रचार करना है। मनुष्य सम्राटों का सम्राट परमात्मा का उत्तराधिकारी-राजकुमार है। उसकी शक्ति महान है। परमात्मा में जो गुण हैं वे सब उसमें भरे हुए हैं। किन्तु जिस प्रकार एक सिंह का बच्चा भेड़ों के साथ रहकर अपने को भेड़ समझने लगा था वही दशा माया के संसर्ग से मनुष्य की हुई है। अखण्ड ज्योति का मिशन है कि हर सिंह अपने वास्तविक स्वरूप को जाने और अपने अधिकारों का दावा पेश करें ।

इन सदुद्देश्यों में सहायता करना हर एक ईश्वर भक्त, धर्म-प्रेमी, सदाचारी और पवित्र हृदय वाले व्यक्ति का विशुद्ध कर्त्तव्य है।

अपने हर ग्राहक और प्रेमी से अखण्ड ज्योति आशा करती है कि वह अपना कर्तव्य धर्म समझ कर अखंड ज्योति के एक दो ग्राहक अवश्य बना दें।

निम्न महानुभावों ने इस मास कुछ नये ग्राहक बनाकर हमारे पुनीत कार्य में हाथ बंटाया है, इसके लिए अखण्ड ज्योति विशेष रूप से कृतज्ञता प्रकट करती है।

नये ग्राहक बढ़ाने वाले महानुभावों की शुभ नामावली ।

(1) हकीम गणपति राव, हैदराबाद।(2)रानी साहिबा चन्द्रकुमारी देवी, कटनी।

(3) पं॰ नारायण प्रसाद तिवारी, कान्ही बाड़ा(4) कुँ॰ सज्जनसिंह भटनागर, महिदपुर

(5) डॉ॰ भगवान स्वरूप ‘शूल’, आन्तरी (6) श्री हनुमान प्रसाद ‘कुसम’ सीकर

(7) श्री रुद्रबहादुर श्रेष्ठ चालाछे, नेपाल (8) वैष्णव नवनीदास धर्माचार्थे, धरोनिया।

(9) श्री गुरु चरण जी आर्य युवक, विहिया (10) मास्टर उमादत्त सारस्वत, विसवाँ।

(11) पं॰ भोजराय शुक्ल, ऐत्मादपुर(12)श्री लालकृष्ण, रि॰ हैडमास्टर बुलन्द शहर

(13) स्वामी मुरलीधर जी, अजीतमल(14)श्री नेत्रपाल सिंह जी, अम्बाह

(15) पं॰ जगदीश प्रसाद शर्मा, खटीमा

इनके अतिरिक्त अन्य अनेक महानुभावों ने एक एक ग्राहक बनाया है। और कितने सज्जनों ने अगले मास ग्राहक बढ़ाने का वचन दिया है। इन सबको भी हार्दिक धन्यवाद है।

आप देख रहे हैं कि “अखण्ड-ज्योति” का मिशन मनुष्य समाज में सदाचार, धर्मनिष्ठा, भ्रातृभाव और सुख शान्ति के विचारों का प्रचार करना है। मनुष्य में देवत्व का आविर्भाव करने के लिये नारद की तरह अलख जगाती हुई द्वार-द्वार पर फिरती है। मीरा की तरह इसकी एक ही रट है- ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई’

“अखण्ड-ज्योति” के सदुद्देश्य में सहायता करना हर एक ईश्वर भक्त , धर्म प्रेमी, सदाचारी और पवित्र हृदय वाले व्यक्ति का कर्तव्य है। इस नास्तिकता, स्वार्थपरता और महंगाई के युग में धर्म प्रेमियों की सहायता बिना यह अखण्ड-ज्योति का धर्म तक मुरझा जायगा।

प्रेमी पाठकों से अखण्ड-ज्योति’ एक भिक्षा चाहती है?

क्या ?

हर ग्राहक अनुग्राहक अपना कर्तव्य धर्म समझकर अखण्ड-ज्योति के कम से कम दो ग्राहक अवश्य बना दें

इससे धर्म प्रचार का कार्य कई गुना बढ़ जाने से आपको पुण्य मिलेगा। हमारी शक्ति बहुत बढ़ जाएगी और यह मुरझाता हुआ वृक्ष हरा-भरा होकर नये पत्र-पुष्पों से सजा हुआ दिखाई देगा।

अखण्ड-ज्योति पूछती है कि ‘क्या आप हमारे लिये इतना कर सकते हैं?”

बोलिये आप क्या उत्तर देते हैं।

जिन सज्जनों द्वारा इस कार्य में सहयोग मिलेगा उनकी शुभ नामावली

आगामी अंक से इसी पृष्ठ पर छपा करेगी।

भाग 2 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक 1


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