(ले॰ श्री मुरलीधरजी, अजीतमल, इटावा)
प्रभु! जीवन ज्योति जगा दे !
घट-घट वासी! सभी घटों में, निर्मल गंगाजल हो ।
हे बलशाली ! तन-तन में, प्रतिभाषित तेरा बल हो ॥
अहे सच्चिदानन्द ! चाहे आनन्दमयी निर्झरिणी
नन्दन वन से शीतल इस जलती जगती का तल हो ॥
सत् प्रभु सुगन्ध फैला दे ।
प्रभु ! जीवन ज्योति जगा दे ॥
विश्वे देवा! अखिल विश्व यह देवों का ही घर हो ।
पूषन ! इस पृथ्वी के ऊपर असुर न कोई नर हो ॥
इन्द्र ! इन्द्रियों की गुलाम यह आत्मा नहीं कहावे-
प्रभु का प्यारा मानव, निर्मल, शुद्ध, स्वतन्त्र,अमर हो ॥
मन का तम तोम भगा दे !
प्रभु जीवन ज्योति जगा दे ॥
इस जग में सुख शान्ति विराजे, कल्मष कलह नसावें।
दूषित दूषण भस्मसात हो, पाप ताप मिट जावें ॥
सत्य, अहिंसा, प्रेम, पुण्य, जन-जन के मन-मन में हो-
विमल ‘अखण्ड-ज्योति’ के नीचे सब सच्चा पथ पावें॥
भूतल पर स्वर्ग बसा दे।
प्रभु! जीवन ज्योति जगा दे ॥